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6.3.20

फिर से सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख करें मजीठिया वेज बोर्ड के क्रांतिकारी साथी


CHARAN SINGH RAJPUT

मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ रहे क्रांतिकारी साथियों क्या हो गया ? कैसे शांत हो गये ? लड़ाई निर्लज्ज, बेगैरत और प्रभावशाली लोगों से है तो बाधाएं भी बड़ी ही आएंगी। निश्चित रूप से लेबर कोर्ट में यह लड़ाई प्रभावित हो रही है। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में। राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण के अलावा दूसरे अन्य अखबारों के भी अधिकतर केस नोएडा लेबर कार्ट में हैं और यहां पर जज के रिटायरमेंट होने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट में जज भेजने की जहमत नहीं उठाई है।

सूचना यह है कि उत्तर प्रदेश के 15 लेबर कोर्ट में जज ही नहीं हैं। यह है योगी आदित्यनाथ का राम राज्य। मतलब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मजीठिया वेज बोर्ड के मामले लेबर कोर्ट भेजे गये हैं। वैसे भी  सुुप्रीम कोर्ट कई बार छह माह के अंदर मामलों के निपटारे की बात कर चुका है। ऐसे में यदि कोर्ट में जज ही नहीं होंगे तो न्याय कैसे मिलेगा ?

यह हाल तब है जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश है। वह भी 12 साल से लंबित। मामला भी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ माने जाने वाले मीडियाकर्मियों का है। जब मीडियाकर्मियों का यह हाल है तो दूसरे विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों का हाल क्या होगा ?

साथियों फिर भी हमें यह लड़ाई हर हाल में जीतनी है। यह लड़ाई देश में इसलिए भी लड़ी जानी और जीतनी जरूरी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान हमें रखना है।

साथियों मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई में जो परिस्थितियां पैदा हो गई हैं, उनका देखते हुए तो यह कहा जा सकता है कि अब लेबर कोर्ट से न्याय मिलना मुश्किल लग रहा है। हम सबको एकजुट  होकर फिर से सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख करना चाहिए। हम लोग सुप्रीम कोर्ट जाकर पूछें कि क्या हम लोगों ने आपके आदेश के सम्मान में खड़ा होकर कोई अपराध कर लिया है ? क्या ? हम लोग कहें कि जब आपका आदेश ही अमल में नहीं लाया जा रहा है तो देश में छोटे-मोटे आदेश का क्या होता होगा ?

हम लोग सुप्रीम कोर्ट से कहें कि जिन अखबार मालिकों ने आपके आदेश की अवमानना की हैं वे मजे में हैं और जो मीडियाकर्मी आपके आदेश के सम्मान में खड़े हुए, वे दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। क्यों ? क्या यह सजा उन्हें आपके आदेश के सम्मान में खड़े होने के लिए मिली है ? मजीठिया वेज बोर्ड मांगने पर कितने मीडियाकर्मियों को टर्मिनेट कर दिया गया, कितनों का स्थानांतरण कर दिया गया। कितनों का उत्पीड़न, शोषण और दमन किया जा रहा है। कितने मीडियाकर्मियों के परिवार भुखमरी के कगार पर हैं। कितनों ने इस लड़ाई में आत्महत्या तक कर ली है। मतलब जिस मजीठिया वेज बोर्ड से मीडियाकर्मियों को फायदा होना चाहिए था, वह मीडियाकर्मियों के लिए दुखदायी साबित हो रहा है। क्या मजीठिया वेज बोर्ड मामले में न्याय में हो रही देरी के लिए सरकारों के साथ ही सुप्रीम कोर्ट भी जिम्मेदार नहीं है? हम लोग सुप्रीम कोर्ट से कहें कि यदि मजीठिया वेज बोर्ड में यदि मीडियाकर्मियों को समय रहते न्याय नहीं मिला तो आपके ऊपर से ही लोगों का विश्वास उठ जाएगा।

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