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3.1.11

ये मेरी भावनाएं...


सुनों ये मृदु हैं,
सोम्‍य, नर्म और बुद्धिहीन हैं.
इन्‍हें देखो
ये मेरी भावनाएं हैं.
अरे-अरे छूओ नहीं,
कुछ कमजोर भी हैं ये.
तुम बस इन्‍हें देखो...
देखो कुछ देर यूं ही,
क्‍योंकि वे जरा संकोची भी हैं,
लचीली और बेहद कोमल,
महसूस करो इनकी
मृदुलता को, सोम्‍यता को
और,
अट्हास करो इनकी बु‍द्धिहीनता का...
अंत में इन्‍हें छूना,
इनसे खेलना,
इन्‍हें चूमना,
तोड़-मरोड़ कर इनके बदन को,
कर देना इनका बलात्‍कार,
वह भी एक नहीं,
कई कई बार,
ताकि ये डर, सहम कर जाएं बैठ
कोने में कहीं,
और दोबारा न कर पाएं
किसी पुरुष संग जुड़ने का दुस्‍साहस...
अनिता शर्मा

4 comments:

मनोज कुमार said...

सार्थक रचना।

Atul Shrivastava said...

अच्‍छी रचना। अच्‍छी कल्‍पना। भावनाओं का बहाव है रचना में।

vandana gupta said...

ओह! बेहद गहन अभिव्यक्ति।

Dr Om Prakash Pandey said...

bahut hi sundar !
main kisi aur ki panktiyan yahan uddhrit kar raha hoon .

itna toota hoon ki chhoone se vikhar jaaunga;
ab agar aur dua doge to mar jaaunga .