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1.10.10

महात्मा गान्धी- कुछ अनकहे कटु तथ्य

१. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।
२. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
३. ६ मई १९४६ को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
४.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए १९२१ में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग १५०० हिन्दु मारे गए व २००० से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
५.१९२६ में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
६.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
७.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
८. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
८. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (१९३१)ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
९. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
१०. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
११. १४-१५ १९४७ जून को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
१२. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।
१३. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनातह् मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और १३ जनवरी १९४८ को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
१४. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
१५. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक युवक ने गान्धी का वध कर दिया। न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर उस अभियोग के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा-"नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थींऔर उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।"
तो भी नथूराम ने भारतीय न्यायव्यवस्था के अनुसार एक व्यक्ति की हत्या के अपराध का दण्ड मृत्युदण्ड के रूप में सहज ही स्वीकार किया। परन्तु भारतमाता के विरुद्ध जो अपराध गान्धी ने किए, उनका दण्ड भारतमाता व उसकी सन्तानों को भुगतना पड़ रहा है। यह स्थिति कब बदलेगी?
२ अक्तूबर (गान्धी जयन्ती) पर यह विषय विशेष रूप से विचारणीय है, जिससे कि हम भारत के भविष्य का मार्ग निर्धारित कर सकें।
डॉ. जय प्रकाश गुप्त, अम्बाला छावनी।
९३१५५१०४२५

10 comments:

ama yaar said...

It seems that Dr. Jai prakash Gupt consider him a much bigger leader and patriot than Gandhi ji. May be because of that he didn't even bothered to suffix either Ji of prefix Mr. before our father of nation. As far as not supporting nation on the topic of Bhagat Singh is concerned, it is rather a difference of opinion between two great freedom fighters. You cannot blame anybody as they have done whatever they thought good at that juncture.
It is my advice to Dr. Gupt that first go deep in to thinking process of Gandhi ji rather than just digging out some “ridicules” historical facts. As long as history is concerned Gandhi ji arrived at the national platform only in 1916 and we got freedom within 31 years just because of this man's efforts. But we should not forget that British ruled us for full 200 odd years and no force before Gandhi ji was able to unite the nation (To which we call India today) against "gora raj". So Jai ho Gandhi and Jai Hind.

ama yaar said...

It seems that Dr. Jai prakash Gupt consider him a much bigger leader and patriot than Gandhi ji. May be because of that he didn't even bothered to suffix either Ji of prefix Mr. before our father of nation. As far as not supporting nation on the topic of Bhagat Singh is concerned, it is rather a difference of opinion between two great freedom fighters. You cannot blame anybody as they have done whatever they thought good at that juncture.
It is my advice to Dr. Gupt that first go deep in to thinking process of Gandhi ji rather than just digging out some “ridicules” historical facts. As long as history is concerned Gandhi ji arrived at the national platform only in 1916 and we got freedom within 31 years just because of this man's efforts. But we should not forget that British ruled us for full 200 odd years and no force before Gandhi ji was able to unite the nation (To which we call India today) against "gora raj". So Jai ho Gandhi and Jai Hind.


Amit Bhanot
Journalist

Darshan Lal Baweja said...

उम्दा भड़ास ...

siddharth chakrapani said...

main aapki baat ka purjor samarthan karta hun,
ye sari baten desh ki janta k samne aani chahiye,tabhi ham shahidon ko sachchi shrdhanjali de payenge.......

siddharth chakrapani said...

main aapki baat ka purjor samarthan karta hun,
ye sari baten desh ki janta k samne aani chahiye,tabhi ham shahidon ko sachchi shrdhanjali de payenge.......

Ajit Kumar Mishra said...

अमा यार के इस तर्क से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ कि वैचारिक मतभेद होते हुए भी हम जिसके प्रति टिप्पणी दे रहे है उसके सम्मान का ध्यान रखना चाहिए और इसमें कुछ हद तक अमायार भी चूक गये है। पर तथ्यों केवल इसलिए ही नहीं छुपाना चाहिए कि इससे किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की छवि खराब होगी।

गजेन्द्र सिंह said...

खुद सोचिये कि आज गाँधी के रस्ते पर चल कर कौनसा काम हो सकता है .... हा गाँधी के सहारे (नोटों के सहारे ) सब हो सकता है ..
जनाब दुनिया में …कम से कम भारत में तो सत्य और अहिंसा नहीं बची है ….. और रही बात गाँधी की तो गाँधी सिर्फ नोट पर ही रह गया है ….

somadri said...

कितनी कडवाहट हैं ...

Unknown said...

अरे बापू रे! लगता है यहाँ बहुत से लोग गांधी जी से नफरत करते हैं। ठीक है भाई मानता हूँ कि उन्होने भी कई गलतियाँ की हैं पर लाखों की एक बात कि उन्होने सबको एकजुट किया संघर्ष के लिए वो भी बिना हथियार के, कुछ तो बात थी यार उनमें। कई गलतियाँ उन्होने मजबूरी मे कि होंगी क्योंकि अंग्रेज उनके पीछे पड़े थे, लेकिन उन्हे मार नहीं सकते थे।
वे कम से कम आज के भ्रष्टाचारी नेताओं से अच्छे थे जो सिर्फ अपने फायदे के लिए देश को बाटने से नहीं चूकते। हो सकता है कि मेरी इस बात को काटने के लिए आपके पास कई तर्क हो पर मुझे तर्क-वितर्क नहीं आता है। मैं तो बस सच्चे मन से अपनी बात कहता हूँ।

Bharat Swabhiman Dal said...

गांधी जी आधुनिक भारतीय राजनीति मेँ विभाजनकारी साम्प्रदायिक तुष्टिकरण की नीतियोँ के जन्मदाता थे । गांधी ने हमेशा उदार राष्ट्रवादी मुस्लिम नेतृत्व की उपेक्षा करके अरब साम्राज्यवादी जेहादी कट्टर मुस्लिमोँ का अनुचित पक्ष लिया । खिलापत आन्दोँलन ( जिसका भारत या भारतीय मुसलमानोँ से कोई सम्बन्ध नहीँ था । ) का समर्थन करके पाकिस्तान का आधार तो जिन्ना से भी पहले रख दिया था । विभाजन का घाव तो एक दो पीढियोँ बाद भर जाता लेकिन दो धर्म , दो देश पर उसके दुश्प्रभावोँ ने नफरत की शक्ल मेँ जडे जमा ली हैँ जो समय बितने के साथ ओर मजबूत ही हुई हैँ । यदि भारत गांधीवाद के पाखण्ड मेँ न फंसा होता तो आज देश की स्थिति कुछ ओर ही होती ।