दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मार्क्सवाद का विकास सर्वसत्तावादी शासन व्यवस्था के दौरान नहीं हुआ था। मार्क्स-एंगेल्स आदि जो मार्क्सवाद के प्रतिष्ठाता हैं उनका लेखन लोकतंत्र के वातावरण और अभिव्यक्ति की आजादी के माहौल की देन है। समाजवादी व्यवस्था के लोकतंत्रविहीन वातावरण की देन नहीं है। अत: मार्क्सवाद पर कोई भी सार्थक चर्चा लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी को अस्वीकार करके संभव नहीं है। किसी भी चीज, घटना, फिनोमिना आदि को मार्क्सवादी नजरिए से देखने के लिए लोकतंत्र के बुनियादी आधार पर खड़े होकर ही मार्क्सवाद के बुनियादी तत्वों की परख की जा सकती है। संभवत: मार्क्सवादियों को यह बात समझ में न आए। किंतु यह सच है कि मार्क्स-एंगेल्स के आलोचनात्मक विवेक के निर्माण में लोकतांत्रिक वातावरण की निर्णायक भूमिका थी। यदि मार्क्स-एंगेल्स कहीं किसी समाजवादी मुल्क में पैद हुए होते तो संभवत: मार्क्स कभी मार्क्स नहीं बन पाते। मार्क्स का मार्क्स बनना और फिर मार्क्सवाद का विज्ञान के रूप में जन्म लोकतांत्रिक वातावरण की देन है। जितने भी नए प्रयोग अथवा धारणाएं मार्क्सवाद के नाम पर प्रचलन में हैं उनके श्रेष्ठतम विचारक लोकतांत्रिक परिवेश में ही पैदा हुए थे। अथवा यों कहें कि गैर -समाजवादी वातावरण में ही पैदा हुए थे। ग्राम्शी,बाल्टर बेंजामिन, एडोर्नो, अल्थूजर, ब्रेख्त,फ्रेडरिक जेम्सन,रेमण्ड विलियम्स आदि सभी गैर समाजवादी वातावरण की देन हैं। इनके बिना कोई भी मार्क्सवादी विमर्श आगे नहीं जाता।
चीन के साठ साल के अनुभव की पहली शिक्षा है पूंजीवाद अभी भी प्रासंगिक है। ग्लोबलाईजेशन सकारात्मक और नकारात्मक दोनों एक ही साथ है। चीन का अनुभव उत्पादन के मामले में सकारात्मक है संपत्ति के केन्द्रीकरण के केन्द्रीकरण को रोकने के मामले में नकारात्मक है। एक पार्टी तंत्र के मामले में चीन का अनुभव नकारात्मक है। विकास के मामले में चीन का अनुभव सकारात्मक है। इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के मामले में चीन की सकारात्मक भूमिका है। समानता बनाए रखने के मामले में नकारात्मक भूमिका रही है। सामाजिक सुरक्षा के मामले में नकारात्मक योगदान रहा है और विकास के नए अवसरों के मामले में सकारात्मक भूमिका है। कम्युनिस्ट नेताओं की जनता के प्रति सक्रियता और वफादारी प्रशंसनीय है, लोकतंत्र के संदर्भ में नकारात्मक भूमिका रही है।
चीन के कम्युनिस्टों की देशभक्ति प्रशंसनीय है किंतु मानवाधिकारों के प्रति नकारात्मक रवैयये को सही नहीं ठहराया जा सकता। चीन के कम्युनिस्टों का धर्मनिरपेक्षता और विज्ञानसम्मत चेतना के प्रति आग्रह प्रशंसनीय है किंतु परंपरा और विरासत के प्रति विध्वंसक नजरिया स्वीकार नहीं किया जा सकता। चीन के कम्युनिस्टों की मुश्किल है कि वे एक ही साथ एक चीज गलत और एक चीज सही कर रहे हैं।
चीन में समाजवादी व्यवस्था नहीं है। चीन ने समाजवादी व्यवस्था और मार्क्सवाद का मार्ग उसी दिन त्याग दिया जिस दिन देंग जियाओ पिंग ने 1978 में घोषणा की थी कि चीन के विकास के लिए पूंजीवाद प्रासंगिक है।सामयिक दौर में पूंजीवाद के लिए इतना बड़ा प्रमाणपत्र किसी ने नहीं दिया। इसके बाद चीन का विकास पूंजीवाद के अनुसार हो रहा है। चीन की सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी खुलेआम पूंजीवादी मार्ग का अनुसरण कर रही है इसके बावजूद चीन के भक्त उसे समाजवादी देश क्यों कह रहे हैं ?
