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12.3.20

सबसे ज्यादा प्रतिबद्ध विधायक ज्योतिरादित्य के हैं लेकिन कमल सरकारमें सबसे ज्यादा मजाक के पात्र सिंधिया ही बने!

जयराम शुक्ल

राजमाता से ज्योतिरादित्य तक : प्रश्न प्रतिष्ठा का...  राजनीति में प्रतीकों और शब्दों का बड़ा महत्व होता है। जिनको यह नहीं मालूम वे 1967 के उस प्रकरण को याद करें जब पचमढ़ी में मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष अर्जुन सिंह के संयोजकत्व में आयोजित   सम्मेलन में मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र ने 'राजमाता' विजयाराजे सिंधिया पर कटाक्ष किया था..। श्रीमती सिंधिया की मौजूदगी पर डीपी मिश्र ने राजे-रजवाड़ों की लानत मलानत की थी। वह समय ऐसा था कि जो भी अधिकारी या नेता श्रीमती सिंधिया को राजमाता कहता उसपर तत्काल कार्रवाई हो जाती थी।

आहत श्रीमती सिंधिया ने कांग्रेस के छत्तीस विधायकों के साथ विद्रोह किया, संसोपा, प्रसोपा, जनसंघ के साथ मिलकर संयुक्त विधायक दल जो 'संविद' के नाम से मशहूर हुआ गठित किया और गोविन्द नारायण सिंह मुख्यमंत्री बने..। संविद के पतन के बाद श्रीमती सिंधिया जनसंघ की आधारस्तंभ बन गईं..। और आज भाजपा जिनकी पुण्याई खा रहा है उसमें जितना योगदान अटल, आडवाणी, कुशाभाऊ का है उतना या उससे ज्यादा ही राजमाता सिंधिया का..।

अब आते हैं आज के घटनाक्रम पर। मध्यप्रदेश में वही सन् 67 जैसी स्थित है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की डीपी मिश्र की ही भाँति खिल्ली उड़ाई कि 'उतरना है तो उतर जाए सड़क पर' यह ज्योतिरादित्य के लिए वैसा ही संघातिक है जैसे राजमाता के लिए डीपी मिश्र का पचमढ़ी वाला कटाक्ष।

मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा प्रतिबद्ध विधायक और मंत्री ज्योतिरादित्य के हैं। लेकिन कमलनाथ सरकार के दौर में सबसे ज्यादा मजाक के पात्र सिंधिया ही बने..। इसे कभी सहा, कभी पलटकर कहा।

लेकिन आज जब शेरा, रामबाई जैसे विधायक सरकार को लाम पर रखते हों और ज्योतिरादित्य जी को कोई इस संकट में फोन तक न लगाए तो ये मामला किसी 'रायल वंशज' के लिए और भी गंभीर हो जाता है।

महाराज माधवराव सिंधिया का जन्मदिन यानी कि 10 मार्च अब एक महत्वपूर्ण तिथि है, ज्योतिरादित्य खेमें की करवट के लिए। यदि इस दिन ज्योतिरादित्य जी की प्रथम वरीयता की राज्यसभा टिकट या प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की बात पुख्ता होती है तो कमलनाथ सरकार कुछ दिन और चैन की साँस ले सकती है..और यदि ऐसा नहीं हुआ तो..प्रदेश की सरकार का गिरना तय मानिए।

सिंधिया की एक तीखी अदावत दिग्विजय सिंह को भी लेकर है। यदि कांग्रेस आलाकमान से कोई सुलह होती है तो एक शर्त वे दिग्विजय सिंह को लेकर भी रख सकते हैं। सिंधिया खेमे के लोग पिछले हफ्ते के घटनाक्रम का प्रायोजक दिग्विजय सिंह को मान रहे हैं। वे अब किसी भी सूरत में दिग्विजय सिंह को राज्यसभा भेजने के पक्ष में नहीं हैं। सिंधिया समर्थक विधायक-मंत्री पहली बार करो या मरो की मनःस्थिति में हैं।

भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ज्योतिरादित्य जी को चाहता है कि वे पार्टी में आएं और दादी की विरासत को आगे बढ़ाएं। यद्यपि चंबल क्षेत्र के तीन-चौथाई भाजपा नेता यह नहीं चाहते..लेकिन उनके चाहने न चाहने पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला। राजमाता सिंधिया ने जिस समर्पण के साथ मध्यप्रदेश में आरएसएस की जड़ें जमाने के लिए सहयोग और वातावरण दिया उसके प्रति संघ कृतज्ञ है और ज्योतिरादित्य की आगे की भूमिका को लेकर आशान्वित है।

यद्यपि भाजपा जल्दी ही ज्योतिरादित्य को मुख्यमंत्री बनाने नहीं जा रही..लेकिन वह राज्यसभा में भेजकर केंद्र में मंत्री पद दे सकती है। लेकिन ऐसी स्थिति में सिंधिया समर्थक विधायक मंत्री कांग्रेस से त्यागपत्र देंगे और कर्नाटक की तर्ज पर फिर चुनाव लड़ेंगे। कमलनाथ सरकार आज की तारीख में ऐसी स्थित में नहीं कि सरकार भंगकर नया जनादेश के लिए जनता के बीच जाए।

कमलनाथ सरकार के पास अब सिर्फ एक कमलनाथ का प्रबंधन, दूसरा मृगलानी की थैली और तीसरी दिग्विजय सिंह की कूटनीति है। सरकार बचती है तो इसके पीछे इन्हीं तीन की कुशलता समझिए..। और सरकार के ध्वस्त होने के कई बहाने और अफसाने होंगे।

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