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24.10.09

चीन में सेंसरशि‍प और गुलामी का वैभव

चीन में मीडिया नियंत्रण के तरीके क्या हैं ? पहला, यदि कोई पत्रकार चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की पसंद के खिलाफ लिखता है तो पदावनति कर दी जाती है या नौकरी से निकाल दिया। दूसरा, सरकारी अधिकारियों के खिलाफ लिखने के कारण जुर्माने ठोंक दिए जाते हैं। अथवा प्रकाशन संस्थान को धमकी दी जाती है। पत्रकारों पर जुर्माने या दण्डात्मक कार्रवाई कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना करने से लेकर किसानों से घूस लेने वाले अधिकारी के खिलाफ लिखने तक किसी भी मसले पर दंड दिया जा सकता है। तीसरा, अगस्त 2007 में चीन प्रशासन ने आपात्कालीन कानून बनाकर दंगे,तबाही,एवं अन्य आपात्कालीन स्थितियों में अपुष्ट सूचनाओं के प्रकाशन को अवैध करार दिया है। इस कानून का उल्लंघन करने पर मीडिया पर साढ़े बारह हजार डालर तक का जुर्माना किया जा सकता है। कालान्तर में इस कानून को और भी ज्यादा अस्पष्ट भाषा में तैयार किया गया।

सन् 2005 की सरकारी रिपोर्ट के अनुसार चीन में 338 प्रकाशन बंद किए गए। इनका तथाकथित अपराध था कि उन्होंने आंतरिक सूचनाएं प्रकाशित कीं। सन् 2007 में चीन में 29 पत्रकारों को जेलों में डाल दिया गया। इन्हें नौ साल की सजा सुनाई गयी है। आधुनिक प्रेस के इतिहास में यह सबसे बड़ी दण्डात्मक कार्रवाई है। इनमें दो तिहाई पत्रकार वे हैं जिन्होने इंटरनेट पर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की हैं। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता के खिलाफ लिखने के कारण चिंग चियोंग को सन् 2005 में गिरफ्तार किया गया और पांच साल की सजा सुनाई गयी इसके अलावा एक साल के लिए राजनीतिक अधिकार छीन लिए गए। इस पत्रकार की गिरफ्तारी का हांगकांग की प्रेस की आजादी पर बहुत बुरा असर हुआ।

ओलम्पिक खेलों को मद्देनजर रखते हुए चीन प्रशासन ने एक जनवरी 2007 से 27 अक्टबर 2008 तक विदेशी पत्रकारों को सभी किस्म की स्वतंत्र रिपोर्टिंग की अनुमति दी थी। इसके बावजूद विदेशी पत्रकारों का उत्पीड़न थमने का नाम नहीं ले रहा। ' विदेशी पत्रकार क्लब चीन' ने प्रेस को जानकारी दी है कि नए कानून के लागू किए जाने के बाद विदेशी पत्रकारों के उत्पीड़न,गिरफ्तारी,हमले और परेशान करने की 180 घटनाएं दर्ज की गई हैं। इस आदेश के बावजूद चीन के इंटरनेट पहरेदार सूचनाओं को लगातार छानने का काम कर रहे हैं। अनेक मामलों में सूचना छानने की तकनीक को माइक्रोसॉफ्ट,याहू और गुगल से हासिल किया गया है।

पत्रकारिता के स्वतंत्र मानकों के खिलाफ सितम्बर 2006 में एक अन्य बुरा कानून बनाया गया। जिसके अनुसार विदेशों से आने वाली आर्थिक खबरें सिर्फ चीनी समाचार एजेंसी सिंहुआ के जरिए ही वितरित की जा सकती हैं। जिससे आर्थिक सूचनाओं की निगरानी और सेंसरशिप की जा सके। अमरीकी प्रशासन के अनुसार चीन में 30 से लेकर पचास हजार तक इंटरनेट निगरानी चौकियां हैं। जिनके जरिए निगरानी रखी जा रही है।

