Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

2.3.20

उत्तर प्रदेश में पुलिस प्रमुख बेच रहे थाना, अपहरण की फिरौती में वसूल रहे हिस्सा!

K.P.Singh 
उत्तर प्रदेश में खाकी जबर्दस्त पतन का शिकार नजर आती है। आईपीएस अधिकारी तक निकृष्ट चरित्र का कीर्तिमान स्थापित करने पर आमादा हैं। योगी सरकार में कई जिलों के प्रमुख घूसखोरी और क्राइम में संलिप्तता के कारण दंडित हो चुके हैं जबकि मुख्यमंत्री ईमानदार है और उनका दावा है कि जिला प्रमुखों के पद पर बहुत ही छानबीन के बाद नियुक्तियां की जा रहीं हैं। सवाल यह है कि फिर दागी अफसरों को वरीयता कैसे मिल जा रही है। जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री की नीयत पर तो संदेह नही किया जा सकता लेकिन गड़बड़ी इसलिए हो रही है क्योंकि अच्छी पोस्टिंग के लिए उन्होंने दायरा संकुचित कर रखा है। जिसमें केवल सवर्ण, पहाड़ी या उन्हीं अधिकारियों के लाभान्वित होने की गुंजाइश रह गई है जिन्होंने अंतर्जातीय विवाह करके दूसरे समुदाय से होते हुए भी अपना लाइफ पार्टनर सवर्णों में से चुना है। मुख्यमंत्री को इस स्वकारा से बाहर आना चाहिए तांकि उनके चयन का दायरा बढ़ सके।

प्रदेश में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद योगी सरकार की पहली चुनौती पुलिस की इमेज को ठीक करके कानून व्यवस्था पटरी पर लाने की थी। उन्हें इसके लिए भरोसेमंद पुलिस मुखिया की जरूरत थी। सबसे पहले उन्होंने सुलखान सिंह को डीजीपी बनाया। जिनकी अन्य क्षमताओं के बारे में तो नही कहा जा सकता लेकिन वे असंदिग्ध रूप से ईमानदार थे। हो सकता है कि इसका नैतिक प्रभाव पूरी पुलिस पर रहा हो लेकिन कार्यप्रणाली के दृष्टिकोण से उनके समय पुलिस ढीली-ढाली रही। सीएम ने उन्हें एक बार सेवा विस्तार भी दिया। उनके रिटायरमेंट के बाद विवादित परिस्थितियों में ओपी सिंह पुलिस के मुखिया बनाये गये। ओपी सिंह के समय ही लखनऊ का कुख्यात गेस्ट हाउस कांड 2 जून 1995 को हुआ था। जिसमें पुलिस को पंगु पाया गया था और अंततोगत्वा इसके कारण ओपी सिंह को निलंबित होना पड़ा था।

ओपी सिंह ने योगी की कमजोरी पकड़कर स्टंटबाजी का जौहर खूब दिखाया। सीएम के साथ उन्होंने ठोको मंत्र की जुगलबंदी की जिसके लिए बेशक उन्हें आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा हो लेकिन उनके चेहरे पर शिकन तक नही आई। उनके समय ही यह प्रकाश में आया कि जिला प्रमुख स्तर पर भी पुलिस में किस कदर गिरावट आ चुकी है। बुलंदशहर के तत्कालीन एसएसपी एन. कोलांची और प्रयागराज के अतुल शर्मा थाना प्रभारियों के पद बेचने में खुलेआम पकड़ में आ गये जिससे उनको सस्पेंड होना पड़ा। फिर भी स्थिति में कोई सुधार नही हो पाया।

दागी जिला प्रमुखों की नियुक्तियों को लेकर ओपी सिंह पर भी उंगलियां उठीं पर मजबूत लीडरशिप की दम पर वे सारे आरोपों को धकेले रहे। इस कारण उनके जाने के बाद भी जिला प्रमुखों की करतूतों को लेकर चिंगारियां छूटना जारी हैं। मथुरा में अपहृत डाक्टर निर्विकार अग्रवाल से वसूली गई 50 लाख रुपये की फिरौती की रकम में तत्कालीन एसएसपी शलभ माथुर की हिस्सेदारी का मामला प्रकाश में आने की वजह से हाल ही में उन्हें हटाया गया है। यह इंतहा है इससे भी ज्यादा विस्फोटक स्थिति यह है कि नोयडा के निलंबित एसएसपी वैभव कृष्ण की पांच आईपीएस अधिकारियों के बारे में गोपनीय चिटठी की जांच एसआईटी ने पूरी कर ली है और इसमें वैभव कृष्ण ने जो आरोप लगाये गये थे उनकी करतूतें इससे भी संगीन पाईं गई हैं। इनमें शामिल गाजियाबाद के एसएसपी रहे सुधीर कुमार सिंह, रामपुर के अजय पाल शर्मा, बांदा के गणेश साहा और कुशीनगर के राजीव नारायण मिश्रा को हटा तो पहले ही दिया गया था जिससे वे लूप लाइन में हैं। लेकिन अब उनके खिलाफ बर्खास्तगी की संस्तुति तक की कार्रवाई के संकेत दिये जा रहे हैं।

जाहिर है कि उत्तर प्रदेश की पुलिस व्यवस्था बुरी तरह कैंसर की शिकार है जिसके लिए बड़ी सर्जरी की जरूरत है। ओपी सिंह ने अपने समय सभी रेंजों में बेशुमार रुपया बटोरने वाले पुलिस कर्मियों को चिन्हित करवाने का स्वांग किया था लेकिन जब पुलिस प्रमुख ही उनके मिजाज के हों तो सैंया भये कोतवाल डर काहे का की स्थिति रहेगी और यही हुआ जिससे यह अभियान टांय-टांय फिस्स हो गया था। हितेश चंद्र अवस्थी अभी तक कार्यवाहक डीजीपी की स्थिति में हैं इसलिए इस मामले में उनके द्वारा प्रभावी हस्तक्षेप की परिस्थितियां नही बन पा रहीं। कार्यवाहक का अजीब ट्रेंड देखा जा रहा है।

प्रदेश में मुख्य सचिव के स्तर पर भी राजेंद्र तिवारी 6 महीने तक कार्यवाहक की हालत में रहे जिससे फर्स्ट इंप्रेशन इज लास्ट इंप्रेशन के गुर का वे इस्तेमाल ही नही कर सके। अब इसी नियति से कार्यवाहक डीजीपी दो-चार हैं। वे अपने हिसाब से जिला प्रमुखों की नियुक्ति शुरू करने के पहले परमानेंट होने की बाट जोह रहे हैं। पुलिस सुधार आयोग के अध्यक्ष रिटायर डीजीपी सुलखान सिंह इस मामले में सरकार को कुछ सहायता दे सकते हैं पर अभी तक उनका आयोग कागजी अस्तित्व से आगे नही बढ़ पा रहा है। ऐसे में उत्तर प्रदेश की जनता का भगवान ही मालिक है।


K.P.Singh 
Distt - Jalaun (U.P.)
bebakvichar2012@gmail.com

No comments: