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13.11.24

सुधीर और उर्फी हमारे समाज के हिस्से हैं, कोई गैर नहीं...

महेंद्र अवधेश- 

'साहित्य आज तक' दिल्ली में आगामी 22 से 24 नवम्बर तक एक आयोजन कर रहा है, जिसमें उसने देश की नामचीन हस्तियों को बातचीत के लिए आमंत्रित किया है, जिनमें पत्रकार सुधीर चौधरी एवं उर्फी जावेद जैसे नाम भी शामिल हैं। जन-सामान्य को आयोजन से जोड़ने के लिए उसने एक अद्भुत पहल करते हुए ₹ 499 की टिकट भी लगा रखी है। हुआ सिर्फ इतना ही! बस, खलियर लोगों को अपना हाजमा दुरुस्त करने के लिए एक सटीक चूरन मिल गया। सोशल मीडिया पर सुधीर चौधरी और उर्फी की आयोजन में भागीदारी को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं। 

मोदी सरकार की जबरदस्त पैरोकारी के आरोपों के चलते सुधीर चौधरी मीडिया के एक बड़े वर्ग की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। सत्ता से उनकी नजदीकी किसी से छिपी नहीं है। वहीं शबाना-जावेद अख्तर की बेटी उर्फी जावेद अपने विचित्र पहनावे को लेकर अक्सर चर्चा में आती रहती हैं। लेकिन, सवाल यह है कि इन दोनों हस्तियों के साहित्य आज तक के कार्यक्रम में शामिल होने से भला किसी को क्या परेशानी है? भारतीय साहित्य जगत के शीर्षस्थ हस्ताक्षर अगर इस पर कोई सवाल उठाते तो बात का एक महत्व भी बनता था। लेकिन देखने में आ रहा है कि कोई भी औना-पौना शख्स कार्यक्रम की खिल्ली उड़ाए सिद्ध है! जब आयोजन 'आज तक' का है, व्यवस्थाएं सारी उनकी हैं, खर्च भी वही वहन कर रहे हैं, तो वे किसी को भी बुलाएं, उनकी मर्जी। दर्शकों के लिए टिकट लगाएं अथवा जलसा-ए-आम घोषित कर दें, उनकी मर्जी। किसी दूसरे के पेट में मरोड़ आखिर क्यों? 

रही बात सत्ता से नजदीकी की, तो सुधीर चौधरी ऐसे पहले शख्स नहीं हैं और इसमें कोई बुराई भी नहीं है। सरकार किसी भी दल की रही हो, जो चिपकने में कामयाब रहा, उसने धरके मलाई काट दी। और, सरकार भी कोई बुरी नहीं होती। बस उसके कुछ फैसले असहज से होते हैं, तो ऐसे में मीडिया का धर्म है कि वह उस पर सवाल उठाए और सरकार का भी पक्ष समझे। पत्रकार को सत्ता प्रतिष्ठान की कमियों पर बराबर गौर करना चाहिए, उन पर रोशनी डालनी चाहिए, लेकिन दुश्मनी नहीं करनी चाहिए। आप बने रहिए क्रांतिकारी और दूसरों को बनाते रहिए, कोई पूछने वाला नहीं है। बेवजह की क्रांति घर की शांति छीन लेती है। रसोई आपकी क्रांति से नहीं चलती है। मौजूदा दौर में नौकरी की आखिर क्या गारंटी है? नियोक्ता गण जब चाहें, लात मारकर निकाल दें। वीकली ऑफ, इंक्रीमेंट, प्रमोशन आदि वे हजम किए बैठे हैं। और, उसमें सहायक बनते हैं हमारे-आपके साथी वरिष्ठ। तब सारी की सारी क्रांति धरी रह जाती है। कोई पूछने नहीं आता कि रसोई के कनस्तरों में राशन है या नहीं। 

अब बात उर्फी जावेद की। तो साधुओ! कौन क्या पहनता है, क्या खाता है और कैसे रहता है, यह हमारे-आपके चिंतन-चिंता का विषय कैसे हो गया? उर्फी के पहनावे और जीवन शैली पर सवाल खड़ा करने का हक सिर्फ और सिर्फ शबाना एवं जावेद अख्तर को है, चिंता करने की जिम्मेदारी भी उनकी है। वे उर्फी के जन्मदाता और पालक हैं। हम-आप क्या हैं? जब शबाना-जावेद को किसी तरह का ऐतराज नहीं है तो किसी अन्य को यह हक कैसे दिया जा सकता है? घर के नशेड़ी, गंजेड़ी, आवारा और विभिन्न प्रकार के कुकृत्यों में लिप्त बेटे को कानून के शिकंजे में फंसने से बचाने के लिए हम-आप क्या-क्या जतन नहीं करते हैं? किस-किस से कहते नहीं फिरते कि आपके बेटे जैसा है, थोड़ा रहम कीजिए। लेकिन, किसी दूसरे की बेटी अगर समाज से परे हटकर कुछ कर गुजरे तो फिर सबके सीने पर सांप लोटने लगता है। आखिर क्यों? क्या उर्फी सिर्फ शबाना एवं जावेद अख्तर की बेटी है? नहीं, वह पूरे देश की बेटी है और उसे अपने अंदाज में जीने का पूरा हक है। ठीक उसी तरह, जैसे हमारे-आपके बेटों को सड़क पर सिगरेट का सुट्टा लगाने और क्लास बंक करके गर्लफ्रेंड के साथ मटरगश्ती करने का अधिकार बलात् हासिल है। 

इति शुभम्...

