इन दिनों समझ आ रहा है कि किसी के चले जाने से एक युग का अंत कैसे हो जाता है। अभी-अभी तो स्टीव जाब्स गये थे, जगजीत भी नहीं रुके। एक ने तकनीक की दुनिया बदल डाली, तो दूसरे ने गजलों की परिभाषा। हमने तो गजलों को जगजीत सिंह की मखमली आवाज से ही समझा। जब भी उन्हें सुना, पूरा सुना। उन्हीं की गायी गजलों ने प्रेम के मायने समझाये। विरह की बेला में साथ दिया। मोहब्बत की चाहत से लेकर जुदाई के दर्द तक के हमराज बने। उन्हीं की आवाज की अंगुलियां पकड़ गजल की दुनिया में आये हम और आज वही हाथ हमसे छूट गया।
जगजीत की आवाज सुख की खुशी के साथ-साथ दुःख की उदासी में भी उतनी ही प्रिय लगती। मामला प्रियतम से विरह का हो या फिर मिलन का। गजलों के इस सम्राट को सुन भावनाएं हमेशा शीर्ष पर चली जातीं। गजल को आम लोगों के बीच लोकप्रिय कर जगजीत ने जग को तो जीत लिया लेकिन अब पता नहीं उनके जाने के बाद कौन कागज की कश्ती गुनगुनाएगा। अब तो बस यही याद आ रहा, ‘एक आह भरी होगी, हमने न सुनी होगी, जाते-जाते तुमने आवाज तो दी होगी…’
करीब ६ साल पहले जगजीत सिंह साहेब का बिलासपुर आना हुआ था।एक कांग्रेस नेता कहूँ या फिर बिल्डर या समाजसेवी,जो भी हो उन साहेब की होटल के शुभारम्भ मौके पर ग़ज़ल सम्राट शहर आये ! मैंने पहली बार उनको करीब से देखा और सूना ! काफी देर तक आँखों को यकीं नही हो रहा था की जो दिखाई दे रहा है वो हकीकत है ! वजह भी थी मुझे कभी भी ग़ज़ल सुनने का शौक नही था,मेरे परिचित या ये कहूँ की मेरे बड़े भाई कमल दुबे जी की संगत ने ग़ज़ल को सुनने और समझने की तकत दी ! मै उस रात ग़ज़ल ही सुनता रहा,कब रात भोर में बदल गई पता ही नही चला ! जगजीत सिंह नही है,लेकिन कुछ यादे,कुछ बाते है जो हमेशा मुझे याद रहेंगी ! मुझे अच्छे से याद है एक बार मै कमल भैया के ऑफिस में बैठा था,रात की बैठकी थी सो लगभग सभी लोग मूड में थे ! बात बात में जगजीत सिंह की बात निकल आई,कमल जी ने कहा वो जगजीत फेंस क्लब के पुराने मेम्बर है ! मुझे उनकी बाते केवल लफ़ासी से ज्यदा नही लग रही थी ! एक मित्र ने हिलते डुलते कह दिया अरे यार - दुबे जी,इतना ही सच बोल रहे हो क्यूँ नही जगजीत साहेब से बात करवा देते ! बड़े ही सहज तरीके से कमल जी ने अपना मोबाईल फ़ोन उठाया,कुछ नामो की गिनती की और ये रहा जगजीत जी का नम्बर कह कर डायल कर दिया ! कुछ ही सेकेण्ड में उधर से एक महिला की हेलो कहने की आवाज,फिर दुबे जी का अपना पूरा परिचय देना सब कुछ नया सा था ! महिल ने जवाब दिया आप १० मिनिट बाद लगाइए वो बाथरूम में है ! फ़ोन काटकर कमल जी ने कहा ये उनकी पत्नी यानी चित्र सिंह थी...! मै दुबे जी को बिना पलक झपकाए देखता रहा ! ठीक १२ वें मिनट पर कमल भैया ने फिर उसी नंबर पर रीडायल किया और उधर से इस बार आई आवाज जगजीत सिंह की थी ! उन्होंने कम समय में अपनी उरानी बातो को विस्तार से बताया और ये कहते हुए मेरा परिचय मोबाइल पर करवाया की मै छत्तीसगढ़ के एक बहुत बड़े अखबार में काम करता हूँ,जबकि मै उस वक्त अम्बिकावानी नाम के एक दैनिक समाचार पत्र में लिखता था ! खैर झूठे परिचय के दम पर मैंने करीब ९ मिनट तक जगजीत सिंह से मोबाइल पर हमरदीफ़ गजलो के बारे में बात की ! फ़ोन काटने के बाद मै दुबेजी का ऐसा कायल हुआ की आज तलक उनकी हर बात को उतनी ही गंम्भीरता से लेता हूँ जितने हलके तरीके से मैंने जगजीत सिंह से बात करवाने वाली बात को लिया था !
मैंने न सिर्फ उनसे बातें की है बल्कि उन्हें सामने बैठकर पूरा सुना भी है ! उनको लाइव सुनने की याद अब तक जीवंत है। हां, एक बात का अफसोस रह गया। उन्होंने कहा था, मौका मिलेगा तो फिर छत्तीसगढ़ आऊंगा । हम सबकी यह तमन्ना अधूरी छोड़ ‘चिट्ठी न कोई संदेश … जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गये…’! खैर जग जीत कर "जगजीत" तो चले गये मगर उनकी यादे,वो मखमली आवाज हमेशा कानो में मिठास घोलती रहेगी !
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