हमारी न्याय व्यवस्था पर भारतीय जनमानस का अटूट आस्था और विश्वाश था कि यह एक स्वतन्त्र,
निष्पक्ष,
और भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था है किंतु इस बीच कुछ घटनाएँ प्रकाश में आई है जिससे जनता कि आस्था और विश्वाश को भारी धक्का लगा है।
जिसमें प्रमुख रूप से यह है कि अभी कुछ दिन पूर्व उडीसा उच्च न्यायलय के न्यायधीश माननीय ललित कुमार मिश्र को जिला जज कि परीक्षा में कुछ उम्मीदवारों के नम्बर अपने हाथ से बढ़ाने का मामला प्रकाश में आया और उनको हटाने कि सिपरिश उडीसा उच्च न्यायलय के कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश आई.
ऍम.
कुद्दुशी ने हटाने कि सिफारिश कि है माननीय मुख्य न्यायधीश के.
जी बालाकृष्णन ने कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सोमित्र सेन पर महाभियोग चलाने की सिफारिश की है ।
दिसम्बर 2008
में प्रधान न्यायधीश द्वारा गठित समिति ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति निर्मल यादव।
सितम्बर 2009 में सुप्रीम कोर्ट कि कोलेजियम समिति ने कर्णाटक हाई कोर्ट के जज श्री पी.
डी.
दिनकरन के मामले पर विचार कर रही है ।
यह कुछ मुख्य मामले है ।
यदि गहराई से देखा जाए तो बहुत सारे मामले प्रकाश में आयेंगे ।
इन मामलो के प्रकाश में आने के कारण हमारी न्याय व्यवस्था से जनता का विश्वाश उठता जा रहा है ।
माननीय उच्च न्यायलय कि किसी भ्रष्ट न्यायधीश को महाभियोग के माध्यम से हटाया जा सकता है जिसकी प्रक्रिया अत्यधिक जटिल है ।
जैसे राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है वही प्रक्रिया माननीय उच्च न्यायलय के न्यायधीश को हटाने की है । उच्च पदस्थ इन न्यायिक अधिकारीयों को के क्रिया कलापों से जनता आहत है । दूसरी तरफ़ 30 सितम्बर 2009 तक हाई कोर्ट के न्यायधीशो को अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजानिक करना था । यदि ऐसा हमारे न्यायमूर्तियों ने किया होता तो शायद जनता का विश्वाश उनके प्रति और बढ़ता किंतु दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णय के बाद भी अपनी संपत्ति का ब्यौरा न देना और हीलाहवाली करना जनता के विश्वाश को ठेस पहुंचता है । दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णय के विरूद्व सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा रही है की सूचना के अधिकार के तहत संपत्ति का ब्यौरा नही दिया जा सकता है । ये सारे के सारे करती हमारी न्याय व्यवस्था के प्रति अविश्वाश पैदा करते है। अवमानना की कार्यवाही के डर से बहुत सारी चीजें प्रकाश में नही आ रही है इसलिए अब समय आ गया है कि अवमानना के कानून कि भी समीक्षा हो और अच्छा तो यह होता कि माननीय उच्चतम न्यायलय ही अवमानना के कानून पर स्वत: विचार करे।
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