नेहरू से विज्ञान का नाता

कल्पना पांडे- 

इतने सालों बाद हमें शर्म से ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि धार्मिक आडंबरों, पाखंड और अंधविश्वास फैलाने वाले और दकियानूसी सोच के सभी धर्मों के धर्मगुरुओं के बढ़ते प्रभाव और वोटों के लिए उन्हें मिलते राजनीतिक संरक्षण के इस दौर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की नेहरूवादी समझ और भारतीय संदर्भ में इसके वास्तविक उपयोग और कार्यान्वयन के बीच अब गहरी खाई तैयार हो चुकी है। इसीलिए नेहरू आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे। आज देश में जब तमाम जगहों पर अंधविश्वास फैलाने वाले धर्मगुरुओं नेताओं की बाढ़ आई हुई है ऐसे में तकरीबन सत्तर साल पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू का ये कहना कि, ‘राजनीति मुझे अर्थशास्त्र की ओर ले गई और उसने मुझे अनिवार्य रूप से विज्ञान और अपनी सभी समस्याओं और जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की ओर प्रेरित किया. सिर्फ विज्ञान ही भूख और गरीबी की समस्याओं का समाधान कर सकता है. विज्ञान ही वह इकलौता जरिया है जो भूख और गरीबी को मिटा सकता है.’ बेहद दूरदर्शिता से भरा और दृष्टिगामी हो जाता है।

जवाहरलाल नेहरू की वैज्ञानिक सोच की अवधारणा एक तर्कसंगत दृष्टिकोण है, जिसके बारे में उनका मानना था कि यह किसी की सोच और कार्यों का अभिन्न अंग होना चाहिए। विज्ञान और धर्म के बीच उनके मन में कोई अंतर्विरोध नहीं था। उनका मानना था विज्ञान धर्म जैसा नहीं है, जो अंतर्ज्ञान और भावना पर निर्भर करता है। नेहरू का मानना था कि विज्ञान लोगों को पारंपरिक मान्यताओं को एक नए नज़रिए से देखने में मदद कर सकता है, और धर्म असहिष्णुता, अंधविश्वास और तर्कहीनता को जन्म दे सकता है। नेहरू के अनुसार वैज्ञानिक सोच जीवन जीने का एक तरीका है, सोचने की एक प्रक्रिया है, और काम करने का एक तरीका है। इसमें नए सबूतों के लिए खुला रहना, निष्कर्ष बदलना और देखे गए तथ्यों पर भरोसा करना शामिल है। नेहरू का मानना था कि वैज्ञानिक सोच के प्रसार से धर्म का दायरा कम हो जाएगा। नेहरू ने वैज्ञानिक सोच के महत्व पर जोर दिया और माना कि इसे व्यक्तिगत, संस्थागत, सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले ही नेहरू ने सन् 1938 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की एक बैठक में कहा था: 'विज्ञान जीवन की वास्तविक प्रकृति है. केवल विज्ञान की ही सहायता से भूख, गरीबी, कुतर्क और निरक्षरता, अंधविश्वास एवं खतरनाक रीति-रिवाजों और दकियानूसी परम्पराओं, बर्बाद हो रहे हमारे विशाल संसाधनों, भूखों और सम्पन्न विरासत वाले लोगों की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है. आज की स्थिति से अधिक सम्पन्न भविष्य उन लोगों का होगा, जो विज्ञान के साथ अपने संबंध को मजबूत करेंगे.' 


वैज्ञानिक दृष्टिकोण को नेहरु ने सन् 1946 में अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ में लोकहितकारी और सत्य को खोजने का मार्ग बताया था. वैज्ञानिक दृष्टिकोण किसी स्थिति के मूल कारणों के वस्तुगत विश्लेषण करने पर ज़ोर देती है. वैज्ञानिक कार्यपद्धति के प्रमुख या अनिवार्य गुणधर्म जिज्ञासा, अवलोकन, प्रयोग, गुणात्मक व मात्रात्मक विवेचन, गणितीय प्रतिरूपण और पूर्वानुमान हैं. नेहरू के मुताबिक ऐसा नहीं है, ये वैज्ञानिक कार्यपद्धति हमारे जीवन के सभी कार्यों पर लागू हो सकती है क्योंकि इसकी उत्पत्ति हम सबकी जिज्ञासा से होती है. इसलिए प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह वैज्ञानिक हो अथवा न हो, वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला हो सकता है. दरअसल, वैज्ञानिक दृष्टिकोण दैनिक जीवन की प्रत्येक घटना के बारे में हमारी सामान्य समझ विकसित करती है. नेहरू जी के अनुसार इस प्रवृत्ति को जीवन में अपनाकर अंधविश्वासों एवं पूर्वाग्रहों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है.

नेहरू अपनी पुस्तक 1946 की पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया के पृष्ठ 512 पर लिखते हैं “आज विज्ञान के अनुप्रयोग सभी देशों और लोगों के लिए अपरिहार्य और अटल हैं। लेकिन इसके अनुप्रयोग से कहीं ज़्यादा कुछ और भी ज़रूरी है। यह है वैज्ञानिक दृष्टिकोण, विज्ञान का साहसिक और फिर भी आलोचनात्मक स्वभाव, सत्य और नए ज्ञान की खोज, बिना परीक्षण और परीक्षण के किसी भी चीज़ को स्वीकार करने से इनकार करना, नए सबूतों के सामने पिछले निष्कर्षों को बदलने की क्षमता, पहले से तय सिद्धांत पर नहीं बल्कि देखे गए तथ्य पर भरोसा करना, मन का कठोर अनुशासन - यह सब सिर्फ़ विज्ञान के अनुप्रयोग के लिए ही नहीं बल्कि जीवन और उसकी कई समस्याओं के समाधान के लिए भी ज़रूरी है…” वैज्ञानिक दृष्टिकोण को नेहरू विज्ञान को लागू करने से भी ज्यादा महत्व देते हैं। जाहीर है इस तरह के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बिना न समाज का विकास संभव है नया विज्ञान का। नेहरू ने भारत की एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में को कल्पना की और जिसके लिए प्रयत्न किया वो आधुनिक भारत उनके हिसाब से ऐसा होना था जहाँ लोग, पूर्व-धारणाओं और धार्मिक हठधर्मिता से मुक्त होकर, अपने आस-पास की दुनिया को समझने, अपने जीवन को बेहतर बनाने और सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करेंगे। देश और उसके लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने में विज्ञान और उसके अनुप्रयोगों के महत्व पर ज़ोर देते हुए, नेहरू ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी को सोच और तर्क के एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण, 'जीवन का एक तरीका' और 'स्वतंत्र व्यक्ति के स्वभाव' के रूप में परिभाषित किया।

