वाह रे बाबोसा भगवान्....
संस्कार चैनल पर कथित बाबोसा महाराज की पूजा-अर्चना का कार्यक्रम सीधा प्रसारित हो रहा है. ये अपना ही देश है जहाँ हर किसी को बाबा-बाबोसा बन जाने की छुट है. कल तक बाबोसा को लोग महाराज के नाम से पुकारा करते थे. आज उन्हें भगवान कहा जाने लगा है. पैसे लेकर भजन सुनाने वाले भी एक से एक उपमाएं दे रहे हैं. कार्यक्रम के संचालक ने पांच मिनट के संबोधन में कम से कम पच्चीस बार बाबोसा भगवान्-बाबोसा भगवान् कह कर संबोधित किया. लोगों का मानना है कि उनके परिवार की मंजू (BAAYISA) को वे दर्शन देते हैं. सुना है चुरू में उनकी विशाल प्रतिमा भी खड़ी कर दी गयी है. कथित बाबोसा का जन्म ना सतयुग में हुआ, ना उसके पहले. कलयुग में जन्मे और अपनी जींदगी जीकर सिधार गए. ऐसा नहीं है है कि जिस विधि से उनकी पूजा-अर्चना होती है, वैसी हमारे देश में और लोगों कि नहीं होती, पर इस प्रकार उन्हें भगवान् का दर्जा देना कहाँ तक उचित है? यही नहीं, लोगों ने उनके हाथ में गदा भी थमा दी है. जी हाँ, वही गदा जो हनुमान जी के हाथों में शोभा देती है. वर्षों पहले एक कैलेण्डर देखा था, जिसमे इन बाबोसा महाराज के नाम के आगे देवाधिदेव लिखा था. देवाधिदेव तो राम जी भी नहीं हैं बन्धुवों..भगवान् शंकर को देवाधिदेव कहा जाता है...तो क्या बाबोसा शंकर भगवान हो गए? ये कल के जन्मे बाबोसा कहाँ से देवाधिदेव हो गए? क्या इन धोखेबाजों पर दश में कभी कोई बंदिश नहीं लग सकती? क्या इन लोगों को आस्था के नाम से इसी प्रकार भोली-भली जनता का दोहन करने देना चाहिए?
मंजू बाईसा की मिजाज पुरसी के लिए एक गायक ने गीत सुनाया और उसके बोल में तो एक लाइन ने हद कर दी. मंजू बायीं को गीता, रामायण और कुरआन तक की उपमा दे दी गयी. धन्य है देश, जहाँ व्यापारी किस्म के लोग खुल्लमखुल्ला लोगों की भावनाओं से खेल रहे हैं. प्रशाशन की आँखों पर बंधी पट्टी कब खुलेगी?
प्रकाश चंडालिया
2 comments:
इस कलियुग में जो कुछ न हो जाये...धन्य हो बाबोसा महराज की..मैंने तो पहली बार देखा है...कहाँ से देवाधिदेव हो गएँ...कुछेक लीग तो अपने आपको कल्कि का अवतार भी घोषित करने लगे हैं..जूता मारिये ऐसे आस्था के व्यपारियों पर
अपनी अपनी श्रद्धा है नाम उपमा में भेद हो सकता है लेकिन चमत्कार तो करते है तभी लोग जातेभाई
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