इस सबके बावजूद पत्रकारों ने अपनी अभिव्यक्ति के नए तरीके निकाल लिए हैं। बड़े पैमाने पर इंटरनेट ब्लॉग आ गए हैं।इसके अलावा अन्य मीडिया रूपों में भी नए प्रयोग हो रहे है। खासकर राजनीतिक व्यंग्य खूब लिखा जा रहा है। व्यंग्य के जरिए पत्रकार अपने को अभिव्यक्त कर रहे हैं। पत्रकारों को चीन में दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है एक ओर चीन की सत्ता की चुनौती है और दूसरी ओर पाठकों की ठोस खबरों की मांग है। चीन की सत्ता चाहती है चीन की जनता को ठोस खबरें मत दो और जनता चाहती है कि चीन की ठोस खबरें दो। इस दोहरी चुनौती के बीच में प्रेस की आजादी का विकास होगा। उसे रोकना संभव नहीं है। उल्लेखनीय है सन् 2003 में सार्स महामारी की खबरों को चीन प्रशासन द्वारा दबाने की कोशिशें फेल हो गयीं। प्रेस ने जमकर सार्स की महामारी की रिपोर्टिंग की। इसके अलावा सन् 2005 में उत्तरपूर्व स्थित शहर हर्बिन की नदी में जहरीले रसायन के मिल जाने और पानी के विषाक्त हो जाने की खबर को मीडिया और वेब में उछाला और सरकार की तीखी आलोचना भी की ।

चीनी मीडिया किस तरह असत्य का प्रचार करता है इसका एक ही उदाहरण देना काफी होगा। जनवरी 2008 के मध्य में चीन में भयानक बर्फबारी हुई। इतनी भयानक बर्फ पड़ी कि लाखों लोगों की जिंदगी पर बन आयी। लोगों का मानना था कि ऐसी बर्फबारी विगत एक दशक में नहीं हुई थी। बर्फबारी के कारण लाखों माइग्रेट वर्करों ने अपनी घर जाने की योजना रद्द कर दी। इन दिनों ये मजदूर साल में एक बार नववर्ष के अवसर पर अपने घर परिवारीजनों से मिलने जाते हैं। बर्फबारी के कारण प्रभावित इलाकों में भयानक सर्दी पड़ी, तापमान शून्य से काफी नीचे चला गया। बिजली बंद हो गयी।पीने के पानी का अभाव हो गया। लाखों लोग अचानक प्राकृतिक आपदा की चपेट में आ गए। बर्फबारी के कारण सरकारी अनुमान के अनुसार 7.5 विलियन डॉलर की संपत्ति का नुकसान हुआ। सवा दो लाख मकान पूरी तरह नष्ट हो गए और तकरीबन पौने नौ लाख आंशिक तौर पर नष्ट हो गए।

इन परिस्थितियों में प्रशासन एकसिरे से नकारा साबित हुआ। बिजली,पानी,ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था बहाल करने में प्रशासन असफल रहा दूसरी ओर मंहगाई ने लोगों की रही सही कमर भी तोड़ दी। सरकार की असफलता के खिलाफ हजारों लोगों ने प्रतिवाद जुलूस निकाले। हूनान प्रांत के चेन झाओ क्षेत्र में प्रभावित क्षेत्रों में प्रधानमंत्री ने दौरा भी किया इसके बावजूद दो सप्ताह तक बिजली गुल रही। लाखों लोग माइनस आठ डिग्री तापमान में बगैर किसी छत के पड़े रहे । दो सप्ताह तक समूचे इलाके में पीने के पानी का अभाव था। किसी तरह सारा इलाका मोमबत्तिायों से जल रहा था। मोमबत्तिायों के दाम आकाश छू रहे थे। पानी और पेट्रोल के लिए विशाल लम्बी कतारें लगी थीं। स्वचालित टेलर मशीनें बंद पड़ी थीं। किंतु सरकारी टीवी चैनल सीसीटीवी यही प्रचार कर रहा था कि प्रभावित इलाकों में बिजली आ गई है। स्थिति तेजी से सामान्य हो रही है। राहत कार्य जारी हैं। जबकि वास्तविकता इसके विपरीत थी। गार्जियन अखबार से लेकर बीबीसी तक सभी मीडिया सरकारी प्रचार को बेपर्दा कर रह । बीबीसी ने कहा कि बिजली की सामान्य स्थिति बनने में कम से कम पांच महिने लगेंगे। एजेंसी फ्रांस प्रेस ने लिखा परिवहन व्यवस्था में अराजकता का आलम यह था कि गुआंगडोंग क्षेत्र में काम करने वाले 30 मिलियन मजदूरों में से 12 मिलियन मजदूरों को घर जाने के लिए टिकट ही नहीं मिले। उल्लेखनीय है कि नववर्ष पर ही पति-पत्नी मिल पाते हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा पारिवारिक मिलन समय है। पूरे साल पति-पत्नी एक-दूसरे से अलग रहते हैं। बच्चे अपने पिता से मिलते हैं।