इसलिए, नेहरू ने न केवल राष्ट्र के विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के भौतिक और व्यावहारिक लाभों को पहचाना, बल्कि उन्होंने जीवन के प्रति दार्शनिक दृष्टिकोण के रूप में विज्ञान (वैज्ञानिक पद्धति, दृष्टिकोण और स्वभाव सहित) की भी दृढ़ता से पैरवी की और उसके समर्थन तर्क दिए। भौतिक उपलब्धियों की तरह की विज्ञान की संस्कृति में नेहरू की गहरी रुचि थी। इसलिए वे बार-बार "वैज्ञानिक स्वभाव" और "विज्ञान की भावना" शब्दों का इस्तेमाल करते थे। विज्ञान की उनकी समझ एक दार्शनिकता लिए हुए थी। इसने उन्हें अपने सामाजिक आदर्शों और राजनीतिक विश्वासों को तर्कसंगतता पर आधारित, उनके धर्मनिरपेक्ष विश्वदृष्टिकोण और वैज्ञानिक समाजवाद की अवधारणाओं को विकसित करने और दुनिया के आगे उनके विचारों के रूप में रखने और कार्यपद्धति का हिस्सा बनाने में सक्षम बनाया। 1951 में विज्ञान कांग्रेस में उन्होंने कहा, “मेरी रुचि मुख्य रूप से भारतीय लोगों और यहां तक कि भारत सरकार को वैज्ञानिक कार्य और इसकी आवश्यकता के प्रति जागरूक बनाने की कोशिश में है।” वे साफ कहते हैं कि अकेले विज्ञान ने यह सुनिश्चित किया कि समाज उस तरह की बर्बरता की ओर न लौटे, जिसकी धार्मिक कट्टरता और प्रतिक्रियावादी रूढ़िवादिता बार-बार धमकी देती रही है। इसीलिए जितने साफ तौर पर नेहरू हिंदू और मुस्लिम संप्रदायवादियों की निंदा करते हुए उन्हें बेहद पिछड़ा बता सके और इन तत्वों को सरकार से दूर रख सके वैसा कोई केंद्र सरकार नहीं कर सकी।

भारत की स्वतंत्रता के बाद नए संविधान को लागू करने की चुनौतियों के साथ हमारे देश का नेतृत्व आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरू ने संभाला। देश के इस पहले प्रधानमंत्री को इस बात का भलीभांति बोध था कि वैज्ञानिकों सहित हमारे लोगों को तर्कहीनता, धार्मिक रूढ़िवादिता और अंधविश्वासों ने जकड़ा हुआ है. नेहरू का यह मानना था कि भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का एक ही रास्ता है- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को विकास से जोड़ा जाए. प्रधानमंत्री के रूप में, नेहरू ने अपने वैज्ञानिक विचारों के अनुसार वैज्ञानिक प्रतिष्ठानों का निर्माण किया। अगस्त 1947 में उन्होंने अपने निर्देशन में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक केंद्रीय सरकारी पोर्टफोलियो बनाया। 1951 में प्राकृतिक संसाधन और वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय बना जिसका वैज्ञानिक अनुसंधान विभाग में आगे विस्तार हुआ। नेहरू ने वैज्ञानिक मामलों पर संसद में बहस का नेतृत्व करना, भारतीय विज्ञान कांग्रेस की वार्षिक बैठकों को संबोधित करना और वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के शासी निकाय की अध्यक्षता करना जारी रखा। भारत के उत्तर-औपनिवेशिक विज्ञान के संरक्षक और मार्गदर्शक की तरह उन्होंने अपने वैज्ञानिकों को महत्व दिया। इनमें वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के महानिदेशक एस.एस. भटनागर, भारत की योजना व्यवस्था के सांख्यिकीविद् पी.सी. महालनोबिस और भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष होमी के. भाभा शामिल थे। नेहरू ने परमाणु ऊर्जा विभाग पर अपना निजी नियंत्रण बनाए रखा। परमाणु ऊर्जा में उनकी गहरी रुचि ने यह सुनिश्चित किया कि यह एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत तथा भारत की वैज्ञानिक आधुनिकता के प्रतीक के उभरे। भाभा के साथ उनके संबंध विशेष रूप से घनिष्ठ थे, जिससे परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए विशेषाधिकार प्राप्त वित्त पोषण संभव हो सका। इसीलिए नेहरू का समय भारतीय विज्ञान के उत्कर्ष का युग था। उस समय छद्मविज्ञान की अवधारणाओं को किसी भी तरह का बढ़ावा सरकार द्वारा नहीं दिया गया।

