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17.10.09

आओ मन का दीप जलाएं


हर रस्ते में दीप जले हैं, हर घर में उजियारा है
क्‍यों उदास बैठा है प्यारे, मन में क्‍‍यों अंधियारा है
यह उत्सव का मौका है, इसको व्यर्थ न जाने दो
निकलो खुश होकर तुम घर से, यह दिन सबसे प्यारा है

1 comment:

Unknown said...

अति उत्तम काव्य.......

वाह !


आपको और आपके परिवार को दीपोत्सव की

हार्दिक बधाइयां