बर्फबारी के कारण इतनी अव्यवस्था फैली कि समूची परिवहन व्यवस्था में अराजकता छा गयी और इस अराजकता को दूर करने का कोई भी प्रयास प्रशासन के द्वारा नहीं किया गया। उलटे चीनी चैनलों के द्वारा प्रचारित किया गया कि सैनिकों और मजदूरों के द्वारा बहादुराना सहायताकार्य किया जा रहा है। बार-बार पीड़ितों को सरकारी अधिकारियों के द्वारा दिए गए छोटे से सहायता पैकेज के साथ दिखाया जा रहा था। सरकारी प्रचारतंत्र ''बर्फबारी के आतंक के खिलाफ युध्द की घोषणा'' कर रहा था। साथ ही चीनी चैनल प्रचार कर रहे थे कि हम सब विशाल परिवार का हिस्सा हैं आओ हम मि‍लकर संघर्ष करें। आश्चर्य की बात यह थी कि चीनी टीवी पर बर्फबारी से पीड़ितों के चेहरे कहीं पर भी नजर नहीं आ रहे थे लाखों मजदूरों को टिकट नहीं मिल पाए उनके गुस्से का कहीं पता नहीं था। गोया सब कुछ ठीक है !

स्थिति इस कदर भयावह थी कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने दस प्रान्तों के पार्टी सचिवों को राहतकार्यों की देखभाल के लिए तुरंत प्रभावित इलाकों में भेज दिया। तकरीबन तीन लाख सैनिक और ग्यारह लाख सुरक्षित सैनिक और दस लाख पुलिस के जवानों को राहत कार्यों में लगाया। इसके बावजूद अराजकता, अव्यवस्था और परेशानियों से दो सप्ताह तक लोगों को राहत नहीं मिली। लाखों मजदूरों को घर जाने के टिकट नहीं मिल पाए,रेलवे स्टेशनों पर जबर्दस्त अराजकता छायी हुई थी। स्थानीय प्रशासन के हाथ पैर फूले हुए थे। उन्हें डर था कि कहीं घर न जा पाने वाले मजदूर बबाल खड़ा न कर दें। इस सबके बावजूद सीसीटीवी पर सब कुछ सामान्य था।

कहने का तात्पर्य यह चीनी मीडिया सच नहीं बोलता और न चीन का प्रशासन ही सच बोलता है। मजदूरवर्ग बगावत पर आमादा न हो जाए इसके लिए मीडिया से अहर्निश चीन के इतिहास,संस्कृति आदि का जयगान चलता रहता है और प्रतिवाद और प्रतिरोध की खबरें एकदम नहीं दिखाई जातीं। भयानक बर्फबारी के कारण चीनी प्रशासन डरा हुआ था कि कहीं मजदूरों का गुस्सा फूट पड़ा तो विकास के आदर्श मॉडल पर कलंक का टीका लग जाएगा ।

उल्लेखनीय है चीन में बीस करोड़ माइग्रेंट मजदूर काम करते हैं। इनके पास स्थायी निवास का परमिट नहीं है। इन्हें तरह-तरह की समस्याओं और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। वे जिन शहरों में काम करते हैं वहां पर इनके पास बुनियादी सुविधाओं तक का अभाव है। इन मजदूरों का मूल लक्ष्य है बड़े कारपोरेशनों के लिए मुनाफा पैदा करना। इनके पास रहने और जीने की बुनियादी सुविधाओं के अभाव के अलावा न्यूनतम साल में एक बार घर जाने के लिए परिवहन की सुविधाएं तक नहीं हैं। एसोसिएटस प्रेस ने लिखा है गुआंग जू प्रान्त में परिवहन का संकट इस कदर हावी है मजदूरों को समय पर टिकट नहीं मिल पाते, इस क्षेत्र के कारखानों में काम करने वाले मजदूर कठिन परिस्थितियों में रहते हैं। उनका वातावरण काफी बोरियत भरा होता है। इनके पास न सोने की जगह है और नहीं अन्य बुनियादी सुविधाएं हैं। ये अपनी कुर्बानियों के जरिए कारपोरेट घरानों को मुनाफा दे रहे हैं और दुनिया के लाखों मजदूरों की रोटी छीन रहे हैं। ये मजदूर गुलामों से भी बदतर परिस्थितियों में रहते हैं किंतु प्रतिवाद नहीं करते।

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