नेहरु ने ही हमारे शब्द-ज्ञान में ‘साइंटिफिक टेम्पर’ (वैज्ञानिक दृष्टिकोण) शब्द जोड़ा. वे डिस्कवरी ऑफ इंडिया में लिखते हैं : ‘आज के समय में सभी देशों और लोगों के लिए विज्ञान को प्रयोग में लाना अनिवार्य और अपरिहार्य है. लेकिन एक चीज विज्ञान के प्रयोग में लाने से भी ज्यादा जरूरी है और वह है वैज्ञानिक विधि जो कि साहसिक है लेकिन बेहद जरूरी भी है और जिससे वैज्ञानिक दृष्टिकोण पनपता है यानी सत्य की खोज और नया ज्ञान, बिना जांचे-परखे किसी भी चीज को न मानने की हिम्मत, नए प्रमाणों के आधार पर पुराने नतीजों में बदलाव करने की क्षमता, पहले से सोच लिए गए सिद्धांत की बजाय, प्रेक्षित तथ्यों पर भरोसा करना, मस्तिष्क को एक अनुशासित दिशा में मोड़ना- यह सब नितांत आवश्यक है. केवल इसलिए नहीं कि इससे विज्ञान का इस्तेमाल होने लगेगा, लेकिन स्वयं जीवन के लिए और इसकी बेशुमार उलझनों को सुलझाने के लिए भी.....वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानव को वह मार्ग दिखाता है, जिस पर उसे अपनी जीवन-यात्रा करनी चाहिए. यह दृष्टिकोण एक ऐसे व्यक्ति के लिए है, जो बंधन-मुक्त है, स्वतंत्र है.’

नेहरु ने भारत में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए अनेक प्रयत्न किए. इन्हीं प्रयत्नों में से एक है उनके द्वारा सन् 1958 में देश की संसद (लोकसभा) में विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति को प्रस्तुत करते समय वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विशेष महत्त्व देना. उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को सोचने का तरीका, कार्य करने का तरीका तथा सत्य को खोजने का तरीका बताया था. सारी दुनिया के लिए यह पहला उदाहरण था, जब किसी देश की संसद ने विज्ञान नीति का प्रस्ताव पारित किया हो. उनका कहना था कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मतलब महज परखनली को ताकना, इस चीज और उस चीज को मिलाना और छोटी या बड़ी चीजें पैदा करना नहीं है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मतलब है दिमाग को और ज़िंदगी के पूरे ढर्रे को विज्ञान के तरीकों से और पद्धति से काम करने के लिए प्रशिक्षित करना. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का संबंध तर्कशीलता से है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार वही बात ग्रहण के योग्य है जो प्रयोग और परिणाम से सिद्ध की जा सके, जिसमें कार्य-कारण संबंध स्थापित किये जा सकें. चर्चा, तर्क और विश्लेषण वैज्ञानिक दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण अंग है. निष्पक्षता, मानवता, लोकतंत्र, समानता और स्वतंत्रता आदि के निर्माण में भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण कारगर है.

1976 में 42वें संवैधानिक संशोधन के हिस्से के रूप में अनुच्छेद 51ए(एच) के तहत भारतीय संविधान में ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और खोज और सुधार की भावना विकसित करना’  प्रत्येक नागरिक के दस मौलिक कर्तव्यों में से एक घोषित किया गया. विज्ञान और प्रौद्योगिकी को मानवतावाद की भावना के साथ जोड़ा जाना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि अंततः हर तरह की तरक्की का लक्ष्य मानव और जीवन की गुणवत्ता और उसके संबंध का विकास है. हमारे बच्चों और समाज में इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास ही नेहरूजी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.  

संपर्क- कल्पना पांडे (9082574315) kalpanasfi@gmail.com

एबीपी न्यूज का पत्रकार चंद्रकांत यादव गैंगरेप केस में दो महीने से जेल में



झाँसी जिले के एबीपी न्यूज के पत्रकार चंद्रकांत यादव को मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले की पुलिस ने गिरफ्तार कर सितम्बर महीने के पहले हफ्ते में जेल भेज दिया था। चंद्रकांत को जेल में दो महीने से अधिक का समय बीत चुका है और कोर्ट से जमानत नहीं मिली है। 

गैंगरेप केस में नामजद चंद्रकांत यादव लंबे समय से फरार चल रहा था और उस पर इनाम भी घोषित किया गया था। कोर्ट की सख्ती के बाद चन्द्रकान्त की गिरफ्तारी हुई है। 

यह जानकारी सामने आ रही है कि गैंगरेप केस में नामजद दूसरे आरोपी को भी पुलिस ने गिरफ्तार जेल भेज दिया है।

चंद्रकांत यादव पर इससे पहले भी कई गम्भीर मुकदमे दर्ज हुए हैं। ग्रुप एडिटर रहते हुए झांसी के एक स्थानीय अखबार में जुलाई 2015 में साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने वाली खबर प्रकाशित करने का केस चन्द्रकान्त यादव और अन्य पर दर्ज हुआ था। 

अखबार के मालिक पर अभी कुछ समय पहले झांसी पुलिस ने गैंग्स्टर की कार्रवाई की है। दूसरी ओर झांसी के कई स्थानीय पत्रकार एबीपी न्यूज में जुगाड़ लगाने के लिए दिल्ली और लखनऊ के चक्कर काट रहे हैं।

मध्यांचल विद्युत वितरण निगम में ट्रांसफर पोस्टिंग में हो रहा भ्रष्टाचार

लखनऊ | बिजली विभाग में भ्रष्टाचार कोई आम बात नहीं है अक्सर हमें अलग — अलग जिलों से भ्रष्टाचार की खबरें दिखाई दे ही जाती है लेकिन एक भ्रष्टाचारी अधिकारी को हटाने के बाद उच्च अधिकारी जब खुद ही भ्रष्टाचारी हो जाएं तो क्या ही कहने। 

