किसी शाम कभी आँचल का किनारा देना
मैं अगर डूब के उभरूँ तो सहारा देना
तेरी उल्फत में मुकम्मल हूँ हर पहलु से
मुझे दर्द भी देना तो सारा देना ।
मैं अगर डूब के उभरूँ तो सहारा देना
तेरी उल्फत में मुकम्मल हूँ हर पहलु से
मुझे दर्द भी देना तो सारा देना ।
मैं तुझे ग़म के समंदर में किनारा दूँगा
तू मुझे हिज्र के तूफ़ान में सितारा देना
मैं तेरी याद के सेहरा में कही रहता हूँ
कभी आना तो हल्का सा इशारा देना॥
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1 comment:
अच्छे मुक्तक.............
प्यारे मुक्तक..........
बधाई !
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