हो सकता है... ये सब टीआरपी का खेल है... संतों पर उछाले जानी वाली कीचड़ टीवी चैनल पर खूब बिकती है। स्टिंग आप्रेशन के मास्टर टेप और प्रसारित किये जाने वाले विजुअल में काफी अंतर होता है। बिजनेस बन चुके टीवी न्यूज चैनलों को माल बेचने के लिए कुछ तो ऐसा दिखाना ही पड़ेगा जिसे लोग चाव से देखे। आये दिन हमें देखने को मिल जाता है कि फंला फंला संत पर ये आरोप लगे है। लेकिन जब वे आरोपों से बरी होते है तो वो खबर नहीं बनती है। खबर बनेगी भी क्यों उसका पैसा थोड़े ही मिलेगा। मैं ये नहीं कहता है देश के सभी संत दागी है, हो सकता है उनमें से कुछ अपराधी हो।
लेकिन मैं एक बात पूछना चाहता हूं... हमारा देश संतो का देश है यहां पर अच्छे संत भी है, और उनके द्वारा चलाये जा रहे अच्छे काम भी। फिर वो कभी खबर क्यों नहीं बन पाती है। हां अगर वो पैसा देंगे तो निश्चित रूप से खबर बनेगी। वैसे भी आज कल पैड न्यूज का जमाना भी आ गया है।
24.9.10
टीआरपी के खेल में संतो की रेल
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