हम बात कर रहे है मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (रायबरेली क्षेत्र) की, जिसके अंतर्गत माह अक्टूबर में एक लाख के गलत बिल के कारण एक युवक ने आत्महत्या कर ली थी। प्रकरण में जांच बैठी और दोषी उपखंड अधिकारी बंथर रवि यादव को प्रबंध निदेशक ने 10 अक्टूबर को निलंबित कर दिया था, चलो इस कार्यवाही से मृतक युवक तो वापस नहीं आ सकता लेकिन परिजनों को थोड़ा संतोष जरूर हुआ होगा। 

अब बात करते है उपखंड बंथर के रिक्त हुए पद की तो 6 दिनों के लिए इस पद पर दिनेश यादव को तैनाती मिली चूंकि उनका प्रमोशन हो गया, इसलिए मुख्य अभियंता रामप्रीत प्रसाद ( रायबरेली क्षेत्र) ने इस पद पर कोई नियमित तैनाती न करते हुए, अपने चहते, अरविंद कुमार जो पहले से ही बांगरमऊ में नियमित पोस्ट पर थे को 18 अक्टूबर 2024 को एक पत्र जारी करते हुए नियमित तैनाती होने तक बंथर उपखंड का अतिरिक्त प्रभार दे दिया, कुल मिलकर अरविंद जी के कंधों पर 2 उपखंडों का बोझ आ गया, लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती, 09 नवम्बर 2024 को मुख्य अभियंता रामप्रीत प्रसाद (रायबरेली क्षेत्र) एक और पत्र जारी करते है जिसमें अरविंद जी को बांगरमऊ से हटाकर बंथर का नियमित प्रभार दे दिया जाता है लेकिन साथ ही इसी पत्र में अरविंद कुमार को बांगरमऊ का अतिरिक्त प्रभार भी दे दिया गया तो अब सवाल ये है कि- 

अरविंद कुमार जो कि पहले से ही बांगरमऊ में नियमित थे तो उन्हें बंथर का अतिरिक्त प्रभार क्यों मिला? और अगर अरविंद कुमार को बांगरमऊ से हटाकर बंथर नियमित किया गया तो बांगरमऊ का अतिरिक्त प्रभार क्यों दिया गया? 

बेचारे अरविंद कुमार पहले ही 2 उपखंडों का बोझ झेल रहे थे अब भी 2 उन्हीं दोनों उपखंडों का बोझ झेल रहे लेकिन बड़ा सवाल ये है कि 30 दिन के अंदर ये बदलते ट्रांसफर पोस्टिंग के आर्डर क्या भ्रष्टाचार की कहानी चीखे — चीख के नहीं कह रहे? 

क्या मध्यांचल विभाग में आधिकारियों की कमी है जिसके चलते उपखंडों में नियमित प्रभारियों की नियुक्ति नहीं हो सकती?

अब देखना ये है कि योगी सरकार के मंत्री और विभाग प्रबंध निदेशक इस भ्रष्टाचार के मामले पर क्या कार्यवाही करते है? 







25.8.24

अजयमेरु प्रेस क्लब की साहित्यधारा में बिखरे विभिन्न विधाओं के रंग

 चिता की आग में अब तक धरा की धूल जलती है

अजमेर। अजयमेरु प्रेस क्लब की अगस्त माह की "साहित्यधारा" शनिवार को क्लब के सभागार में सम्पन्न हुई। रचनाकारों ने काव्य की विभिन्न विधाओं के रंग बिखेर कर कार्यक्रम का माहौल खुशनुमा बना दिया। इस बीच बालिकाओं व युवतियों पर लगातार हो रही यौन उत्पीड़न के घटनाओं का दर्द भी रचनाकारों ने अपनी कविताओं में प्रकट किया। कार्यक्रम दो चरणों में हुआ। शुरुआत रजनीश मसीह के मुक्तकों से हुई। 

25.5.24

अखिलेश यादव ने ट्वीट किए कुछ सवाल, कहा- बीजेपी वालों से पूछो

पा मुखिया अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कुछ सवाल शेयर किए हैं. उन्होंने लिखा है कि भाजपा वालों को प्यार से पास बिठाकर ये सवाल पूछिए. 

सपा का नया अभियान : जहाँ दिखे भाजपाई, वहाँ बिछाओ चारपाई! 

इस अभियान के तहत जब भी कोई भाजपाई या उनके संगी-साथी आपके पास आएं तो प्रेम से बिठाकर, उनके कुछ बोलने से पहले ही उनसे पूछिएगा…

-भाजपा संविधान क्यों बदलना चाहती है? 

-भाजपा आरक्षण क्यों ख़त्म करना चाहती है?

-भाजपा सामाजिक न्याय के लिए जातिगत जनगणना का विरोध क्यों करती है? 

-भाजपा किसान विरोधी क़ानून बार-बार क्यों लाती है? 

-भाजपा ने किसानों को कुचलनेवालों को टिकट क्यों दिया? ⁠

-भाजपा महिलाओं पर शर्मनाक अत्याचार करनेवाले अपने पार्टी के लोगों को क्यों बचाती है? 

-भाजपा पेपर लीक करा के युवाओं से  नौकरी के अवसर क्यों छीन रही है? 

-भाजपा मुनाफ़ाखोरी को बढ़ावा देकर कारोबारियों से चुनावी चंदा वसूलकर महँगाई क्यों बढ़ा रही है? 

-⁠भाजपा ने कोरोना की जानलेवा वैक्सीन जनता को क्यों लगवायी?


24.5.24

कभी-कभी लगता है कि अपुनिच भगवान है!

