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2.9.10

तुम ही कहो ?

Independence या In Dependence...?? क्या कहूँ तुम ही कहो....??

आज आमजन के लिए हर मुकाम पे गुलामी है
कब तक ये सब अत्याचार सहूँ तुम ही कहो?

सब को यहाँ बस अपनी ही फ़िक्र है आजकल
देश अपना चला है किस चहूँ तुम ही कहो?

आमजन के करूण क्रंदन, नेताओं का फिर भी वंदन,
स्वतंत्र हूँ या हूँ अब भी बंदित, क्या कहूँ तुम ही कहो...

क्रांति के स्वर विकल हैं स्वार्थ के बियाबान में
धारा के विपरीत एक दुर्बल कैसे बहूँ तुम ही कहो?

वैचारिक मुफ़लिसी में है आज मंदिर भी मस्जिद भी
गदर के लिए किस धर्म की शरण गहूँ तुम ही कहो?

मन में उथल पुथल मचती हो जब नग्न व्यभिचार पर
व्यक्त करूँ दिल की व्यथा या चुपचाप रहूँ तुम ही कहो?

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