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20.9.10

राजनैतिक रूप से चौंकाने वाले है अनुसुइया के दौरे-

पहले तो बुलाने से भी नहीं आतीं थीं। अब कुछ दिनों से आने के बहाने ढ़ूढ़तीं हैं। चौंकिये नहीं हम बात कर रहें हैं पड़ोसी छिन्दवाड़ा जिलक की भाजपा नेत्री एवं राज्यसभा सदस्य सुश्री अनुसुइया उइके की। भाजपायी बताते हैं कि पहले कई बार जिलें के कई कार्यक्रमों में जब उन्हें आमन्त्रित करते थे तो वे किसी ना किसी बहाने टाल जातीं थीं। लेकिन कहते हैं कि आजकल वे सिवनी आने के बहाने तलाशतीं हैं। उनके राज्यसभा का तीन चौथाई कार्यकाल भी समाप्त हो चला हैं। आजकल राज्यसभा के लिये प्रदेश को भाजपा ने बाहरी नेताओं का चारागाह बना दिया हैं। इसलिये हर बार एक ना एक राष्ट्रीय नेता प्रदेश से चुनकर राज्यसभा में जा रहा हैं। इसलिये आगे क्या होगा यह कहना आज तो सम्भव नहीं हें लेकिन राज्यसभा के दूसरे कार्यकाल के लिये टिकिट ला पाना उतना आसान भी नहीं हो पायेगा। वैसे सुश्री उइके प्रदेश में पटवा ग्रुप की मानी जाती हैं और उनके ही बल पर वे आज इस मुकाम पर हैं। पटवा जब छिन्दवाड़ा से कमलनाथ को हरा कर सांसद बने थे तब अनुसुइया ने उनका बहुत काम किया था। इसी चुनाव में तत्कालीन मन्त्री एवं केवलारी के इंका विधायक हरवंश सिंह पर कमलनाथ को हराने के आरोप भी लगे थे। प्रदेश के मुख्यमन्त्री भी पटवा के ही अनुयायी माने जाते हैं। कुछ दिनों से जबलपुर संभाग के सर्वमान्य आदिवासी नेता फगग्नसिंह कुलस्ते से शिवराज की पट नहीं रही है। वे इस बार मंड़ला लोकसभा क्षेत्र से चुनाव भी हार गये हैं। नये परिसीमन में जिले की लखनादौन और केवलारी विस सीट मंड़ला लोकसभा क्षेत्र में ही आती हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय हैं कि अनुसुइया 1993 में जिले के लखनादौन विस क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ चुकीं हैं। केवलारी क्षेत्र से तो अभी भी भाजपा ही जीती हैं। इन सब राजनैतिक कारणों सें सुश्री उइके के इन दौरों को नज़र अन्दाज नहीं किया जा सकता। यह भी हो सकता हें कि कुलस्ते की जड़ों में मट्ठा डालने के लिये इन दौरों को शिवराज का भी समर्थन हासिल हो। सुश्री उइके अपनी सांसद निधि से विकास कार्यों के लिये राशि भी दे रहीं हैं। वैसे उनके सभी कार्यक्रम सामाजिक रूप से आयोजित हों रहें हें लेकिन इनमें हो सकने वाली राजनीति से अनजान बने रहना एक भूल भी हो सकती हैं।वैसे तो प्रदेश भाजपा की उपाध्यक्ष होने के नाते उनका कार्यक्रम कोई अनुचित नहीं कह सकता लेकिन कुछ भाजपाइयों के इन कार्यक्रमों में परहेज से तो यही लगता हैं कि हो ना हो इन दौरों के पीछे कोई उच्च स्तरीय राजनीति जरूर हैं।

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