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6.10.11

गरीब की संवेदनशीलता


गरीब की संवेदनशीलता    

कभी कभी ऐसे सुन्दर सत्य से जिन्दगी रूबरू हो जाती है कि आँखे नम हो जाती है ,ह्रदय संवेदना से भर
जाताहै .लगता है मेरे देश का अभाव ग्रस्त वर्ग कितना संवेदन शील है.उस वर्ग की अपरिग्रहता से माथा
श्रद्धासे झुक जाता है .क्या हमारे देश के राजशाही में जिन्दगी गुजारते नेता ऐसे  अभावग्रस्त का अनुकरण
करसकेंगे या हम जैसे लोग जो अपने को शिक्षित मानते हैं वो भी दिखा  सकेंगे ऐसी संवेदना. 

बात मकर सक्रांति के पर्व की है .सूरत से एक सेवा दल वनवासी बंधुओ के साथ पर्व मनाने गया था .पुरे
दल ने अपने सामर्थ्य के अनुसार अनाज ,दाले,पुराने तथा नए कपडे और ऊनी कम्बल ले लिए थे .कच्चे
और बीहड़ रास्ते से गुजरता ये दल वनवासी इलाके में पहुँच गया था .जिस गाँव को इन्होने चिन्हित कर
रखा था उस गाँव का सरपंच उन्हें दौ किलोमीटर पहले ही उन सबका इन्तजार करता हुआ मिल गया था .
आगे का रास्ता पैदल तय करना था क्योंकि रास्ता ऊबड़ खाबड़ था और उसके बाद  गाँव में पहुँचने का
साधन नाव थी यह दल उस गाँव के सरपंच के गाइड में गाँव में पहुँच गया .उन्होंने गाँव के सभी लोगो को
बुला लिया था और साथ में लायी गयी सामग्री के पेकेट बांटने का काम शुरू कर दिया था .पुरे गाँव में तीस
 के लगभग घर थे .खाने के सामान के पेकेट तो सभी को मिल गए थे .अब बारी थी कपड़ो के वितरण
की .पुराने कपडे भी वे प्रसन्नता के साथ ले रहे थे .औरतों में साड़िया बांटी  गयी .अब कम्बल बच गये
थे . कम्बल कम संख्या में थे इसलिए उस दल ने सरपंच से कहा कि कम्बल की संख्या कम है और
लोग ज्यादा हैं इसलिए आप इन्हें समझा दे कि कम्बल के लिए एक एक घर से एक एक सदस्य आये
और कम्बल ले जाये.सरपंच ने सभी लोगो से निवेदन किया कि कम्बल एक घर में एक के हिसाब से
वितरित होगा इसलिए हर घर से एक एक सदस्य ही आये और कम्बल ले जाये .

सभी कम्बल वितरित किये जाने के बाद दौ कम्बल कम पड़ गए थे उसमे जिसे कम्बल नहीं मिला था
 वे दोनों बुजुर्ग लोग थे .अब क्या किया जाये ? पास में कोई ७० किलोमीटर तक शहर भी नहीं था कि
खरीद कर दे दिया जाता .सभी विचार मग्न थे तभी एक युवती दौड़ती हुयी आयी उसके हाथ में दौ
कम्बल थे .उसने आकर बताया कि वह और उसकी सास दोनों ही पंक्ति में खड़ी थी और अनजाने में हम
दोनों ने ही एक एक कम्बल ले लिए थे जबकि सरपंच जी ने एक घर से एक कम्बल मिलने कि बात कही
 थी .आप ये एक कम्बल वापिस ले लीजिये .

उस युवती कि बात सुन पूरा दल हक्का बक्का रह गया था .इतने अभावो में जीने वाले लोग भी इतने
न्याय प्रिय ! इतने इमानदार ! वह युवती ख़ुशी ख़ुशी एक कम्बल वापिस देकर चली गयी थी .

अब यह सेवा दल भारी  कसमकस में पड़ गया .उनके पास कम्बल एक ही था और दौ सदस्य बाकि बच
 गए थे सेवा दल ने आपस में विचार कर उनमे से जो ज्यादा बुजुर्ग था उसको वह कम्बल दे दी .उस बुजुर्ग
 ने वह कम्बल लेने से मना कर दिया और बोला -"बाबूजी ये कम्बल इसे दीजिये क्योंकि मेरे घर पर तो
खाने के पेकेट के साथ साड़ी भी मिल गयी है परन्तु इसको सिर्फ खाने का पेकेट ही मिला है .इसके घर
कोई औरत नहीं है ये अकेला ही घर में रहता है .सर्दी में इसको काम लगेगा ."

यह सुनकर तो सब सेवा दल वाले आश्चर्य में रह गए .कहाँ हम शहरी पढ़े लिखे और खुद को सभ्य मानने
वाले संवेदना से दूर होते स्वार्थी लोग और कहाँ ये वनवासी जो अनपढ़ ,मैले कुचेले मगर संवेदनशील
और सच्चे अपरिग्रही हैं .

अभावों में भी स्वच्छ आचार विचार के साथ जीने वाले वनवासियों को नमन    

1 comment:

अजित गुप्ता का कोना said...

वनवासी इतने ही सरल और ईमानदार होते हैं।