छोड़ आये हम वो बेचैन लम्हा इंतज़ार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.
ज़िंदगी मानो नाराज़ थी हमसे अरसो से,
जी रहे थे बिना फ़िक्र किए अपनी हम बरसो से.
थी इतनी परेशानियाँ, दिल कितनी बार हारा,
खुशी बस ये थी कि बनते रहे औरों का सहारा.
चिंता थी कि बीत ना जाये ये दिन बहार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.
थक गया था मन और शक्ति नही थी तन में,
साथी की ज़रूरत थी अब जिंदगी के रन में.
जिन पौधों को सींचा उन्हे ना थी अब हमारी ज़रूरत,
हर वादों को था निभाया, पर किसे थी अहमियत.
दिल मे बंद रखे थे ये सब आँसू असरार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.
बिना आहट वो आये तो लगा प्यार कितना है ज़रूरी,
पर इकरार ना कर पाई, शायद चाहत थी ना पूरी.
मेरे दिल को बाँधे थी बरसो की जंग खाई बेड़ी,
टूटा उसका दिल पर उसने फिर भी आस ना छोडी.
उसकी कशिश ने लाया मेरे होठों पे बोल इज़हार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.
पत्तों की नमी पर मेरे पायल की मादक झनक,
मेरे गुलाबी चूड़ियों की पागल कर देने वाली खनक.
उसके मीठे गीत मेरे दिल को दीवाना हैं बनाते,
रूठना आ गया मुझे, वो इतना अच्छा जो मनाते.
सुहाना सफ़र ये कुछ इनकार का कुछ इकरार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.
--नवाज
20.9.10
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
उसके मीठे गीत मेरे दिल को दीवाना हैं बनाते,
रूठना आ गया मुझे, वो इतना अच्छा जो मनाते.
bahut hi khoob.....
Post a Comment