समझ में नही आ रहा की भारतीय जनता पार्टी के तथा कथित सांस्कृतिक राष्ट्रवादी नेताओं को रह रह कर कायदे-आज़म जिन्ना की यादक्यों सताती रहती है है । पहले तो लाल कृशन आडवानी ने जिन्ना की प्रशंसा की । अपनी ही पार्टी में आडवानी जी का विरोध हुआ उससे जसवंत सिंह जी ने कोई शिक्षा नही ली। यूँ तो तो लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी है, किंतु भारतीय जनता पार्टी के नेता ये क्यों भूल जाते है की उन पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ डंडा चलता है। ये एक तथ्य है की विभाजन के लिए जिन्ना उतरदायी है। महात्मा गाँधी विभाजन नही चाहते थे। किंतु बी.जे.पी के नेता किसी न किसी तरह महात्मा गाँधी और जवाहर लाल नेहरू को अपमानित करना चाहते है , इसलिए बार बार जिन्ना की प्रशंसा करते है। जसवंत सिंह अपने को बड़े कद का नेता मानते रहे है , उन्हें ये जरा भी उम्मीद नही थी की इस तरह बेआबरू करके उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाएगा। न तो किसी ने पुस्तक पढ़ी न ही उनसे कोई सफाई मांगी गई। जसवंत सिंह जी की पुस्तक के विमोचन समारोह के चित्रों में हिन्दी के प्रख्यात आलोचक और राष्ट्रीय प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष नामवर सिंह भी दिखाई दे रहे है। ये उनकी निजी स्वत्रंता ही की वे किसी भी समारोह में जा सकते है। उनसे ये कौन पूछ सकता है की आप भारतीय जनता पार्टी के नेता की पुस्तक समारोह में क्यों मौजूद थे और क्या आप जसवंत सिंह के विचारों से सहमत है। चुनाव में हारके बाद पार्टी में कलह रुक नही रही है। दरअसल पार्टी के पास अब कोई मुद्दा नही रहा है सिवाय आत्मचिंतन के.
20.8.09
जिन्ना का जिन्न
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1 comment:
सब साले कुत्ते हैं.नाम कुछ भी रख लो!!!!!!?????......
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