(मैं यह पोस्ट बीबीसी हिन्दी के ब्लॉग खरी-खरी से उधार लेकर यहाँ चस्पा रहा हूँ क्योंकि मुझे लगता है की हमारे ज्यादातर पत्रकारों की रिपोर्ट में, पत्रकारिता के इस आवश्यक तत्व की कमी दिखती है और इस लेख के असली लिखवैया " ने बड़े ही सहजता से इसे बयान किया है। हम सभी पत्रकारों के लिए)
पत्रकारिता की अपनी सीमाएँ हैं.किसकी नहीं हैं?
तालेबान कमांडर बैतुल्लाह महसूद ने पहले पाकिस्तानी सेना की सीमाओं का एहसास कराया और अब अनजाने में पत्रकारिता का भी.
इस महत्वपुर्ण लेख को पूरा पढने के लिए मेरे ब्लॉग पर आयें -www.qalamse.blogspot.com
आपके प्रोत्साहन से हिम्मत मिलेगी......
No comments:
Post a Comment