औरत.... क्या है औरत?
जन्म के समय जिसे न वो प्यार मिले,
जन्म के समय जिसे न वो प्यार मिले,
जिसे दो वक़्त कि रोटी भी उधर मिले,
जो भाइयो के लिए अपनी पढाई का त्याग करे,
माँ-बाप के वात्सल्य का जो इन्तेजार करे... वही है औरत
जिसकी उम्र के साथ लोगों कि निगाहें बढ़ने लगे
हर चौक से गुजरने में जिसे डर लगने लगे
हर अजनबी को देख जिसकी धड़कने बढ़ने लगे
जो घर में भी सुरक्षित न महसूस करे... वही है औरत
जिसे पेट भरने कि खातिर अपनी देह बेचनी पड़े
जिसे हर बात पर पुरुषों के जुल्म सहने पड़े
जिसे सबके साथ भी अकेले रहना पड़े
जो कभी अपना दुःख किसी से न कह सके... वही है औरत
और आज की औरत पर एक नजर....
जिसके १०-१२ प्रेमी हो और उसके नखरे सहे
जिसके शादी के बाद भी एक दो प्रेम-सम्बन्ध रहे
जिसकी हर बेजरूरत चीजों के लिए उसका पिता फिर पति सहे
जो किटी पार्टी में बैठ ससुराल की बुराई करे
जिसे बच्चे बिगड़ रहे है इसका ध्यान न रहे
जिसे घर कि किन्ही बातों का ज्ञान न रहे... वो भी है औरत...
2 comments:
बिल्कुल सही कहा है।अच्छी रचना है । मगर इसके लिये जिम्मेदार कौन है ये भी लिखते तो और भी अच्छा था शुभकामनायें
अच्छा प्रयास.......
औरत को समझने का प्रयास ..........हा हा हा हा हा हा
एक औरत ही यह काम कर सकती है बन्धु !
अपने बस की बात नहीं........
वरना कोई भी औरत आज मर्द से परेशान नहीं होती और कोई भी मर्द औरत से हैरान नहीं होता,,,,,
फ़िर भी आप प्रयास कर रहे हैं तो ..शुभ कामनाएं............
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