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7.1.09

भड़ास आश्रम में बाटी-चोखा, मुख्य अतिथि 'विस्फोट'

भड़ास के यशवंत और विस्फोट के संजय बाटी-चोखा को अंतिम रूप देते।

आजकल खूब मस्ती है। दिन भर कंप्यूटर और काम की खिट-पिट-खिच-पिच के बाद शाम होते ही 'भड़ास' और 'विस्फोट' का मिलने हो जाता है और ये दोनों मिलकर लगाने में जुट जाते हैं 'आग'। देखते ही देखते इनकी लगाई आग धधकने लगती है। फिर इस आग में सेंकते हैं हम दोनों हाथ। फिर सेंकते हैं बाटी। तगाड़ी में गोइंठा (उपला) और गोइंठा (उपले) की आग। आग के उपर बाटी और आग के नीच आलू। बाटी के अगल-बगल टमाटर और बैगन। बस, दो घंटे की कसरत के बाद बाटी चोखा तैयार। खाओ, खाते जाओ और प्रभु के गुण गाते जाओ। परम तृप्ति के साथ महसूस होता है कि दुनिया में सुख केवल उन्हीं नेचुरल चीजों में हैं जिन्हें हमने बिगाड़ा नहीं है। बाटी-चोखा बहुत आदिम किस्म का खाना है। एक किलो आटा, एक किलो आलू, पाव भर टमाटर, दो बड़े बैगन, दस ग्राम नमक, 25 ग्राम सरसो तेल, पाव भर प्याज, थोड़ी सी धनिया, अदरक व लहसुन। सात-आठ उपले। बस, तैयार हो गया शुद्ध देसी खाना। ये खाना बिहार और यूपी में ज्यादातर भट्टे पर काम करने वाले मजदूर बनाते-खाते हैं लेकिन बाटी चोखा पंद्रह दिन या महीने भर में इस इलाके के लगभग हर घर में बन जाता है।
तो दिल्ली में संजय भाई के साथ जो प्रयोग कर रहा हूं उस प्रयोग की लत हम दोनों को लग चुकी है। एक दिन मिनी भड़ास आश्रम में संजय भाई को बाटी-चोखा पर न्योता क्या दिया, संजय ने अगले दिन आदेश दिया कि कार में उपले लादो और दरियागंज स्थित विस्फोट दफ्तर हाजिर होओ। मैं भी पहुंचा। साथ में तीसरे स्वाधीनता आंदोलन वाले गोपाल राय जी को कार में बिठा लिया। दरियागंज संजय भाई के यहां बाटी-चोखा का जमकर दौर चला। इसके एक दिन बाद कल फिर संजय भाई ने पुकारा और मैं कार में गोइंठा लाद कर दौड़ा चला गया। वहां बनाते खाते रात साढ़े ग्यारह बज गए।
उपरोक्त तस्वीर मिनी भड़ास आश्रम पर बाटी-चोखा के निर्माण की है।
कल बातों बातों में किसी ने कह दिया कि आप लोग उम्र बढ़ने और अनुभव बढ़ने के साथ-साथ सहज और मुक्त होते जा रहे हैं। उसकी बातों में दम था। गहराई से सोचा तो लगा कि शायद यही अपनी परंपरा रही है। मुक्त होने, अंदर से आजाद होने, सहज होने की कवायद ही तो जिंदगी है। जितने तरह के चूतियापे जीवन में भरे होते हैं उनसे धीरे धीरे मुक्त होना ही संतई है। मैंने मजाक में जवाब दिया- इसी रफ्तार से मुक्त होते रहे तो अगले चार-पांच साल में मैं और संजय भाई घर-बार छोड़कर दुनिया में टहलते मिलेंगे और हम दोनों को देखते ही लोग बाटी-चोखा का निर्माण शुरू कर देंगे क्योंकि तब तक सबको पता हो गया होगा कि बाबा लोग केवल उपले की आग पर बने-भूने सामान ही खाते हैं।
जय हो भड़ास, जय हो विस्फोट....धांय धूंय धड़ाम भड़ाम.......जय हो बाटी चोखा....यम्म यम्म चप चप...
यशवंत

4 comments:

अमित द्विवेदी said...

kya hai dada apne bati chokhe ka karyakram kiya aur bulaya bhee nahee. are kam se kam ek messege kar diya hota main aa jata

Ankit Mathur said...

दादा ये बात तय नही हुई थी, मै जब आपसे २६ दिसंबर को मिला था तो तय हुआ था, कि बाटी चोखा या भड़ासाश्रम में सर्वप्रथम बनने वाले भोज में आप बुलायेंगे ज़रूर । लेकिन चलिए आप लोगो ने मज़ा किया इसी से तृप्ति हो गई।
अगली बार बनायें तो बताईयेगा ज़रूर।
जय भड़ास...

Unknown said...

bahut galat baat hai aashram me mujh mahuaa dehati ko bhi bulaiye, aa nahi taa hum khude bhadasi jaisa dhamak jayenge.

उमेश कुमार said...

मेरी भी लार टपक रही है बाटी चोखा देखकर।