पेंटागन ने युद्धविरोधी महान शांतिकामी पुरूष नॉम चोम्स्की को सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित करने का फैसला किया है। पेंटागन के द्वारा पुरस्कार पाना,चोमस्की के जीवन की सबसे बड़ी आयरनी है। देखना है कि वे यह पुरस्कार लेते हैं या ठुकराते हैं। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में शांति के पक्ष में और युद्ध के खिलाफ जनता को गोलबंद करने,सारी दुनिया में शांति का संदेश फैलाने और सारी दुनिया की युद्धविरोधी ताकतों के नॉम चोमस्की प्रतीक पुरूष माने जाते हैं। अमेरिका में उनकी किताब 'इंटरवेंशन' पर पाबंदी भी लगायी गयी थी। यह किताब गुआनतामोवे के यातना शिविर के बारे में रोशनी डालती है। पेंटागन ने यह सम्मान चोमस्की को क्यों दिया यह अभी भी रहस्य है। अमेरिकी नौसेना के प्रवक्ता ले.कमांडर ब्रूक दे वेल्ट ने 'मियामी हेरल्ड' को बताया कि चोम्स्की की किताब 'इंटरवेशन' में यातना शिविर के नकारात्मक प्रभाव की ओर ध्यान खींचा गया था और 'गुड ऑडर और डिसीप्लीन' पर जोर था,इसीलिए पेंटागन ने उन्हें सम्मानित करने का फैसला किया है।
चोमस्की को जब पेंटागन के सम्मान की खबर दी गयी तो उन्होंने 'मियामी हेरल्ड' को गुस्से में कहा कि कभी कभी सर्वसत्तावादी सरकारें ऐसा करती हैं। गुआनतामो बंदी शिविर में जब एक कैदी को उसके वकील के जरिए 'इंटरवेंशन' किताब देने की कोशिश की गयी थी तो उस समय बंदी शिविर के अधिकारियों ने वह पुस्तक कैदी को देने से मना कर दिया था। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में सलमान रूशदी की सैटेनिक वर्सेज' पर भी पाबंदी लगायी गयी थी और यह कहकर पाबंदी लगायी गयी कि यह किताब अमेरिका विरोधी है,यहूदी विरोधी है। पेंटागन के द्वारा चोम्स्की को सम्मानित किए जाने पर उनके समर्थक गुस्से में हैं।
चोम्स्की के अनुसार सामयिक दौर में ''प्रिवेंटिव वार'' अमरीकी प्रशासन की महान रणनीति है । यह युध्द रोकने की नीति नहीं है। यदि यह युध्द रोकने की नीति होती तो इसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत लागू किया जाता। किंतु नयी नीति का लक्ष्य है युध्द को बनाए रखना। आगे बढ़कर हमला करना। इसके प्रयोग ग्रेनाडा से लेकर इराक तक देखे जा सकते हैं। यह आत्मरक्षा के नाम पर अपनायी गयी नीति है। ''प्रिवेंटिव वार'' की नीति युध्दापराधों के दायरे में आती है। नयी महारणनीति का लक्ष्य है अमरीका की '' शक्ति,अवस्था और सम्मान'' की रक्षा करना। असल में ''प्रिवेंटिव वार'' की नीति का सन् 1963 में व्यापक तौर पर क्यूबा के खिलाफ इस्तेमाल किया गया।
चोम्स्की ने लिखा है आतंक के खिलाफ जारी मुहिम का लक्ष्य है प्रशासन बदलना। सरकारों को गिराना और अस्थिर करना। इस नीति के आधार पर अमरीका अपने पास अबाध शक्ति रखना चाहता है। ''प्रिवेंटिव वार'' की लाक्षणिक विशेताएं हैं - 1. यह पूरी तरह असुरक्षित बना देता है। 2. अनिवार्यत: परेशानियां पैदा करता है। 3. जिनके खिलाफ इसका इस्तेमाल किया जाता है उनके बारे में कहा जाता है कि वह शैतान है और उससे हमारे अस्तित्व के लिए खतरा है। ये तीनों तत्व इराक पर घटते हैं। चोम्स्की ने ''हेजेमनी और सर्वाइवल'' में लिखा है '' नयी विश्व व्यवस्था अमरीकी अर्थव्यवस्था और राजनीतिक नियंत्रण के मातहत रखती है।'' इसका प्रधान तर्क है '' जो हमारे लिए अच्छा है वह दुनिया के लिए अच्छा है।''
चोम्स्की ने रेखांकित किया है कि अमरीकी साम्राज्यवाद ने मौजूदा दौर में '' आतंक के खिलाफ मुहिम' के नाम पर जो प्रचार अभियान छेड़ा हुआ है उसमें अमरीकी पहलकदमी के जरिए स्वर्त:स्फूर्त्त भाव से कत्लेआम, यातना और बर्बरता ये तीनों तत्व चले आए हैं। इनका धीरे- धीरे अन्य इलाकों में भी विस्तार किया जा रहा है। यह समूची प्रक्रिया 1980 के बाद से चल रही है।
द्वितीय विश्व युध्द की समाप्ति के बाद अमेरिका ने नाजियों के यूरोप में काउंटर आतंक का व्यापक पैमाने पर अध्ययन किया। पहले उन्होंने इसे पकड़ा और बाद में स्वयं ही कुछ लोगों के खिलाफ लागू कर दिया।खासकर भू.पू. प्रतिरोधी संगठनों के खिलाफ।
