जूतम - पैजार
पिछले कुछ समय से जूते का चलन बढता जा रहा है....फर्क सिर्फ इतना है कि पहले जूता सिर्फ पैर में नजर आता था.....लेकिन अब जूता हाथों में हथियार के रूप में नजर आता है...इसका पहला फायदा तो ये है कि आसानी से आप जूते को कडी से कडी सुरक्षा वाली जगह पर ले जा सकते हैं...और मौका मिलने पर भरी सभा में सामने वाले की ईज्जत उतार सकते हैं...औऱ इससे सामने वाले को ऐसी चोट लगती है....कि शायद ही सामने वाले इसका दर्द कभी भूल पाये।
जूता मारने की परंपरा तो बरसों से रही है...कभी चोरी करते पकडे गये किसी चोर को जुतिआया जाता रहा है...तो कभी मनचलों की जूतम- पैजार होती आयी है...लेकिन सबसे पहले जूता रूपी अस्त्र तब सुर्खियों में आया जब ईराक में जॉर्ज बुश पर चला था जूता। पत्रकार मुंतज़र-अल-जैदी ने सबके सामने एक के बाद दो जूते दे मारे थे बुश पर लेकिन किस्मत अच्छी थी कि बच गए बुश। इसके बाद हिंदुस्तान में भी पत्रकार मुंतज़र-अल-जैदी का फार्मूला खूब हिट हुआ औऱ जूता बन गया नया हथियार...इसके पहले शिकार बने हमारे गृहमंत्री पी चिदंबरम...फिर बारी थी बरसों से पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी की...हथियार रूपी जूते का ये सिलसिला यहीं नहीं रूका समय – समय पर इसका भरपूर उपयोग होता रहा...कभी कांग्रेस नेता जनार्दन द्रिवेदी तो कभी सांसद नवीन जिंदल पर...हाल ही में टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल इसके ताजा – ताजा शिकार बने हैं...ज्यादातर मामलों में जूता मारने वालों को इसके शिकार नेताओं ने माफ कर बडप्पन दिखाने का प्रयास किया...लेकिन इसका दर्द शायद ही उनके दिल से कभी जाए...।
लेकिन कुल मिलाकर पैरों की शान बढाने वाला जूता जाने कब किसके सिर का ताज बन जाए...कहना मुश्किल है। कभी दूसरों को अपने जूते की नोंक में रखने वाले नेताओं के लिए इसी जूते का भय सताने लगा है।
एक कहावत आपने भी शायद सुनी होगी कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते...ये बात अब शायद आमजनता को भी समझ आ गयी है...इसलिए भ्रष्ट नेताओं को सबक सिखाने लोगों ने लातों का ना सही जूते का इस्तेमाल बेधडक शुरू कर दिया है...शायद जूतम – पैजार के डर से ही सही भ्रष्ट नेताओं को थोडी अक्ल आ जाए।
दीपक तिवारी
deepaktiwari@khabarbharti.com
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