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1.3.20

देश को बर्बाद कर देगा जाति और धर्म के नाम पर बनाया जा रहा नफरत का यह माहौल

सी.एस. राजपूत

मेरे, भाषण, लेख और पोस्ट पर हमारे कई साथियों को यह आपत्ति होती है कि मैं सत्तापक्ष और हिन्दुत्व को ज्यादा टारगेट करता हूं और विपक्ष और मुस्लिमों की गलती की काफी अनदेखी करता हूं। मैं सभी साथियों से स्पष्ट कर दूं कि जो लोग मुझे करीब से जानते हैं वह भलीभांति जानते हैं कि ऊपर वाले ने मुझे बोलने,  लिखने और जमीनी संघर्ष करने में जो पारंगतता दी है शायद वह बहुत कम लोगों को दी होगी। क्या मैं भी इस बेलागम भीड़ का हिस्सा बन जाऊं ? मैं भी दूसरे लोगों की तरह जाति और धर्म के नाम पर लोगों में नफरत का माहौल बनाना शुरू कर दूं।
यह भी जमीनी हकीकत है कि यदि मैं इस सियासत का हिस्सा बनने लगूं तो जाति और धर्म को आधार बनाकर अपने भाषण, लेखन और मेहनत से एक बड़ा जनाधार खड़ा कर सकता हूं। मेरा मकसद चुनाव लड़कर विधायक, सांसद व मंत्री बनना नहीं है। मेरा मकसद सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, डॉ. लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश की तरह देश और समाज के लिए जमीनी काम करना है। मैं भगत सिंह के देश के प्रति समर्पण और डॉ. राम मनोहर लोहिया के संघर्ष से बहुत प्रभावित हूं। उनके पदचिह्नों पर चलते हुए मैं कमजोर, जरूरतमंद लोगों की लड़ाई लड़ते हुए देश और समाज की सेवा करना चाहता हूं।

साथियों मेरा मकसद वोटबैंक की राजनीति करना नहीं बल्कि जनहित में काम करना है।  यही मैं अपने दूसरे साथियों से भी अपेक्षा करता हूं। जनहित में आदमी तभी काम कर सकता है जब वह जाति और धर्म से ऊपर उठकर निस्वार्थ होकर काम करे। क्या आज की जो राजनीति चल रही है इससे देश और समाज का कुछ भला हो सकता है ? क्या दिल्ली में जो हुआ इससे किसी हिन्दू या मुस्लिम का कुछ भला हुआ ? क्या हिन्दू या मुस्लिम के किसी व्यक्ति के मरने या मारने या फिर किसी दूसरे नुकसान से किसी आम आदमी का भला हुआ है या हो सकता है ?  नहीं न। तो फिर हम राजनीतिक दलों के एजेंडे की कठपुतली क्यों बन रहे हैं। हो सकता है कुछ लोगों को ये लोग कुछ लालच देते होंगे, लालच पूरा भी कर देते होंगे पर क्या इससे देश और समाज का जो नुकसान हो रहा है इसकी कीमत चुकाई जा सकती है।

दिल्ली में जितने भी लोग मरे हैं, जितनी भी दुकानें जलाई गई हैं। जितने भी घर जले हैं। या फिर दूसरे नुकसान हुए हैं। किसी पार्टी का एक भी नेता प्रभावित हुआ क्या ? किसी पार्टी का कुछ बिगड़ा क्या ? या फिर कोई सरकार या राजनीतिक दल दिल्ली में हुए जान-माल के नुकसान की भरपाई कर सकता है। मैंने राजनीति को बहुत करीब से देखा है। आज की तारीख में जो नेता जितना जनता का बेवकूफ बना ले वह उतना ही सफल नेता माना जा रहा है।

क्या नरेन्द्र मोदी ने जो शपथ प्रधानमंत्री बनते समय ली थी, वह उस पर खरे उतर रहे हैं ? क्या अरविंद केजरीवाल जो राजनीति करने आये थे, वह कर रहे हैं ? कांग्रेस ने तो लंबे समय तक जनता का बेवकूफ बनाया ही है। मैं इन तीन दलों की ही बात नहीं कर रहा हूं। लगभग सभी दल सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। इन सबको बस सत्ता चाहिए। इन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि उनके इस मकसद में कितने परिवार बर्बाद हो गये। कितने लोग मर रहे हैं। कितना किसका नुकसान हो रहा है। देश और समाज के लिए काम करने का तो राजनीतिक दलों का मात्र दिखावा ही रह गया है, जिन युवा साथियों में हिन्दू या मुस्लिम को लेकर अति उत्साह है।

वे एक बार अपनी परवरिश में अपने मां-बाप का त्याग, बलिदान और संघर्ष को जरूर देख लें। पिछले हिंसक आंदोलनों को जरूर देख लें। चाहे आरक्षण आंदोलन हो, राम मंदिर आंदोलन हो या फिर दूसरे आंदोलन। सबमें राजनीतिक दलों ने युवाओं को उकसा कर अपना स्वार्थ सिद्ध किया। क्या किसी मरने वाले या नुकसान उठाने वाले की ओर किसी सरकार या राजनीतिक दल ने पीछे मुड़कर देखा। यहां तक कि पुलवामा आतंकी हमले को भुनाने वाली भाजपा केंद्र में काबिज होने के बाद भी आतंकी हमले में शहीद हुए जवानों के लिए कुछ खास न कर सकी।  यहां तक कि अब तक इस हमले की जांच तक नहीं हुई है। समझो राजनीतिक दलों की मंशा और राजनीतिक। यह सब बेरोजगारी से लोगों का ध्यान हटाने के लिए किया जा रहा है। निश्चित रूप से अपने धर्म के प्रति आस्था आदमी में होनी ही चाहिए। पर इस आस्था को अंधभक्ति मत बनने दो। इस आस्था को किसी राजनीतिक दल को भुनाने मत दो। किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़ो। किसी भी व्यक्ति में अपनी आस्था रखो पर याद रखो कि किसी पार्टी, किसी व्यक्ति और हर स्वार्थ से बड़ा देश और समाज है।

