लोकतंत्र के पंद्रहवें महापर्व के संपन्न होते ही सरकार के गठन की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। इस बार के आम चुनाव में कई चीजें खास रहीं, जिसमें एक यह भी था कि दिल्ली की सभी सात सीटों के साथ साथ मुम्बई की भी सभी छहों सीटें पर यूपीए ने ही जीत का झंडा बुलंद किया। हालांकि, यहां यूपीए की जीत में स्थानीय दल महाराष्टï्र नवनिर्माण सेना की भी महती भूमिका रही। एकमात्र प्रिया दत्त की सीट छोड़ दें, तो बाकी की सीटों पर यूपीए प्रत्याशी लडख़ड़ाते हुए जीते और वह भी शिवसेना मनसे में वोट बंटने से उनकी जीत हो सकी। दक्षिण मुम्बई में तो हालात ऐसे रहे कि मनसे के बालानांदगावकर दूसरे स्थान पर रहे और मिलिंद देवड़ा को जीत के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। महाराष्टï्र में लोकसभा चुनाव को विधानसभा की तैयारियों के तौर पर देखा जा रहा है, जो अगले छह महीनों बाद होना है। इस चुनाव परिणाम ने हार के बावजूद मनसे नेताओं व कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया है और इस जोशों जुनून का खामियाजा निश्चित तौर पर उत्तर भारतीयों को भुगतना पड़ सकता है। संभवत: मनसे की रणनीति का राजनीतिक लाभ लेने के लिए कांग्रेस एनसीपी पहले की तरह आगे भी खामोश रहे, क्योंकि वे कार्रवाई करेंगे, तो मराठी वोट बैंक गड़बड़ाने का डर होगा। ऐसे में, राष्टï्रीय एकता व सामाजिक सौहार्द की दुहाई देने वाले कांग्रेसी भी यहां की भाषा में भइया लोगों का साथ नहीं दे पाएंगे। तो, जनाब.. इंतजार कीजिए वैमनस्यता की अगली कार्रवाई का.. जिसकी आशंका यहां रहने वालों को अभी से खाए जा रही है।
17.5.09
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