चोमस्की के अनुसार प्रतिआतंक (काउंटर टेरर) की पध्दति और काउंटर इन्सर्जेंसी की पध्दति मूलत: नाजी पध्दति है।इसमें विवाद को तनाव के न्यूनतम बिंदु तक रखा जाता है।इस पध्दति का सिर्फ नाजियों ने ही इस्तेमाल नहीं किया अपितु पश्चिमी सभ्यता के नेताओं ने भी इस्तेमाल किया। चोम्स्की के अनुसार आतंकवाद कमजोर का अस्त्र नहीं है।यह अस्त्र है उनका जो 'हम' के खिलाफ हैं।यह 'हम' कोई भी हो सकता है।
चोम्स्की ने अमेरिकी संस्कृति की प्रकृति पर रोशनी डालते हुए कहा कि हमारी (अमेरिकी) संस्कृति उच्च संस्कृति है।ऐसा सभी सोचते हैं।एक तरह से यह दबाने की संस्कृति है। वर्चस्वशाली संस्कृति है। किंतु यह कहीं सुनाई नहीं देता। अमेरिकी प्रचार और नीतियों का ऐसा दबाव है कि इससे कौन पीड़ित हैं हम यह नहीं जानते।
चोमस्की के अनुसार यह 'कारपोरेट पूंजीवादी-राज्य' का युग है। यह ''पूंजीवाद'' और ''बाजार व्यवस्था'' से काफी अलग है। इसमें इन दोनों के तत्व शामिल हैं। इसी अर्थ में पुराने पूंजीवाद का अंत हो गया है। '' पूंजीवाद का अंत'' (2006) में लिखा यह व्यवस्था निश्चित रूप से बदलेगी। इसका अतीत रहा है। निवेशक के अधिकारों में परिवर्तन आया है। इस व्यवस्था से जिन लोगों को लाभ मिलना चाहिए था (खासकर अमरीका में सीमित रूप में ) उनसे लोकतंत्र को मिलने वाली चुनौती को सीमित कर दिया गया है।
जनप्रिय नव्य-उदारतावादी उपायों के माध्यम से जनता को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है। यह कैसे विकास करेगा और कहां तक लोग इसे सहन करेंगे ,यह हम नहीं जानते। मानवीय कार्य-व्यापार के बारे में पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। इस तरह की विशिष्ट एवं जटिल परिस्थितियों को गहराई में जाकर समझना थोड़ा मुश्किल होता है। क्योंकि सब कुछ चयन और इच्छाशक्ति पर निर्भर है।
चोमस्की ने कारपोरेट पूंजीवादी राज्य को असफल राज्य की संज्ञा दी है। साथ ही इसे सत्ता के दुरूपयोग और जनतंत्र पर हमले का औजार माना है। नयी पूंजीवादी दुनिया में युध्द खत्म नहीं हुए बल्कि निरंतर युध्दों का आयोजन किया जा रहा है। अब पूंजीवादी शक्तिशाली देश युध्दों की निंदा नहीं करते बल्कि युध्दों का आयोजन करते हैं, युध्द के लिए बहाने तलाशते हैं और जबरिया युध्द थोप देते हैं।
चोमस्की के अनुसार कारपोरेट पूंजीवाद के अपार मुनाफों का स्रोत है युध्द और असमान आर्थिक विकास। अब कल्पित आधारों पर आत्म रक्षा के नाम पर हमले किए जा रहे हैं। मानवीय अस्तित्व को इससे खतरा पैदा हो गया है। राष्ट्र-राज्य की संभुता को खतरा पैदा हो गया है। किसी भी व्यक्ति और देश को आत्मरक्षा और सुरक्षा के लिए खतरे के नाम पर ''कल्पित खतरे'' का हौवा खड़ा करके निशाना बनाया जा सकता है,हमला किया जा सकता है, गिरफ्तार किया जा सकता है, बगैर मुकदमा चलाए जेल में बंद रखा जा सकता है। सार्वभौम नियमों,कानूनों और नैतिकता का उल्लंघन किया जा रहा है।
कारपोरेट पूंजीवाद पूरी तरह भाषणों, गप्पबाजी, किस्सों आदि पर टिका है। इसमें न तो कोई नैतिकता है और न सच को जानने अथवा बताने का ही आग्रह है। भाषण को मीडिया के प्रौपेगैण्डा के जरिए अपदस्थ कर दिया गया है। मीडिया से बार-बार पुनरावृत्ति और अहर्निश प्रसारण ने सभी किस्म के तार्किक वातावरण को कुंद कर दिया है अथवा अप्रासंगिक बना दिया है।
अब तर्क प्रमुख नहीं है। सही और गलत को जानने में लोगों की दिलचस्पी नहीं है। सिर्फ मीडिया में चीजों को आते रहना चाहिए, मीडिया का प्रौपेगैण्डा ही सत्य का पर्याय बन गया है। फलत: सच और झूठ में फ़र्क करना तो दूर की बात है अब यथार्थ को भी देखने के लिए लोग तरस गए हैं। मीडिया में अब प्रौपेगैण्डा चुटीला,आकर्षक और मन बहलाने वाला होता है। प्रौपेगैण्डा के तर्कों को हम सच मानने लगे हैं। यथार्थ मानने लगे हैं।
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