देंग ने सामयिक विकास के मार्ग को खुले दिल से स्वीकार किया। परवर्ती पूंजीवाद के मर्म को पहचाना और उसकी सही नब्ज पकड़ी। चीन का समाजवाद के रास्ते से पूंजीवाद के मार्ग पर आना बेहद मुश्किल और जोखिमभरा काम था। सोवियत संघ इस चक्कर में टूट गया। सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप के समाजवादी देश और कम्युनिस्ट पार्टियां बर्बाद हो गयीं। चीन की उपलब्धि है कि चीन टूटा नहीं।कम्युनिस्ट पार्टी खत्म नहीं हुई। चीन ने तेजी से पूंजीवाद का अपने यहां विकास किया और सामाजिक संरचनाओं का रूपान्तरण किया। यह प्रक्रिया बेहद जटिल और कष्टकारी रही है।
चीन ने जब पूंजीवाद का रास्ता अख्तियार किया तो उस समय पूंजीवाद भूमंडलीकरण की दिशा में कदम उठा चुका था। चीन ने पूंजीवाद का अनुकरण नहीं किया बल्कि असामान्य परवर्ती पूंजीवाद के सबसे जटिल फिनोमिना भूमंडलीकृत पूंजीवाद का अनुकरण किया। भूमंडलीकृत पूंजीवाद तुलनात्मक तौर पर ज्यादा जोखिमभरा है। ज्यादा पारदर्शी है। स्वभाव से सर्वसत्तावादी और जनविरोधी है। अमरीकी इसके चक्कर में प्रथम कोटि के देश से खिसककर तीसरी दुनिया के देशों की केटेगरी में आ चुका है। अमरीका में आज वे सारे फिनोमिना नजर आते हैं जो अभी तक सिर्फ तीसरी दुनिया के देशों की विशेषता थे।
चीनी जनता इस अर्थ में महान है कि उसने अपने देश के शासकों की बातों पर विश्वास किया और सबसे भयानक जोखिम उठाया। स्वेच्छा से सुरक्षित जीवनशैली वाले समाजवादी मॉडल को त्यागकर असुरक्षा वाले भूमंडलीकृत पूंजीवाद के मॉडल को स्वीकार किया और ईमानदारी के साथ उसे लागू किया। बड़े पैमाने पर संपदा पैदा की। चीन के समग्र तंत्र और संरचनाओं में नए सिरे से प्राणों का संचार किया।
नए भूमंडलीकृत पूंजीवाद में दाखिल होने से वस्तुओं,भवनों,सड़कों आदि इंफ्रास्ट्रक्चर का अभूतपूर्व विकास हुआ। साथ ही नयी सामाजिक संरचनाओं और वर्गों का भी उदय हुआ। चीन के विगत 35 साल के विकास की दो बड़ी उपलब्धियां हैं नयी विराटकाय भौतिक संरचनाओं का निर्माण और नए वर्गों के रूप में पूंजीपतिवर्ग और मध्यवर्ग का उदय। इसके अलावा क्षेत्रीय स्तर पर सत्ता और पूंजी के नए केन्द्रों का उदय। मसलन् पहले चीन में मध्यवर्ग नहीं था। नयी व्यवस्था आने के साथ तेजी से मध्यवर्ग पैदा हुआ है। आज चीन में मध्यवर्ग का सालाना एक फीसदी की दर से विकास हो रहा है। समाजविज्ञान अकादमी चीन के अनुसार सन् 2003 में दर्ज आंकड़ों के अनुसार सकल आबादी का 19 फीसदी हिस्सा मध्यवर्ग में आ चुका है।
चीन के मध्यवर्ग में 150,000 से 300,000 यूआन की संपत्ति के मालिकों को रखा गया है। अमरीकी डालर के अनुसार जिस व्यक्ति के परिवार के पास 18,072 -36,144 डालर तक संपत्ति है,वह मध्यवर्ग की केटेगरी में शामिल है। सन् 2020 तक चीन की कुल जनसंख्या का 40 फीसद मध्यवर्ग में पहुँच जाएगा।
