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16.5.10

अशोक जमनानी की ग़ज़ल ''बंधन''

http://www.sxc.hu/pic/m/a/ac/acerin/479608_shaking_hands.jpg
तू बांधने चला मुझे मैं बंध न पाऊंगा
है प्रीत की ये रीत मैं कैसे निभाऊंगा

बादलों से जो गिरी वो पहली बूँद मैं
गिरके खो जाऊं कहां कैसे बताऊंगा

सूर्य की पहली किरण भोर का परिचय
जग को रोशनी  की सौगात दे जाऊंगा

जो उठी तेरे हृदय वो पहली पीर मैं
तुम भूलना मुझे तुम्हें मैं याद आऊंगा


                                    - अशोक जमनानी

4 comments:

मनोज कुमार said...

सूर्य की पहली किरण भोर का परिचय
जग को रोशनी की सौगात दे जाऊंगा
उत्तम ख़्यालात!

Unknown said...

वाह !

उम्दा ग़ज़ल.........

अरुणेश मिश्र said...

प्रशंसनीय ।

EKTA said...

excellent...
very nice thought..