छोड़ पुरानी रीतियां त्याग सभी दस्तूर
देख तुम्हारे पास ही खड़ा विवश मजदूर
खड़ा विवश मजदूर,लिए तन पर केवल चिथड़े
भूखी आंखें ताक रही हैं केवल रोटी के टुकड़े
मालिक के घर में भी भइया भेदभाव होता है
दीवाली दस फीसद की,नब्बे फीसद रोता है
कुंवर प्रीतम
अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
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