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5.3.12

कांग्रेस का सत्ता अहंकार

संप्रग सरकार, विशेषकर कांग्रेस की कार्यप्रणाली में राजवंशी मानसिकता की झलक देख रहे हैं बलबीर पुंज

उत्तर प्रदेश में यदि कांग्रेस की सरकार नहीं आई तो राष्ट्रपति शासन लागू होगा, केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल का यह बयान क्या रेखांकित करता है? कांग्रेस केंद्रीय सत्ता में 40 वषरें से अधिक समय तक काबिज रही है और खासकर सन 1947 से लेकर 1969 तक न केवल केंद्र में, बल्कि अधिकांश राज्यों में भी उसका ही अबाधित राज रहा है। इस लंबे राजपाट के कारण उसके अंदर स्वाभाविक तौर पर सत्ता का अहंकार भी घर कर गया। इस अवधि में जहां कहीं भी गैरकांग्रेसी सरकारें आईं, कांग्रेस ने वैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग कर उन्हें चलता करने में देर नहीं लगाई। सत्ता की हनक में कांग्रेस वस्तुत: लोकतांत्रिक मूल्यों को तिलांजलि देती आई है। जायसवाल का बयान उसी सनक की पुष्टि करता है। इस मानसिकता के निर्माण में कांग्रेस की वंशवादी राजनीति का भी बड़ा योगदान है। विजय लक्ष्मी पंडित की पुत्री नयनतारा सहगल ने इंदिरा गांधी के ऊपर लिखी अपनी पुस्तक में इस विकृति का खुलासा करते हुए लिखा है, पंडित नेहरू के वंशज यह मानते हैं कि उनका जन्म राज करने के लिए हुआ है और कांग्रेस पार्टी उनकी खानदानी जागीर है। इंदिरा गांधी के जमाने में तो यह अहंकार और परवान चढ़ा। चाटुकारों की मंडली ने तो तब इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा का नारा ही गढ़ दिया था। यह अतिशयोक्ति नहीं कि सत्तासीन होने पर कांग्रेस निरंकुश हो जाती है और वह चाहती है कि पूरे देश में केवल उसकी ही राजनीतिक विचारधारा का वर्चस्व रहे। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में उनके वामपंथी विश्वासपात्र मोहन कुमारमंगलम ने प्रतिबद्ध न्यायपालिका, यानी ऐसी न्यायपालिका जो संविधान की बजाए सत्ताधारी दल अर्थात कांग्रेस की विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध हो, की वकालत की थी। इसी विचार के कारण तब सर्वोच्च न्यायालय के तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की वरीयता की अनदेखी कर एक कनिष्ठ न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया गया था। आपातकाल के दौरान संजय गांधी की मंडली का प्रिय नारा एक राष्ट्र, एक पार्टी और एक नेता था। इंदिरा गांधी के पूरे कार्यकाल में राष्ट्रीयता का अर्थ नेहरू परिवार का यशोगान था। राष्ट्रभक्ति पंडित नेहरू से शुरू होकर गांधी परिवार में समाप्त होती थी। इंदिरा गांधी का विरोध करने वाला प्रत्येक व्यक्ति उनके लिए देशद्रोही था। परिवारवाद की पूजा का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की नामावली में लालबहादुर शास्त्री का नाम विपक्षियों के एतराज के कारण राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में शामिल किया गया था। विभाजन के बाद दिल्ली में अधिकांश कॉलोनियों के नाम नेहरू परिवार के ऊपर यथा मोती नगर, कमला नगर, स्वरूप नगर, नेहरू नगर, नेहरू विहार, इंदिरा विहार आदि हैं। अब तो जीतेजी दिल्ली में सोनिया विहार भी आबाद है। राजीव गांधी और उनके बाद अधिकांश सरकारी योजनाओं का नाम नेहरू-इंदिरा-राजीव के नाम को समर्पित है। सन 2004 में केंद्रीय सत्ता में कांग्रेस की वापसी होते ही सत्ता का अहंकार प्रधानमंत्री पद की लोलुपता लिए लौटा। वर्तमान गांधी (सोनिया गांधी) ने विदेशी मूल की अड़चन पैदा होने पर सत्ता की कुंजी हथियाने के लिए लोकतंत्र के साथ एक नया प्रयोग कर डाला। 