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28.3.20

कोरोना और ईएमआई : सरकार माई बाप दुहाई!


कहाँ से भरेंगे EMI ? मध्यम वर्गीय परिवार हुई लाचार, सरकार करे इन पर भी विचार, फ्री के नहीं पर समय सीमा के छुट के ये भी हैं हकदार, क्योंकि ये भी हैं भारत सरकार के नागरिक जिम्मेदार...

वैश्विक महमारी कोरोना से पुरी दुनिया परेशान है। इसकी रोकथाम के लिये हर स्तर पर प्रयास जारी है। भारत में भी इसके लिए केंद्र समेत सभी राज्य सरकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ा है। लॉक डाउन से इसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है। पुरे विश्व में तेजी से फ़ैल रहे इस बीमारी के लिए अनुभवों के आधार पर लॉक डाउन का कदम उठाया गया जिससे कोरोना वायरस के चेन को तोडा जा सके।

लॉक डाउन से निश्चित तौर पर पूरे देश का आर्थिक समीकरण काफी बिगाड़ जायेगा। केंद्र और राज्य सरकारों ने आम लोगों को हर संभव सहायता देने की बात कर रही है। राशन कार्ड धारियों को मुफ्त या कम कीमत पर राशन तथा पैसे देने की बात कही जा रही है। सभी सरकारी कर्मियों को भी छुट्टी के दौरान की वेतन मिलेगा। सरकार ने निजी कंपनियों को भी अपने कर्मियों को "वर्क टू होम" तथा पुरे वेतन देने की अपील की है। उच्च वर्ग को इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता दिख रहा है।

परन्तु इस लॉक डाउन में सबसे अधिक मुसीबत में कोई है तो वह सबसे निचले और मध्यम वर्ग को लोग हैं। निम्न वर्गीय लोग जो रोज कमाते और खाते है। इनके पास न तो राशन कार्ड है और न ही कोई स्थाई घर। इनके लिए यह lockdown बहुत बड़ी मुसीबत लेकर आया है | ये अभी भी सड़कों पर अपने जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भारत की सामाजिक और आथिक स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि lock down के बादजूद एक जूस बेचने वाले का कहना था कि घर बैठे मरने से अच्छा है कि संघर्ष कर के मर जाएँ। एक ठेले पर तकरीबन 8 बड़ी-बड़ी बोरी खींच कर ले जा रहे चालक ने बताया कि आज जितना कमा ले कमा ले पता नहीं फिर कब ठेला निकालेंगे। इनकी समस्या का समाधान थोड़ा मुश्किल जरुर है पर सरकार को चाहिए कि इन रोज कमाने वाले के लिए भी बगैर राशन कार्ड के कुछ व्यवस्था की जाये।

वहीं दूसरी ओर मध्यम वर्गीय परिवार जो छोटे-मोटे व्यवसाय करते हैं उनकी भी एक बड़ी समस्या मुह बाए खड़ी है और वो है EMI. हाँ ये वही EMI है जिसे बैंक वाले बड़े-बड़े लुभावने अंदाज में पेश करते हैं। जिस तरह से राशन कार्ड वालों (फर्जी सहित) को अनाज एवं पैसे, सरकारी और निजी कर्मियों को बगैर काम के वेतन की बात की जा रही है, उसी तरह सरकार को व्यवासियों को भी कुछ राहत देना चहिये। ये ऐसे माध्यम वर्गीय लोग हैं जिनकी कमाई का आधा से ज्यादा हिस्सा विभिन्न तरह के लिए गए लोन को चुकाने में चला जाता है। इनके पास गृह लोन से लेकर बाइक और कार तक के लोन, क्रेडिट कार्ड की पेमेंट, टीवी से लेकर अन्य घर की वस्तुओं की EMI सब मुंह बाए खड़ी है। ये EMI इनके जीवन का हिस्सा हो गया है।

होली के एक सप्ताह पहले से ठप्प पड़ा व्यापार अगले कितने दिनों तक प्रभावित रहेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है | ऐसे में EMI देना बहुत मुश्किल हो सकता है। एक स्वर्ण व्यापारी के अनुसार होली के पहले से काम बिलकुल बंद पड़ा था, सभी कारीगर छुट्टी से लौटे हीं थे कि ये नयी परेशानी आ गयी। लगन के वक़्त ऐसा होने से काफी नुकसान तो होगा हीं साथ EMI का चक्कर। ऐसी हीं कुछ परेशानी एक शिक्षण संस्थान चलाने वाले और एक कपड़े के व्यापारी ने ही बताया कि "जब आएगा नहीं तो भरेंगे कैसे"

जैसे सभी को कुछ राहत दिया जा रहा है उसी प्रकार व्यवसाइयों को EMI के लिए भी बैंकों और अन्य कर्जदाताओं को अगले कुछ महीने तक इसे नहीं लेने का निर्देश दे दिया जाना चहिये। क्योंकि काम नहीं होने के बावजूद भी इनको अपने प्रतिष्ठान के बिजली बिल, किराये समेत मानवता के नाम पर अपने कर्मचारियों के वेतन  तो देने ही पड़ेंगे।

पिछले 70 सालों में करोड़ों-अरबों रूपये के सब्सिडी बांटने वाली सरकार से जाति या गरीबी के नाम पर इन्हें फ्री में कुछ भी नहीं मिले पर मानवता के नाम इतनी छुट के तो ये हकदार ये हैं हीं, क्योंकि ये भी भारत सरकार के करदाता हैं।

मधुप मणि "पिक्कू"
Madhup Mani Pikku
लेखक और पत्रकार
presspikku@gmail.com

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