अतुलजी के साथ काम करने का मौका अमर उजाला की कानपुर यूनिट खुलने के दौरान मिला। मैं भी लॉचिंग टीम में था। उस वक्त यूनिट खोलने की तैयारी जोरों पर थी। तब स्थानीय सम्पादक के तौर पर आदरणीय अच्युतानंद जी पर जिम्मेदारी थी। पहले से किये वायदे के मुताबिक १४ फरवरी ९२ को अतुलजी कानपुर पहुंचे और मुझे बुलाकर अच्युताजी से मुलाकात कराई। अखबार मालिक होने के बावजूद अतुलजी ने उनसे कहा कि ये सुनीत हैँ और अपने साथ जुड़ना चाहते हैँ। बस दूसरे दिन से मैं भी लांचिंग टीम में षामिल हो गया। कानपुर से अमर उजाला का प्रकाषन षुरू होने के पहले से लेकर पांच साल तक वहां रहने के दौरान तमाम ऐसे संस्मरण हैं जो कल से दिलोदिमाग पर आकर अतुलजी की मौत को झुठला देने की कोषिष कर रहे हैं लेकिन अब सच यही है कि वे तमाम ऐसी सीख देकर मुझे गये हैं जिनकी बदौलत बीस साल से पत्रकारिता की मुख्य धारा में रहकर जिंदा हंू।
कानपुर यूनिट की डमी निकलने के दौरान अतुलजी पूरा टाइम सम्पादकीय टीम के साथ ही बिताते थे। चंूकि षुरू में मुझे प्रादेषिक डेस्क पर रखा गया इसलिए अतुलजी ने मीटिंग के दौरान जिले, तहसील, कस्बा और ग्रामीण इलाकों की खबरों पर जिस तरह अपनी बातें रखीं उससे यह सीख मिली कि उनमें आम लोगों के प्रति कितना दर्द था और वे अमर उजाला को अखबार नहीं बल्कि हर निचले से निचले तबके की चिठ्ठी बनाना चाहते थे और वे उसमें कामयाब भी हुए। अतुलजी की ही सोच का नतीजा है कि अमर उजाला के जरिए उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को गांव-गांव तक पहुंचाया और नई दिषा दी।
मेरी तरह लांचिंग टीम में षामिल रहे और साथियों को भी ये बातें याद होंगी। उस वक्त टीम का मैं तो जूनियर मेम्बर था लेकिन सीनियर लोगों के साथ भी उनका व्यवहार मालिकाना नहीं दोस्ताना रहता था, यही वजह थी पूरी टीम में जोष गजब का था और धमक के साथ निकले अमर उजाला ने कानपुर में पुराने अखबारों के खम्भे उखाड़ दिये। सम्पादकीय विभाग में हर डेस्क पर बैठकर खबरों का खुद सम्पादन करके अतुलजी बताते थे कि खबरों को कैसे पहचानना है और कैसे एडिट करनी है। संवाददाताओं को कैसे खबर लिखना समझाना है और उनकी खबरों के साथ कैसे इंसाफ करना है। इतना ही नहीं उस समय पेस्टिंग, ब्रोमाइड के जरिये पेज पेस्टर बनाते थे। अतुलजी में अखबार के हर विभाग की इतनी गहरी समझ थी कि वे खुद अपने सामने पेज बनवाते थे। खुद खबरों का सम्पादन करके ब्रोमाइड से खबरें काटने से लेकर पेस्टिंग करवाकर खबरों का डिस्प्ले लेआउट बताना जिंदगी भर याद रहेगा। सही मायने में अतुलजी की सीख थी कि हर काम में माहिर होना चाहिए।
अतुलजी ने सही मायनों में हिंदी पत्रकारिता को एक दिषा दी है जिसे आगे बढ़ाना ही उन्हें श्रद्धांजलि होगी।
सुनीत निगम
समाचार संम्पादक
विराट वैभव
नयी दिल्ली
4.1.11
तुम क्यों चले गए
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