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2.3.11

मीडिया को संभलना होगा


राही कुरैशी के शब्दों में-
   सबको पहचान लिया,देख लिया जान लिया,
   एक दिन खुद को भी आईने में देखा जाये."
    अक्सर हम देखते हैं कि मीडिया में लगभग हर बड़ी हस्ती कटाक्ष की शिकार होती है .कटाक्ष भी ऐसे कि पढ़ते-पढ़ते पेट दुःख जाये किन्तु ऐसा लगता है   कि मीडिया खुद इन बड़ी हस्तियों की ख़बरों की आदी हो चुकी है   इनसे सम्बंधित कोई खबर न मिले तो मीडिया का काम ठप सा ही हो जाता है .ऐसी ही एक बड़ी हस्ती है  "गाँधी परिवार"और  ये गाँधी परिवार कुछ करता है  तो मीडिया परेशान कुछ न करे तो मीडिया परेशान  .आजकल वरुण गाँधी के विवाह की ख़बरों से समाचार पत्र भरे पड़े हैं.कभी यामिनी से शादी पक्की होने की खबर,कभी ताई सोनिया को आमंत्रित करने की खबर,कभी वाराणसी में मंडप सजने की खबर ,तो कभी प्रियंका के जाने की खबर,तो कभी राहुल के हड्डी टूटने के कारण जाने न जाने के कयास की खबर आखिर क्या आज के समाचार पात्र इतने खाली पेज रखते हैं कि इनके समाचारों से ही भरे जाते हैं फिर देश की अन्य समस्याओं के लिए मीडिया इन बड़ी हस्तियों को क्यों दोषी ठहरता है  जबकि "लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ "के रूप में ख्यात मीडिया अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने में कोताही बरतता है .आज देश समाज में अपराधों की बाढ़ सी आयी है  और  यह मीडिया ही है  जो इन ख़बरों को मुस्तैदी से देश में उठा सकता है .मीडिया का यदि ऐसे मामलों में सकारात्मक कार्य हो तो पीड़ित अपनी पीड़ा बताने व् उस पर कदम उठाने से नहीं चूकेगा किन्तु मीडिया द्वारा केवल अपने प्रचार हेतु जब खबर नयी नयी हो तो रूचि लेना और  मामला ठंडा पड़ते ही मुहं मोड़ लेना पीड़ित को होंठ सी लेने को मजबूर करता है  .
       हमारे ही क्षेत्र में विधायक महोदय ने एक पीड़ित महिला से जिसके घर पर एक फ्रॉड ने कब्ज़ा कर लिया था से कहा"कि यदि मीडिया में ये मुद्दा उठ जाये तो मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूँ."अब इसमें कितनी सच्चाई है  ये तो वे ही जाने किन्तु ये तो मानना ही पड़ेगा कि मीडिया की ताक़त से वे भी अपने कदम को जायज़ ठहराने की ताक़त रखते हैं.ऐसे में मीडिया को देखना होगा कि वह इन मुद्दों को सामान्य मुद्दे मान कर ज्यादा तूल न दे और  आम आदमी जिन कारणों से त्रस्त है  ,प्रभावित है ,उन मुद्दों  को मजबूती से उठाये और  उन्हें न्यायपूर्ण अंत तक पहुंचाए.
    मीडिया के लिए अंत में यही कहूँगी-
"पूरी धरा भी साथ दे तो और  बात है ,
पर तू जरा भी साथ दे तो और  बात है  ,
चलने को तो एक पांव से भी चल रहे हैं लोग
ये दूसरा भी साथ दे तो और बात है."  
                 शालिनी  कौशिक
http://shalinikaushik2.blogspot.com/

2 comments:

Shikha Kaushik said...

आप ने बिलकुल ठीक कहा है .कभी मीडिया गाँधी परिवार को खलनायक के रूप में प्रस्तुत करता है तो कभी इन्हें रोल मॉडल के रूप में प्रस्तुत करता है .समझ में नहीं आता इस देश में एक ही परिवार रह गया है क्या ?बहुत अच्छी प्रस्तुति .

M. Afsar Khan said...

behtar soch
isi tarah jari rahe likhna.