तार तार हुयी भाजपा में अनुशासन की चादर -
कभी पूरे देश में भाजपा सबसे अधिक अनुशासित पार्टी मानी जाती थी। भाजपा को भी इस बात पर नाज था। लेकिन राज पाठ मिलते ही ऐसा राजरोग लगा कि यह सब कुछ गायब ही हो गया। हाल ही में झारखंड़ में मुंड़ा की हुयी ताजपोशी के समारोह में यह सब कुछ पूरी तरह खुल गया। शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवानी सहित द्वितीय पंक्ति के कई राष्ट्रीय नेता शामिल नहीं हुये। आज भाजपा में ऊपर से लेकर नीचे तक यही हाल हैं। कहीं मुख्यमन्त्री और प्रदेश अध्यक्ष दो छोर पर खड़े दिखायी दे रहें हें तो कहीं जिले में भाजपा कई गुटों में बंटी दिखायी दे रही हैं। जिले में तो हालात यहां तक पुंहच गये हैं कि पार्टी के नेता ही एक दूसरे के खिलाफ अखबारबाजी कराने से भी नहीं चूक रहें हैं। समन्वय बनाने का काम जिन संगठन मन्त्री के जिम्मे हैं वे खुद ही कभी किसी के तो किसी के पक्षधर बन कर एक पार्टी बन जाते हैं। यही कारण हें कि संगठन मन्त्री खुद ही ना केवल विवादों के घेरे में आ गये हैं वरन अखबारों में सुखीZ भी बन रहें हैं।फिर यह तो एक सिद्धान्त ही हैं कि ताल मेल बनाने का काम करने वाला यदि खुद ही अपनी पसन्द और नापसन्दगी के दायरे में घिर जाये तो फिर वो काम या योग्यता के अधार पर सभी कार्यकत्ताZओं के साथ न्याय नहीं कर सकता हैं। ऐसा ही कुछ इन दिनों जिला भाजपा में हो रहा हैं। कई गुटों में बंटी जिला भाजपा में समन्वय के आभाव में एका नहीं हो पा रहा हैं। भाजपायी भी कांग्रेसियों का विरोध करने के बजाय अपने आपस में ही गला काट प्रतियोगिता में लगे हुये हैं। वो तो भला हो कि कांग्रेस और उसके इकलोते छत्रप हरवंश सिंह से चुनावी नूरा कुश्ती सेट हो जाती हैं जिसके चलते भाजपा चुनावी वैतरणी पार कर लेती हैं वरना जिस दिन यह नूरा कुश्ती टूट जायेगी उस दिन जिले में भाजपा को एक सीट जीतने के भी लाले पड़ जायेंगें। अन्यथा भजपा का आला नेतृत्व इस बात की पड़ताल करा ले कि कब कौन सा विधायक किन कारणों से तीजा और कब कब भाजपा केवलारी में किन किन कारणों से हारीर्षोर्षो कुुल मिलाकर वर्तमान में यह तो कहा ही जा सकता हैं कि भाजपा को अनुशासन की जिस चादर पर नाज था वह आज तार तार हो चुकी हैं।
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