मुझ से यह सवाल हमारे एक भाई मे ई-मेल से पूछा था तो मै उस्का जवाब यहा दे रहा हू ।
सवाल :- कब्रों की ज़ियारत मज़ारों से वसीला लेना और (चढावे के तौर पर) वहां माल और दुंबे आदि ले जाने का क्या हुक्म है? जैसा कि लोग सय्यद अल-बदवी (सुडान में), हज़रत हुसैन बिन अली रज़ि ॒ (इराक में), और हज़रत जैनब रज़ि ॒ (मिस्र) कि कब्रों पर करते हैं । आप जवाब दें, अल्लाह आप के इल्म में बरकत दे । आमीन
जवाब :- कब्रों के ज़ियारत की दो किस्में हैं । पहली किस्म वह है जो कब्र वालों पर रहम व मेह्र्बानी करने, उनके लिये दुआ करने, मौत को याद रखने और आखिरत कि तय्यारी के लिये कि जाये । यह ज़ियारत जाइज़ है और ऐसी ज़ियारत की आवश्यक्ता भी हैं । क्यौंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिंं वसल्लम का फ़र्मान है । आगे पढ़े...
29.5.09
कब्रों की ज़ियारत किस लिये?
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1 comment:
आसिफ भाई, ये कब्रों की जियारत वाक्य देख कर मुझे याद आया कि मैंने बहुत समय पहले एक शेर बनाया था जो इस तरह था :
हर्ज क्या है तनिक पूछने में, हाल-ए-जनाब,
जान-ए-मन, चुप रहकर न सितम ढाया करो,
मुरदों की ज़ियारत के लिए कभी-कभार
ऐ गुलबदन, क़ब्रिस्तान भी घूम आया करो
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