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2.9.09

लो क सं घ र्ष !: यह रीती-नीति जगपति की...


निर्मम नर्तन है गति का ,
है व्यर्थ आस ऋतुपति की
छलना भी मोहमयी है,
यह रीती-नीति जगपति की

आंसू का क्रम ही क्रम है,
यह सत्य शेष सब भ्रम है
वेदना बनी चिर संगिनी,
सुख का तो चलता क्रम है

उद्वेलित जीवन मग में,
बढ़ चलना धीरे-धीरे
प्रणय, मधुर, मुस्कान, मिलन,
भर लेना मोती-हीरे

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

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