हाल हमरो न पूछौ बड़ी पीर है।
का बताई के मनमा केतनी पीर है।
बिन खेवैया के नैया भंवर मा फंसी-
न यहै तीर है न वैह तीर है।
हमरे मन माँ वसे जैसे दीया की लौ
दूरी यतनी गए जइसे रतिया से पौ,
सुधि के सागर माँ मन हे यूं गहिरे पैठ
इक लहर जौ उठी नैन माँ नीर है -
का बताई की मामा केतनी पीर है...... ।
सूखि फागुन गवा हो लाली गई,
आखिया सावन के बदरा सी बरसा करे ,
राह देखा करी निंदिया वैरन भई -
रतिया बीते नही जस कठिन चीर है।
का बताई की मामा केतनी पीर है...... ।
कान सुनिवे का गुन अखिया दर्शन चहै,
साँसे है आखिरी मौन मिलिवे कहै,
तुम्हरे कारन विसरि सारी दुनिया गई-
ऐसे अब्नाओ जस की दया नीर है।
का बताई की मामा केतनी पीर है...... ।
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '
लेबल: गीत चंदेल
1 comment:
बहुत सु्न्दर। लोक भाषाओं में बड़ी मिठास है। संगीत के साथ होती तो और निखर जाती।
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