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10.1.11

स्वामी विवेकानंद

मेरी राय में  सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा  ही एक बड़ा राष्ट्रीय  पाप है और वही एक कारण है जिससे हमारा पतन हुआ है I  कितना भी राजकारण उस समय तक उपयोगी नहीं हो सकता जब तक की भारतीय जनता फिर से अच्छी  तरह सुशिक्षित  न हो जाये, उसे अच्छा भोजन फिर न प्राप्त हो और उसकी अच्छी  देखभाल न हो |
शिक्षा, शिक्षा, केवल शिक्षा! यूरोप के अनेक शहरों का भ्रमण करते समय वहां के गरीबों को भी आराम और शिक्षा का जब मैंने निरीक्षण किया, तो उसने मेरे देश के गरीबों की स्थिति की याद जगा दी और मेरी आँखों से आंसू  गिर पड़े | इस अंतर का क्या कारण है ? उत्तर मिला, 'शिक्षा' | शिक्षा क द्वारा उनमे आत्मविश्वास उत्पन्न  हुआ और आत्मविश्वास के द्वारा मूल स्वाभाविक  ब्रह्मभाव उनमे जागृत हो रहा है| 
उपहास, विरोध और फिर स्वीकृति - प्रत्येक कार्य को इन तीन अवस्थाओ में से गुजरना पड़ता है| जो ब्यक्ति अपने समय से आगे की बात  सोचता है, उसके सम्बन्ध में  लोगो की गलत धारणा होना निश्चित है |
अपने भाइयों का नेतृत्व करने का नहीं, वरन उनकी सेवा करने का प्रयतन करो | नेता बनने की इस क्रूर उन्मतता ने बड़े - बड़े ज़हाजो को इस जीवनरूपी समुन्द्र में डुबो दिया है|
ऊँचे स्थान पर खड़े होकर और हाथ में कुछ पैसे लेकर यह न कहो - 'ऐ भिखारी आओ यह लो'| परन्तु इस बात के लिए उपकार मानो की तुम्हारे सामने वह गरीब है, जिसे दान देकर तुम अपने आप की सहायता कर सकते हो| पाने वाले का सौभाग्य नहीं, पर वास्तव में देने वाले का सौभाग्य है| उसका आभार मनो की उसने तुम्हे  संसार में  अपनी उदारता और दया प्रकट करने का अवसर दिया और इस प्रकार तुम शुद्ध और पूर्ण बन सके|   

2 comments:

Shalini kaushik said...

bahut achhi prastuti.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

विवेकानंद जी को सत् सत् नमन .. आपका लेख अच्छा लगा ..आज चर्चामंच पर आपकी पोस्ट है..आपका धन्यवाद ...मकर संक्रांति पर हार्दिक बधाई

http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/blog-post_14.html