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7.1.11

ओ री !! बता ना तू नया साल कैसे मनाएगी ?


ओ री !! बता ना तू नया साल कैसे मनाएगी ?
आदमी के संग पिकनिक मनाएगी.....
कि बच्चों को कुछ अच्छी बातें सिखाएगी...!!
ऐ री !! बता ना कैसे तू नया साल मनाएगी ?
पता भी है तुझे कि ये धरती ऐसी क्यों हो गयी है...?
क्योंकि अपने बच्चों में से तू खो गयी है....!!
अरी ओ !! अब ऐसे गुस्सा भी मत हो...
बेशक मैं ये जाता हूँ कि....
अपने बच्चों को तू ही पालती  है....मगर 
अब तू उनमें वैसे सपने नहीं जगाया करती....
जैसे जगाया करती थी बीसवीं सदी के अंत-अंत में.... 
ऐ पगली !! ज़रा यह तो सोच....
कि तेरे बच्चे तुझपर ही शासन क्यूँ करना चाहते हैं....?
सच तो यह है कि उनमें से हर-एक 
इस सारे जग पर छा जाना चाहते हैं 
कोई नहीं चाहता किसी से प्यार करना....
प्यार के नाम पर सब छल-प्रपंच करते हैं.....
मुझे बता ना....कि क्या यही तू चाहती है....?
कि तू और आदमी इस समूची धरती पर....
महज एक-दूसरे की यौन-पिपासा को तृप्त करें....!!??
तेरी मांसलता किसी आँख और देह की भूख मिटाए ?
तो बता ना....कि क्यों नहीं सिखाती तू अपने बच्चों को 
आदमी की निजता का-उसके व्यक्तित्व की अहमियत ?
अपने या सबके मान और सम्मान की बात....!! 
तू अपने बच्चों को कभी तो यह बता कि 
आगे बढ़ने का का यह खेल बड़ा अजीब और बर्बर है....
कुछ लोग ही सिंहासन पर पहुच पाते हैं किसी भी क्षेत्र में 
अधिकतम तो लुट-पिट कर बिछ जाते हैं रेत में....!! 
ऐ पगली !! अगर तू सचमुच एक सच्ची मानवी है तो.... 
तो कभी तो सोच कि तेरी ही संतानों के बीच 
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लड़ाईयां कैसी हैं भला...??
यह पूरी धरती युवाओं के कैरियर का रणक्षेत्र कैसे बन गयी है ??
मैं बताऊँ तुझे....??
क्यूंकि अपने बच्चों में तू रह ही नहीं गयी है कहीं....!!
तेरे बच्चे तुझसे दूर हुए जा रहे हैं.....
प्रकारांतर से वो सबसे दूर हुए जा रहे हैं....!!
हर कोई जैसे उनके लिए एक बडी चुनौती है....
और उन सबसे जीतना उनका सबसे महत्ती कार्य…
तो फिर बता ना तू मुझे अरी ओ पगली.....
कि तू कैसे अपना नया साल मनाएगी....?
किसी पुरुष के संग रास रचाएगी.....
कि अपने बच्चों को कुछ नया सिखाएगी....!!
सुन.....तेरे बच्चे ना.....तेरे ही रहमो-करम पर हैं....
अगर तू इन्हें सीखा सके धरती पर जीने का सलीका
संवेदना-प्रेम-दया-नम्रता और धैर्य से जीने की कला…
तो इस धरती मां को तुझ मां की बडी नेमत होगी…
इसके लिए ओ री…!!तुझे अपने मोह को खोना होगा…
आखिर ऐसे तो ही नहीं पैदा होते…
भगत-राजगुरु-परमहंस-गांधी-सुभाष-मीरा-लक्ष्मीबाई…
एक बात बताऊं तुझे ओ री…!!
हर भ्रूण तेरी जैसी किसी मां की कोख में ही पलता है…!!
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 http://kavikeekavita.blogspot.com/

2 comments:

Sunita Sharma Khatri said...

बहुत अच्छा लिखा है ।

Manoj Kumar Singh 'Mayank' said...

बहुत ही सुन्दर यथार्थपरक कविता...