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18.10.10

लोकतंत्र के रावण को कौन मारेगा ?

देश में हर साल करोड़ों रावण मारे जाते हैं। अभी तो जैसे रावण मारने की होड़ सी मच गई है। लोगों में रावण मारने की इस तरह जूनून सवार है कि दशहरा पर्व के पहले रावण मारे। इसके बाद भी रावण मारने का सिलसिला ख़त्म नहीं हुआ है। ऐसा लगता है जैसे एक दिन रावण मारने के बाद लोगों का जी नहीं भरता की दशहरा के कई दिनों बाद भी रावण मारे जा रहे हैं। आज के कलयुग के लोग उस प्रगांड पंडित की एक गलती की सजा इस तरह देने में उतारूँ हैं तो इन लोगों की नजर उन लोकतंत्र के रावणों पर क्यों नहीं है, जो हर दिन देश को बेचने की गलती कर रहे हैं। जब एक गलती की सजा इस तरह हो सकती है तो देश को खोखले करने वाले लोकतात्र के रावणों की क्या सजा हो सकत है, सोचने का विषय है। हम तो हर साल रावण मारते हैं और असत्य पर सत्य की जीत बताते हैं, लेकिन जिनके पूरा जीवन असत्य पर ठहरा हुआ है, उन जैसों का क्या होगा? जरा सोचिये ।

2 comments:

RAVINDRA said...

"सर्वत्र रमते इति राम:"

RAVINDRA said...

"सर्वत्र रमते इति राम:"