कोकिल कूकत झरन पै अस बौरत बाग़ वसंत के आए।
फूलन फूलि जगावत प्रभु बजावत साज बसंत के आए ।
प्रेम पयोधि में डूबे हुए अलि गावत राग वसंत के आए ।
ऋतुराज आवत सुनी प्रिय ने तव आवत आज वसंत के आए॥
बिखरी बिखरी अलको में सजी छवि सुन्दर मौन दिखा गई राधा।
अभिराम हँसी अधरों पे लिए कछु ऐसा ही रंग जमा गई राधा ।
अंग प्रत्यंग रंगारस रंग कुछ ऐसा ही रंग जमा गई राधा।
आखिन काजर,काजर कोर से प्रेमवियोग जता गई राधा ।
स्वारथ को परमारथ को वस श्याम से लागत लगी रहना है।
चाहे सायानी अयानी कहो पर प्रेम के रंग रंगी रहना है।
मान गुमान नही कुछ है वस मोहन की ही बनी रहना है।
नैनन,वैनन,सेनन सो जो कहानी कही सो धरी रहना॥
अलि जानो नही यह प्रेम है क्या हम यामैं डूबी की डूबी रहे ।
मिलने की कबो नहि चाह हमे रस रंग में भीगी रहे।
मनमंहि वसे अइसे मोहन है जैसे सीपी के बीची मा मोती रहे ।
अखियाँ जब बंद हमारी भई हरी सो गर लागी की लागी रहे॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
No comments:
Post a Comment