उत्तराखंड में लगातार बढ़ रही हैं निशंक की लोकप्रियता
और...कैमरे-कलम तैयार कर विपक्ष ने बैठा दिए हैं निशंक की घेराबंदी करने को...'दलाल'
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डा0 रमेश पोखरियाल 'निशंक' यानि ज़मीन से जुड़ते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचने वाला एक ऐसा नाम जिसने खुद के हितों को दरकिनारे कर आम आदमी के भाषा में आम आदमी से जुड़ कर,एक छोटे से कार्यकाल में स्थापित करके दिखा दिया कि विकास की भयार किस तरह बहती है। उन्होंने सिर्फ विकास ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के जन-मानस के चेहरे पर जो मुस्कान बिखेर दि है। इसे शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति कर पाता है। यह हम नहीं बल्कि प्रदेश का जन-मानस और युवा स्वर कह रहा है।
इन पंक्तियों के लेखक ने पिछले दिनों उत्तराखंड के तमाम गांवों का दौरा किया। ऐसे गांव जहां आज तक न बिजली-पानी की सुविधाएं थी। ना ही किसी को बुद्धु बक्से पर देश-विदेश के चेहरे दिखायी देते थे। ऐसे गांव जिन्होंने कभी विकास की राह देखी ही नहीं थी। जिन्हें सड़क के मायने ही मालूम नहीं थे। जो विश्व के मानचित्र पर खुद को सिर्फ और सिर्फ एक पहाड़ की तरह स्थिर मानते थे। जिनके लिए विकास की कोई परिभाषा ही नहीं थी। जिनके नौनिहालों ने दो कदम विकास की दौड़ तक नहीं देखी थी। लेकिन रमेश पोखरियाल 'निशंक' के लोकप्रिय फैसलों ने,इन गांवों को गांव होने का महत्व दिया है। नौनिहालों को विकास के दौड़ में शामिल किया है। ग्राम पंचायतों और प्रधानों के माध्यम से इन गांवों में निशंक सरकार ने जो विकास के नींव रखी है। वह यकीनन निशंक सरकार की लोकप्रियता के लिए कई मायने दिखाती है। सरकार के कई लोकप्रिय फैसलो ने आज जिस तरह से कई गांव की तस्वीर बदल कर रख दी है। वह किसी से आज छुप्पी नहीं है। विकास के धरातल पर प्रकृति ने भले है कहर बरपाया हो,लेकिन निशंक ने इस कहर को भी चुनौती पूर्ण स्वीकार करते हुए। इसक कहर को पिछे हटने को मजबूर कर दिया है। फिर चाहे वह सुमगढ़ का बादल हो,या उत्तकाशी की तबाही या फिर अल्मोड़ा-पौड़ी गढ़वाल के भयानक हादसे। निशंक सरकार ने हर हादसे का डट कर मुकाबला किया हैं,और इन हादसों में मारे लोगों को इनसे बाहर निकालने का बरस्क प्रयास किया है।
उत्तराखंड के गांव की जो तस्वीर आज के समय में है। निश्चित तौर पर ऐसा पहले कभी नहीं था। यहां के सुसजित रास्ते,जल-जगल और बिजली-पानी के व्यवस्था के जो मायने आज के समय में पहाड़ों में मौजूद है। उसे प्रदेश की जनता स्वयं के लिए एक बड़ा विस्तार मानती है। जिसका श्रेय वह निशंक सरकार को देने से नहीं चुकती है। उत्तराखंड के बेरोजगारों के चेहरो पर जो मुस्कान आज है वह आप रोजगार कार्यलयों में खुद का नाम लिखवाते चेहरों पर साफ तौर पर देख सकते है। फिर चाहे वह समुह 'ग' के पद हो या बीटीसी शिक्षकों के,यह अब सभी जानते हैं कि शिक्षा विभाग 4400 शिक्षकों को नियुक्ति देने जा रहा है, इसमें 18 सौ एलटी शिक्षकों के पद शामिल हैं। नियुक्तियां एनसीईटी के मानकों पर होगी। इसके लिए मंत्रालयों से हरी झंडी मिल गई है। इससे साफ है कि इससे एक ओर तो शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे विद्यालयों को राहत मिलेगी वहीं राज्य सरकार के इस कदम से भाजपा सरकार की लोकप्रियता में बढोत्तरी होगी। क्योंकि इससे पहले उत्तराखंड में कितनी सरकारें आयी और गयी लेकिन ऐसा कभी पहले नहीं हुआ। जैसा निशंक सरकार ने कर दिखाया है। कौन नहीं जानता की विकास के क्षेत्र में आज उत्तराखंड देश के 28 राज्यों में तीसरे स्थान पर हैं। केंद्रीय वित्त आयोग ने मुख्यमंत्री के प्रयासों को सराहा है और इसलिए एक हजार करोड़ की प्रोत्साहन राशि भी राज्य को अनुमोदित की, राज्य की प्रति व्यक्ति आय जो राज्य गठन के समय 14 हजार वार्षिक थी,बढ़कर आज लगभग तीन गुना हो गई है। यह देश का पहला राज्य है जिसने केंद्रीय कर्मियों की तरह सबसे पहले अपने राज्य कर्मियों को छठे वेतनमान का लाभ दिया है।
साहित्य-संस्कृति-शिक्षा की बात हो तो,इस क्षेत्र में भी निशंक सरकार तेजी के साथ आगे बढ़ रही है। खुद एक पत्रकार-साहित्याकार होने पर डॉ.निशंक द्वारा जिस तरह से उत्तराखंड के लेखक-पत्रकारों को सम्मानित करने उनकी पुस्तकों को प्रकाशित करने को जो ऐतिहासिक निर्णय लिया गया यह अपने आप श्रेय कर ही नहीं बल्कि डॉ.निशक की उपलब्धियों का एक नया आयाम है। राज्य आंदोलनकारियों की बात की जाए तो सरकार ने पूर्ण विकलांग आंदोलनकारियों को प्रतिमाह दस हजार की पेंशन सम्मान रूप में दिए जाने का फैसला भी लिया,जो अपने आप में सरकार का एक श्रेयकर फैसला है। जिसकी चौतरफा चर्चाएं हो रही है।
उत्तराखंड के दूर-दराज क्षेत्रों के बात की जाएं तो इन दिनों यहां के गांव में 'काम करों,गांव को साफ रखों और मेहनताना लेकर खुशी-खुशी घर को जाओं' जैसे अभियान चालाए जा रहे है। पिछले लगातार कई दिनों से उत्तराखंड में बारिश का प्रकोप जारी है। जिसके चलते यहां के रास्तों-सड़कों में खर-पतवार फैल गया है। इसे तुरंत हटाने के लिए सरकार के माध्यम से गांव के लोगों के सहयोग से खर-पतवार हटाओं अभियान चलाया जा रहा है। जिसके लिए गांव के लोगों को मेहनताना भी दिया जा रहा है। इस योजना से गांव के लोगों को एक तो काम मिल रहा है। दूसरी तरफ उनके गांव की सड़के और रास्ते साफ सुथरे भी हो रहे है। निशंक सरकार के इन लोकप्रिय प्रयासों से गांव के लोगों-युवाओं में जोश भरा हैं और इस जोश की चलते गांव के लोग इन कार्यों में बढ़चढ़ का अपनी भागीदारी निभा रहे हैं,साथ नार भी लगा रहे है। हमारी विकास की राह,निशंक सरकार के हाथ...और मिशन 2012,निशंक के साथ होगा वोट हमारा। जिसके सुन निश्चित तौर पर विपक्ष ही नहीं बल्कि बीजेपी के कुछ वरिष्ठ चेहरे भी घबरा गए हैं.और इन्होंने निशंक के खिलाफ मीडिया से लेकर कुछ ऐसे दलाल भी लगा दिए हैं कि जो कैमरों और कलम के माध्यम से निशंक को घेरने की तैयारी में देहरादून की चोर गलियों में दुबके के अपने कैमरों की लाईटें ओन कर बैठे है...कि किसी तरह तो निशंक के खिलाफ इन्हें कोई ख़बर मिलें...या स्टिंग मिले...जिससे यह निशंक की विकास यात्रा को रोक सकें...अब देखने वाली बात ये हैं...कि विकास रूकता है...या इन दुश्मनों की लाईटें फ्यूज होती है...।
- जगमोहन 'आज़ाद'
19.9.10
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