मैं जो तमाम व्यस्तता के बावजूद इतने आंदोलनों में भाग लेता हूं, लिखता हूं, संघर्ष करता हूं। इसका मकसद यह है कि जनहित के लिए संघर्ष करने वालों का देश में घोर अभाव है। मेरा प्रयास है कि दिखावे की देशभक्ति छोड़कर लोग असली देशभक्ति करें। निजी स्वार्थ छोड़कर देश और समाज के लिए काम करें। देखो देश के युवाओं की ओर आज की तारीख में राजनीतिक दलों की सत्ता और पैसे की भूख ने देश के युवा को ऐसे रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है कि उसके हिस्से में बस बर्बादी ही दिखाई दे रही है। क्या हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर जो नफरत युवाओं के दिलों में घोल दी गई है। इससे किसी युवा का कुछ भला होने वाला है ?  सब जानते हैं न कोई मुस्लिमों को देश से बाहर निकाल सकता है और न ही कोई हिन्दुओं का कुछ बिगाड़ सकता है। हां आपस में लड़कर जरूर बिगाड़ रहे हैं या फिर बिगाड़ देंगे। क्यों बन रहे हो किसी राजनीतिक दल या किसी विशेष व्यक्ति की कठपुतली ?

मुझे बताया जाए कि कौन सा मां-बाप यह चाहेगा कि मेरा बेटा या बेटी सड़कों पर हिन्दू या मुस्लिम के नाम पर लड़े। कौन सा युवा चाहेगा कि वह रोजगार को छोड़कर जाति और धर्म के नाम पर सड़कों पर मारकाट करे। यह सब राजनीतिक दल और उनके समर्थक माहौल बनाते हैं और हम उनके पीछे-पीछे हो लेते हैं। अभी भी हिन्दू या मुस्लिम के नाम की जितनी भी बातें हो रही हैं, जितनी भी सोशल मीडिया पर पोस्ट जारी हो रही हैं। जितनी भी टीवी चैनलों पर डिबेट चल रही हंै। ये सभी किसी न किसी राजनीतिक दल या नेता के प्रभाव हो ही हैं।  यदि लड़ना ही है तो भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाह और पूजंपीतियों के खिलाफ लड़ो। जो लोग देश और समाज को जाति और धर्म के नाम पर तोड़ने पर तुले हैं उनके खिलाफ लड़ो।
निश्चित रूप से लाखों-करोड़ों युवा होंगे जो देश व समाज पर मर-मिटने को तत्पर रहते हैं और होंगे भी। इनको आप हिन्दू या मुस्लिम के नाम पर नहीं बांट सकते हैं।

हां यह हो सकता है कि किसी धर्म में देशभक्तों की संख्या कम हो या अधिक। मेरी लड़ाई यह है कि देश में ऐसी देशभक्ति हो कि देश का युवा देश और समाज के लिए लड़े। देश और समाज के लिए मरे। न कि किसी राजनीतिक दल या राजनेता के लिए। मेरा राजनीति और समाजसेवा का लंबा अनुभव है। किसी भी पार्टी में कोई बड़ा पद लेकर अपनी राजनीति चमका सकता हूं और चमकाई भी है पर इस राजनीति से आप अपना तो भला कर सकते हो पर देश और समाज का भला नहीं कर सकते। साथियों आज की तारीख में देश में सच्चे देशभक्त बहुत कम हैं। किसी की देशभक्ति किसी पार्टी तक सीमित है तो किसी की किसी व्यक्ति विशेष तक। या फिर किसी की निजी स्वार्थ के लिए। हमें सच्चे देशभक्त तैयार करने हैं और सच्चा देशभक्त वह होता है जो जाति और धर्म से ऊपर उठकर देश और समाज के लिए सोचे और लड़े।

मैं भी जानता हूं कि मेरी आक्रामक लेखनी व कड़ूवी बातें मुझे कई बार अपनों से भी दूर कर देती है। मुझे देश और समाज के लिए काम करने के लिए अपनों की भी नाराजगी मंजूर है। क्या सत्ता से टकराने के खतरे, नुकसान के बारे में मैं नहीं जानता?  या फिर इस लड़ाई में मैंने नुकसान नहीं उठाया है। जो मुझे करीब से जानते हैं वह इस लड़ाई में मेरे उठाये गये नुकसान के बारे में भी जानते हैं। सब कुछ मंजूर है पर मैं अपनी जनहित की इस लड़ाई को जारी रखना चाहता हूं।
साथियों हमें यह समझना होगा कि देश में राजेनता, पूंजपीति और नौकरशाह के गठबंधन ने जो माहौल बना दिया है वह देश को गुलामी और बंधुआ की ओर ले जा रहा है। यदि देश में निजी स्वार्थ छोड़कर देश और समाज पर मरने वाले युवा तैयार नही होंगे तो ये मुट्ठी भर लोग इस देश, इसकी सभ्यता, इसकी ऊर्जा, इसकी भव्यता को निगल जाएंगे। साथियों सोचना आप को है कि आप भीड़ का हिस्सा बनना चाहते हैं या फिर कुछ करना चाहते हैं। यदि वास्तव में देश और समाज के लिए कुछ करना है तो एक बार जाति-धर्म और निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर देश और समाज के लिए कुछ करो। यदि अपनी आत्मा के कहने ने एक बार भी एक भी काम आपने कर लिया तो सब समझ में आ जाएगा कि असली क्या है और नकली क्या है ?

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