2010 की खाली झोली में जिले को क्या 2011 में कुछ मिलेगा
बीते साल 2010 में तो जिले की झोली खाली ही रही क्या 11 में जिले की झोली में कुछ आयेगार्षोर्षो यह सवाल बीते साल की बिदाई और नये के स्वागत की स्वागत की बेला पर लोगो के मन में उठ रहा हैं।
बीता साल 2010 जिले की उपलब्धि की दृष्टि से शून्य ही रहा। शिव की नगरी सिवनी को इस साल कुछ भी हासिलनहीं हुआ। हालांकि पिछले कई सालों से हम कुछ ना कुछ खोते ही आये हैं। नेताओं की नूरा कुश्ती से सिवनी लोकसभा और घंसौर विधानसभा क्षेत्र तो हमने खो ही दिया था। जिले का हक होने के बाद भी संभाग हमें नहीं मिला। हां यहां के सूरमा नेताओं के खाते में इतना जरूर आया हैं कि छिन्दवाड़ा संभाग अभी तक घोषित नहीं हुआ हैं जबकि मुख्यमन्त्री इसकी घोषणा कर चुके थे। नक्सल प्रभावित जिलों की सूची में शामिल हो जाने के बाद भी ना जाने क्यों इसे काट दिया गया। जबकि नक्सलियों की शरण स्थली के रूप में इस जिले में गतिवधियां एस.पी. श्री डी.एम.मित्रा के समय ही नोट की गईं थीं।
हमासरे निर्वाचित जन प्रतिनिधियों ने जिले में इंजीनियरिंग कालेज, मेडिकल कालेज और एग्रीकल्चर कालेज खोले जाने की मांग भी उठायी थी। मुख्यमन्त्री जी ने मेडिकल कालेज के बारे में घोषणाभी की थी। इसहेतु जिलाकलेक्टर ने एक समिति भी गठित की थी। लेंकिन बीते साल में इस दिशा में उपलब्धि शून्य ही रही। बड़ी रेल लाइन के लिये प्रयासतोबहुत हुये और नेताओं ने अपनी फोटो के साथ तेल मन्त्री के आभार के विज्ञापन भी छपवा डाले लेकिन छिन्दवाड़ा सिवनी नैनपुर लाइन के लिये एक पैसा भी नहीं मिला। रामटेक गोटेगांव लाइन का मामला भी सर्वे के लिये मिली राशि से अधिक नहीं बढ़ सका। फोर लेन मामला का मामला भी एक सोचे समझे षड़यन्त्र के चलते आज लटक गया हैं और मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। जिसका शायद अब जल्दही निपटारा कोर्ट से हो जावे।
नये साल 2011 में बड़ी रेल लाइन जिसके लिये जगदगुरू शंकरायार्च की पहल रंग दिखा सकती हैं। रहा सवाल फोर लेन का तो बाल कोर्ट के पाले में हैं और जो कुछ भी तय होगा वो वहीं तय होगा। संभाग,इंजीनियरिंग,मेडिकल और एग्रीकल्चर कालेज मिलना या ना मिलना जिले के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगा। अपने खुद के लिये बहुत कुछ पाने की तमन्ना रखने वाले हमारे जन प्रतिनिधि यदि जिले के लिये कुछ दिलाने को संकल्पित हो जायें तो कोई ऐसी बड़ी बात नहीं हैं कि नये साल में हमारी झोली में कुछ ना कुछ ना अयों और यदि ऐसा ही चलता रहा तो खाली झोली रहना तो हमारी नियति बन ही चुकी हैं। हर साल हम ऐसेही जाने वाले की बिदाई और आने वाले साल का स्वगत खाली हाथ ही करते रह जायेंगें।
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