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7.1.11

मेरी हसरत

मेरी हसरत
तुम्हे पाने की हसरत में...... खुद को खो बैठा... सुकुं की चाह में अब.... दर्द भी पी बैठा.... यु ही राह में... ठिठकना तुम्हारा... दिल को रोके था... मुड़ना तुम्हारा.. पलकों को उठा कर यूँ जो देखा तुमने... लगी है आग कलेजे में मेरे... इस तपिश से खुद को बचाए रखना... अब मेरी हसरत से खुद को बचाए रखना.... तेरी आँखों में देखू ये लगता है कि...मेरे इंतज़ार में तू...पलके बिछाये बैठी है...ये खुले गेशु तेरे ...घटा से छाए हैं...कर तो बरसात अब...हम अब तुम्हारे हैं....

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