लोकतंत्र का अर्थ कुछ लोग अपने अपने हिसाब से निकलते है और चूंकि वह अपने को बड़ा नेता कहते है इसलिए वही सही है। आज एक पार्टी ने अपने प्रधानमंत्री का नाम चुनाव के प्रारंभ से ही घोषित कर रखा परन्तु वह नेता न तो लोकसभा का सदस्य है और न ही वह चुनाव लड़ रहा है ऊपर से रौब यह है की तीसरे मोर्चे ने अपना प्रधानमंत्री कौन होगा?घोषित नही किया है। संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री को लोकसभा का सदस्य होना चाहिए । किन्ही परिस्तिथियों में ऐसा नही हो सके तो किसी को भी प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है । जो 6 माह में किसी संस्था लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य बन जाए ,लेकिन यह कौन सी बात है की चुनाव आगे है और प्रधानमंत्री पीछे के दरवाजे से आएगा । यह संविधान को अंगूठा दिखाना नही है तो और क्या है?
कुल मिलकर राज्यों और केन्द्र में शासन करने वाली सभी पार्टियों से लगभग आम जनता से कुछ लेना देना नही है। जन प्रतिनिधि पैसे वाले हो जाते है और जिनके लिए कानून बनाते है वे पीछे लौट रहे है । वामपंथी पार्टियों को छोड़कर सभी पार्टियों के सदस्य भ्रष्ट आचरण में पकड़े जा चुके है इसके बावजूद वह बड़ी ही बेशर्मी से जनता में चुनाव लड़ा भी रहे है और दूसरो पर आरोप भी लगा रहे है ।
कांग्रेस पार्टी श्री जवाहर लाल नेहरू या श्रीमती इन्द्र गाँधी की कांग्रेस नही रह गई है। उनकी कांग्रेस गुटनिरपेक्षता विदेश नीति का पालन करती थी परन्तु मनमोहन सिंह और श्रीमती सोनिया गाँधी की का में जमीन आसमान का अन्तर है यह कांग्रेस अमेरिका की पीछलग्गु विदेश नीति का पालन कर रही है और इसलिए आर्थिक एवं विदेश नीति में इसमे और राजग में कोई अन्तर नही है .केवल साम्प्रदायिकता के सवाल पर थोड़ा बहुत फर्क है।
चुनाव में मतदाताओं से यह अपील है वह देश विदेश नीति आम जनता की जिंदगी से जुड़े हुए पहलुओ पर विचार करें ,तत्पश्चात यह तय करें की आप किसको वोट करेंगे । यह देश आपका है आपको कदम उठाने होंगे ,इसको ठीक करने के लिए । आपके सामने बड़े-बड़े करोड़पति , अरबपति उमीदवार और उनकी पार्टिया है । उनकी चमचमाती हुई मोटरें आप देख रहे है। तय कीजिये की इनको वोट देना है या नही?
-डॉक्टर रामगोपाल वर्मा
समाप्त
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