सूर्य नाथ सिंह- 

एक वेब सीरीज आई थी- 'सीक्रेड गेम्स'। उसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी किसी को गोली मरने के बाद हाथ में पिस्तौल घुमाते हुए कहते हैं- "कभी-कभी लगता है कि अपुनिच भगवान है!" 

पता नहीं क्यों वह संवाद दो दिनों से मन में बजे ही जा रहा है। हालांकि कुछ विद्वान इस संवाद को आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा के उदाहरण रूप में व्याख्यायित करते हैं। 

10.4.24

सिद्धांत बनाम सुविधा की राजनीति

विजय सिंह-

से तो अब सालों भर नेताओं द्वारा पार्टियां बदलने का क्रम चलता रहता है परन्तु चुनाव के समय इसमें विशेष तेजी आ जाती है। चुनाव के वक्त तो इन सबकी अंतरात्मा ऐसे जागती है जैसे,पहले कभी सोई ही न रही हो। सालों साल से किसी भी पार्टी में रहते हुए, उसकी वकालत करते हुए,उसके नीति सिद्धांतों को मानते हुए, अनुसरण करते, हुए नेतृत्व का "गुणगान" करते हुए, विपक्षी पार्टियों को गलियाते हुए क्या कभी निद्रा से नहीं उठी होगी,क्या कभी यह नहीं ख्याल आया होगा कि कल को यदि पार्टी या निष्ठा बदल दी तो पूर्व में कहे गए शब्दों को कैसे "जस्टिफाई" करेंगे? 

अरे साहब, दूसरों की छोड़िए, खुद को कैसे समझायेंगें? शायद "अंतरात्मा के जागने का यही फन" राजनीतिज्ञों को आम साधारण जन से अलग करता है जो आज भी कार्यस्थल बदलने के पहले भी सोचते हैं।अभी हाल ही में कांग्रेस के दो चर्चित नेता संजय निरुपम और गौरव वल्लभ कांग्रेस छोड़ कर क्रमशः शिंदे शिव सेना और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं। संजय निरुपम पहले भी शिव सेना छोड़ कर कांग्रेस में आये थे, शिव सेना से वे राज्य सभा के सांसद भी रहे, बाद में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया और अब फिर से शिव सेना (शिंदे ग्रुप ) में शामिल हो रहे हैं। 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार पार्टियों के गठबंधन बदलने के उस्ताद रहे हैं ,इसलिए संजय निरुपम और नीतिश कुमार की इस विषय में चर्चा अब बेमानी है। अभी हाल ही में झारखंड में भाजपा के जय प्रकाश पटेल ने कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा की सीता सोरेन ने भाजपा का हाथ थामा है। 

सिंहभूम से एकमात्र कांग्रेस की सांसद रहीं, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी,गीता कोड़ा, लोकसभा चुनाव के आगाज होने के साथ ही कांग्रेस का हाथ छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी  के कमल को अपना चुकी हैं। इसी कड़ी की  ताजा घटनाक्रम में राजनीतिज्ञों के उसी अंतरात्मा की आवाज पर जमशेदपुर स्थित प्रसिद्ध प्रबंधन शिक्षण संस्थान एक्सएलआरआई के अर्थशात्र व वित्तीय मामलों के व्याख्याता प्रोफेसर गौरभ वल्लभ ने कांग्रेस के हाथ को टाटा बाय बाय कर भाजपा के कमल को आत्मसात कर लिया और अब वे भाजपा व भाजपा नेतृत्व की उन्ही नीतियों का गुणगान करेंगे जिनका कुछ समय पहले तक वे विरोध करते थे या उपहास उड़ाया करते थे।  

इन्हीं सवालों के जवाब पाने के लिए हमने प्रोफेसर गौरव वल्लभ से कुछ प्रश्नों के उत्तर जानना चाहा। हमने उनसे पूछा कि -कांग्रेस छोड़ने की मूल वजह क्या है, जबकि पार्टी ने आपको राजनीतिक सफर शुरू करने के साथ ही पहले जमशेदपुर पूर्वी और फिर उदयपुर से प्रत्याशी बनाकर चुनाव लड़वाया। आप दोनों ही जगह से चुनाव हार गए, यह आपकी व्यक्तिगत कमी थी या पार्टी की? जब कांग्रेस ने अल्पसमय में आपको इतना मान दिया तो "कठिन समय" (जैसा वर्त्तमान में कांग्रेस के लिए प्रचलित है) में कांग्रेस पार्टी और नेतृत्व के प्रति आपकी "निष्ठा" क्यों कमजोर पड़ गयी? 

कांग्रेस में रहते हुए आपने हमेशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा व उनके सहयोगियों का मजाक उड़ाया या विरोध किया है, अब अचानक उन्हीं भाजपा और नरेंद्र मोदी के प्रति आसक्ति कैसे जाग उठी? आपने अपने इस्तीफे में सनातन धर्म, राम मंदिर आदि की चर्चा की है परन्तु आपके ट्विटर पर अब तक लिखे गए (कांग्रेस में रहते हुए समेत) पोस्ट पर कभी किसी कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ता की ना तो आपत्ति दिखी और न ही विरोध या रोकने का प्रयास? 

आपने कांग्रेस की नीतियों और कार्यशैली की चर्चा की है, इसे देश के सम्मानित प्रबंधन शिक्षण संस्थान में हर दिन नए भावी प्रबंधक के व्यक्तित्व को निखारने का जिम्मा उठाने वाले प्रबंधन शिक्षक की नाकामी के रूप में क्यों नहीं देखा जाना चाहिए? आप अपनी बेहतर नीतियों, कार्यशैली से कांग्रेस नेतृत्व को प्रभावित क्यों नहीं कर पाये? आपने ट्विटर पर अपने पोस्ट में देश के उद्योगपतियों, वित्त मंत्री, प्रधानमंत्री की नीतियों और भाजपा प्रवक्ताओं का हमेशा उपहास किया है, तो ऐसे में क्या कांग्रेस नेतृत्व द्वारा उद्योगपतियों के विरोध करने जैसा आपके इस्तीफे में चर्चा विरोधाभास नहीं है? 