2004 से देश में एक ऐसा प्रधानमंत्री स्थापित है, जिसके पास पद तो है, किंतु शक्तियां कहीं और केंद्रित हैं। कांग्रेस अध्यक्ष के पास मंत्रिमंडल का कोई भी विभाग नहीं है, किंतु पूरा मंत्रिमंडल उनकी परिक्रमा लगाता है। यह अहंकार युवराज राहुल गांधी के चुनावी भाषणों में भी झलकता है। केंद्र सरकार से राज्यों को भेजी जाने वाली केंद्रीय सहायता के लिए वह ऐसे जुमलों का प्रयोग करते हैं, मानो निजी मिल्कियत से खैरात दे रहे हों। यह अहंकार संप्रग सरकार की कार्यप्रणाली में चारो ओर परिलक्षित हो रहा है। देश पिछले 42 सालों से भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था कायम करने के लिए लोकपाल कानून की प्रतीक्षा कर रहा है। अन्ना हजारे के नेतृत्व में पूरा देश इसके लिए आंदोलित हुआ। सरकार ने पहले अन्ना का हश्र योगगुरु बाबा रामदेव की तरह करना चाहा था। काले धन की वापसी की मांग कर रहे बाबा रामदेव के आंदोलन का दमन पुलिसिया तंत्र के बूते किया गया, जिसका संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को पिछले दिनों कड़ी फटकार भी लगाई है। अन्ना हजारे की गिरफ्तारी पर जब जनज्वार सड़कों पर उतरने लगा तो सरकार ने पैर पीछे खींच लिए। देश से एक सशक्त लोकायुक्त कानून बनाने का वादा किया गया, किंतु लोकायुक्त कानून को लेकर कांग्रेस ने जिस तरह लोकतांत्रिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाईं वह सारा देश देख चुका है। युवराज राहुल गांधी का अहंकार जन अपेक्षाओं पर हावी रहा और विगत 29-30 दिसंबर की मध्य रात लोकतंत्र की हत्या कर दी गई। पिछले दिनों के कुछ घटनाक्रम कांग्रेस के सत्ता दर्प के साथ भारत के जनसंघीय स्वरूप और लोकतांत्रिक निकायों के प्रति उसके नजरिए का खुलासा करते हैं। स्वच्छ और निष्पक्ष पारदर्शी चुनाव कराने के लिए संविधान निर्माताओं ने चुनाव आयोग का प्रावधान रखा। चुनाव के दौरान आयोग द्वारा निर्धारित आचार संहिता का पालन करने की अपेक्षा सभी राजनीतिक दलों से की जाती है। इसलिए उत्तर प्रदेश चुनाव में मुस्लिमों को कांग्रेस के पाले में करने के लिए जब केंद्रीय विधिमंत्री सलमान खुर्शीद ने मजहबी आधार पर आरक्षण देने की घोषणा की तो आयोग को हस्तक्षेप करना पड़ा, किंतु खुर्शीद सत्ता के मद में थे। पहले तो उन्होंने आयोग को चुनाव के बेसिक फंडे की जानकारी नहीं होने की बात की, फिर आयोग से नसीहत मिलने के बावजूद सत्ता के मद में यहां तक कह डाला कि आयोग चाहे तो फांसी दे दे, किंतु आरक्षण दिलाकर रहेंगे। इसके बाद एक अन्य केंद्रीय मंत्री ने आयोग पर हमला बोला। युवराज को आचार संहिता के उल्लंघन का नोटिस क्या मिला, कांग्रेस ने आचार संहिता का मामला ही आयोग से छीनकर न्यायालय के अधीन करने की तैयारी कर डाली। फिलहाल इस पर विराम लग गया है, किंतु वंशवादी कांग्रेस की राजवंशी मानसिकता पर कोई लगाम नहीं है। गैर कांग्रेसी राज्य सरकारों से केंद्र सरकार का टकराव इसी मानसिकता का द्योतक है। खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश, लोकायुक्त कानून और अब एनसीटीसी के मामले में केंद्र सरकार राज्य सरकारों के अधिकारों का अतिक्रमण करने पर आमादा है। अब सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) को पूरे देश में तलाशी लेने और गिरफ्तार करने का अधिकार देने की तैयारी में है। भारत के संविधान ने केंद्र व राज्यों के अधिकारों की एक स्पष्ट विभाजक रेखा खींच रखी है। उस लक्ष्मण रेखा को जानबूझ कर बार-बार लांघने की मानसिकता वस्तुत: कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार की अहंकारी प्रवृत्ति के कारण ही है।
(लेखक राज्यसभा सदस्य हैं)
साभार :- दैनिक जागरण

4 comments:

virendra sharma said...

एकाधिकार वादी वंशवादी कुशाशन के संलक्षण हैं ये .विनाश काले विपरीत बुद्धि .अब बागडोर मंद मति के हाथाओं उत्तर प्रदेश में देने का खुलासा होने वाला है .चंद घटे की देरी है .

कुमार राधारमण said...

सत्ता में जो भी होगा,अहंकारी होगा। कोई नहीं है तो बस इसलिए कि उसे सत्ता का अनुभव ज्यादा नहीं है।

Shikha Kaushik said...

i am not agree with this view .jaiswal has given this statement in reply ..HOLI PARV KI HARDIK SHUBHKAMNAYEN . YE HAI MISSION LONDON OLYMPIC

Shalini kaushik said...

duragrah se buri tarah grasit post hai.vastav me satta sambhalna aur satta hath me aane par khud par niyantran rakhna bhi keval congress ko hi aata hai.