देंग ने सही पहचाना था चीन में साम्यवाद ठहराव का शिकार हो गया था। उसका विकास बंद हो गया था। जब कोई विचारधारा अथवा व्यवस्था गतिरोध में फंस जाए तो उस गतिरोध से निकलना अपने आप में महत्वपूर्ण काम है। देंग ने साम्यवादी गतिरोध से चीन को निकालकर मानव सभ्यता की सबसे बड़ी सेवा की है। देंग ने माओ के द्वारा संचालित और प्रतिपादित रास्ते से एकदम हाथ खींच लिया और नया मार्ग चुना और इसे 'सुधार' का नाम दिया।
देंग के आने के बाद 'सुधार' पदबंध का व्यापक प्रयोग चीन की सैध्दान्तिकी और राजनीतिक भाषा में हुआ है। दूसरा पदबंध जो जनप्रिय हुआ है वह '' समृध्द बनो प्रभावशाली बनो।'' चीन का समूचा लेखन,चिन्तन और एक्शन इन दो पदबंधों के इर्दगिर्द घूमता रहा है। नियोजित अर्थव्यवस्था की जगह बाजार अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया गया। 'ऑटोक्रेसी' की जगह 'खुलेपन' की तरजीह दी गयी। जिसके कारण अर्थव्यवस्था में रोमांचित कर देने वाला उछाल आया।
''खुले दरवाजे' की नीति ने विदेशी पूंजी निवेश का मार्ग खोला और अनंत नयी संभावनाओं के द्वार खोले। सन् 1979 -1997 के बीच में विकासदर 9.8 प्रतिशत सालाना रही है। इसके फलस्वरूप सात करोड़ लोगों को दरिद्रता के स्तर से ऊपर उठाने में मदद मिली। चीन में बैंकों में नागरिकों के जमा धन में 220 गुना वृध्दि हुई। जनता की बैंकों में जमा पूंजी 21 विलियन यूआन ( तकरीबन 2.5 बिलियन अमरीकी डालर) से बढ़कर 4,628 बिलियन यूआन ( तकरीबन 550बिलियन डालर) हो गयी। कभी किसी एक पीढ़ी ने मानवसभ्यता के इतिहास में इतनी ज्यादा दौलत नहीं कमायी है। यह इस बात संकेत है कि विश्व पूंजीवादी विकास के मार्ग का सटीक अनुकरण किया जाए तो फल अच्छे हो सकते हैं ।
चीनी नागरिकों में ज्यादा से ज्यादा दौलत कमाने की भूख पैदा हो गयी है। जो अमीर हैं और बड़े अमीर होना चाहते हैं गरीब अपनी मुक्ति के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं। संपदा के पुनर्रूत्पादन ने नए किस्म का वर्ग विभाजन पैदा कर दिया है। आज अमरीकी सपने चीन के नागरिकों की फैंटेसी का हिस्सा हैं। कल तक चीन को मजदूरों का स्वर्ग कहा जाता था आज चीन अमीरों का स्वर्ग है। अप्रवासी चीनी नागरिकों का मानना है कि अमरीका में अमीर बनना बेहद मुश्किल है किंतु चीन में अमीर बनना आसान है। इस अनुभूति के कारण चीन के जो लोग बाहर रहते थे वे दौड़कर चीन आए और अपने अमीरी के सपनों को सबसे पहले उन्होंने साकार किया,बादमें बहुराष्ट्रीय निगमों ने इन सपनों को संपदा में तब्दील किया। आज चीन मजदूरों का देश नहीं सपनों का देश है ,अमीरों का देश है। जिस गति से चीन में अमीर पैदा हो रहे हैं उस गति से अमरीका,ब्रिटेन में अमीर पैदा नहीं हो रहे। चीन में पैदा हुई अमीरी की चमक ने सभी पंडितों को स्तब्ध कर दिया है।
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