क्या इस बात से आप इंकार करेंगे कि उद्योगपति तो सत्ता के साथ ही रहते हैं, पार्टी चाहे कोई हो, जैसा पहले (कांग्रेस शासन में) अंबानी समूह के विषय में कांग्रेस को सपोर्ट करने की चर्चा रहती थी? जिन प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री व भारतीय जनता पार्टी की आप बुराई करते रहते थे, विरोध करते थे, उपहास उड़ाते थे, अब भाजपा के एक सदस्य के रूप में आप कितना सहज रह पायेंगें? इसे आप कैसे "जस्टिफाई" करेंगे? आपके अनुसार "भारत तोड़ने" वालों के प्रति अचानक आपका प्यार कैसे उमड़ पड़ा? इन पंक्तियों के लिखे जाने तक हमें गौरव वल्लभ का प्रतिउत्तर नहीं मिल पाया। जवाब मिलते ही ससम्मान उनका पक्ष प्रकाशित किया जाएगा।

आक्रांता मानस की चपेट, ढ़ह रहे नैतिक विवेक के कंगूरे

कृष्ण पाल सिंह- 

आक्रांता मानस में मानवीय मूल्यों और नैतिकता के लिए कोई स्थान नहीं होता। ऐसी मानसिकता बर्बरता की ओर उन्मुख करती थी। भारत तो आक्रांताओं की मानसिकता का लंबे समय तक भुक्तभोगी रहा है। लूट के लिए भी आक्रांता धर्म का नकाब ओढ़कर आते रहे जबकि बुनियादी तौर पर सभी धर्मो की मान्यतायें एक जैसी हैं जो कि लूट जैसी असभ्यता को गुनाह यानी पाप घोषित करती हैं। ऐसे तथाकथित धर्म योद्धाओं (जिहादियों) को विजित कौम की महिलाओं से बलात्कार करने में भी पुण्य नजर आया है और न जाने कितने शैतानी कर्म हैं जो इतिहास के काले दौर में बंदगी की एक अदा के बतौर नवाजे गये थे।

ऊपर लिखी पंक्तियों का उद्देश्य किसी धर्म विशेष के समूह को निंदित करना नहीं है। सच तो यह है कि आक्रांता मानस के पीछे मनोवैज्ञानिक विडंबनायें होती हैं जिसका शिकार होने पर किसी भी धर्म का व्यक्ति या समूह विकृत चित बन जाता है। क्या भारत के राजनैतिक समाज में हाल के दौर में आक्रांता मस्तिष्क का प्रत्यारोपण किया जा रहा है। यह भारत के लिए कोई पहला अनुभव नहीं है। जब बाहरी आक्रमणकारी नहीं आये थे उस समय भी अशोक महान जैसे सम्राट इस मानसिकता के वशीभूत हो गये थे। युद्धों में खून बहाने का उन्माद उनके विवेक के हरण का कारण बन गया था। कलिंग युद्ध के बाद लगे झटके से वे इस अमानवीय लोलुपता से बाहर निकले तो प्रायश्चित से भर उठे। इसके बाद उन्होंने शांति और सृजन का नया सूत्रपात किया जिसने एक महान सम्राट के रूप में इतिहास में उनको अभिषिक्त किया।

आज दुनिया अतीत के उस दौर से बहुत आगे निकल चुकी है। सभ्य शासन के सार्वभौम प्रतिमान हर देश के लिए स्थापित किये जा चुके हैं। कट्टर से कट्टर और बर्बर से बर्बर देश आज कमोवेश इन प्रतिमानों की कसौटी पर खरा साबित करने की विवशता में अपने को पा रहे हैं। शरीयत शासित देशों में भी लोकतंत्र की भले ही वह सीमित हो बयार और स्त्रियों को सार्वजनिक जीवन में अवसर देने के मामले में रूढ़ियों से उबरने की कोशिश इसकी गवाह है। भारत के नेतृत्व ने तो आजाद होते ही विश्व बिरादरी का गरिमावान सदस्य बनने के लिए सभ्यता के उन्नत प्रतिमानों में शिखर पर पहुंचने की उत्कंठा प्रदर्शित की थी। वयस्क मताधिकार पर आधारित लोकतंत्रीय शासन का वरण किया था। धर्मनिरपेक्षता के मामले में देश की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद उसकी निष्ठा विश्व बिरादरी में सराही गई थी। भारतीय संवैधानिक संस्थाओं और शासन-प्रशासन प्रणाली का पेशेवर तौर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन विश्व बिरादरी को इस देश की भूरि-भूरि सराहना के लिए प्रेरित करता था।

लेकिन हाल के वर्षों में जो उथल-पुथल शुरू हुई है वह इस श्रेय को तितर-बितर करने वाला है। इन वर्षों में भारत के दृढ़ शासन और द्रुतगामी विकास तो अत्यंत प्रशंसा योग्य है लेकिन लोकतंत्र में मनमानी और ज्यादती के जिस नये युग को देखा जा रहा है उससे अधोपतन की ऐसी तस्वीर तैयार हो रही है जो देश की अभी तक की तमाम उज्जवल उपलब्धियों को चकनाचूर कर सकती है। विपक्षी दलों को आर्थिक और वित्तीय तौर पर पंगु बनाना, चुनाव के समय दिग्गज विपक्षी नेताओं को जेल में डालने का अभियान, विमत वाले राज्यों की सरकारों को काम न करने देना, उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए हार्स ट्रेडिंग करना, धनबल के तौर पर सत्तारूढ़ पार्टी को ड्रेगन बनाने के लिए धृष्टतापूर्वक घोटाले, चंदाखोरी और कमीशन खोरी को अंजाम देना और उनकी कोई जांच न होने देना आदि ऐसे कृत्यों का तांता लगा हुआ है जिससे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रश्न चिंह लग गया है। अंतरराष्ट्रीय जगत और सोशल मीडिया पर इसके लिए हमारे नेतृत्व की आलोचना हो रही है लेकिन तानाशाहों की तरह उसे इनकी परवाह करने की कोई जरूरत महसूस नहीं हो रही।

सत्ता प्रतिष्ठान को लोकलाज से विचलित होने की जरूरत तब होती है जब इसके कारण जनमत विरोधी दिशा में मुड़ता दिखायी दे। लेकिन इतिहास के प्रेत और बदले की भावना ने आक्रांताओं की तरह देश के जनमत का नैतिक विवेक समाप्त कर दिया है। सत्तारूढ़ पार्टी तक के कार्यकर्ताओं को अब इस मामले में हो रही आलोचनाओं के जबाव नहीं सूझ रहे। इन पंक्तियों के लेखक की सत्तारूढ़ पार्टी के लोगों से रोज बात होती है जिसमें वे यह मानने में गुरेज नहीं करते कि उनकी पार्टी तो वाशिंग मशीन में तब्दील हो चुकी है जिसमें आकर हर बदनाम नेता के भ्रष्टाचार के दाग आसानी से धुल जाते हैं। लेकिन इस पर लोगों को आपत्ति नहीं है तो चंद लोगों की आलोचना से क्या होता है। सत्तारूढ़ पार्टी समर्थक कुछ लोग जिनके जमीर जिंदा हैं वे कहने लगे हैं कि इतनी ज्यादती ठीक नहीं है लेकिन इसके कारण वे पार्टी के प्रति अपना समर्थन खत्म करने की सोचने को तैयार नहीं हैं।

लोगों के सरोकार उनके पूर्वजों पर इस्लामिक बादशाहों के शासन काल में हुए अत्याचारों का बदला लेने तक सिमट कर रह गये हैं। लेकिन आक्रांता मानस का विस्तार केवल यहां तक सिमटा नहीं है। उन्हें आजादी के बाद के दशकों में संविधान के समतावादी निर्देशों के कारण सामाजिक प्रभुत्व में आ रहे घाटे की क्षतिपूर्ति का अवसर बदले हुए हालात में सुलभ होने से भी अलग तरह के संतोष का अनुभव हो रहा है। जिस धार्मिकता के आवेश में समाज गिरफ्तार हो रहा है उसमें समता के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। यह धार्मिकता उपनिवेशवादी सामाजिक व्यवस्था के स्रोत का काम कर रही है। आजादी के बाद के भारत में देश की धार्मिक व्यवस्था को मानवाधिकारों पर आधारित वल्र्ड आर्डर के अनुरूप समंजित करने का जो प्रयास आगे बढ़ा था वह बैक फायर की जद में है। अनुदारवादी पुनरूत्थान की भट्टी में दहक रहा यह नया भारत दुनिया को क्या दिशा देने वाला है यह सोचनीय है।

4.4.24

संपत्ति की जंग!

अश्विनी-

संपत्ति की जंग कितनी ख़तरनाक होती है जानने के लिए किसी ज़िला अदालत में पहुंच जाइए। केस लड़ रहे अधिकतर लोग ऐसी उम्र के मिलेंगे जिनका एक पैर कब्र तो दूसरा पैर कोर्ट परिसर में होता है। ये वो लोग होते हैं जिन्हें हालात अदालत का नियमित आगंतुक बना चुका होता है। महीने दो महीने में पड़ने वाली अनगिनत तारीख़ों का गवाह बनकर ये लोग मान चुके होते हैं कि अब उनके मरने के बाद ही कोई फ़ैसला आएगा। मैं जब भी ऐसे बुज़ुर्गों से मिलता हूं तो सहानुभूति से भर जाता हूं। सोचता हूं बाबा ने ऐसा कौन सा पाप किया होगा कि जवानी के बाद बुढ़ापा भी कोर्ट के चौखट पर काटने को मजबूर हैं। 

ज़िला अदालतों में आने जाने के दौरान मैंने उत्सुकतावश दो चार बुज़ुर्गों से सवाल भी किया तो उनका जवाब चौंकाने वाला ही मिला। पहले बुज़ुर्ग ने बताया कि वो भरोसा करने की सज़ा भुगत रहे हैं। जिस भाई पर भरोसा किया उसी ने भरोसे का खून कर दिया। बुज़ुर्ग ने बताया पहले छोटे भाई ने मान मनौव्वल कर उनकी ज़मीन का टुकड़ा खेती करने के नाम पर लिया लेकिन सालों बाद उसने खेत ही छोड़ने से ही मना कर दिया। यही नहीं ज़मीन वापस मांगने पर वो पत्नी, बच्चों संग मारपीट पर उतारू हो जाता। खसरा खतौनी में नाम होने के बाद भी हारकर कोर्ट का सहारा लिया लेकिन पंद्रह साल बाद भी फ़ैसला नहीं मिल सका है। ये सब सुनकर मुझे बड़ा अजीब लगा सोचने लगा भला ऐसा भी होता है। 

ज़मीन के मालिक को अपनी ही ज़मीन वापस लेने के लिए इतनी जद्दोजहद करनी पड़ती है। बुज़ुर्ग बोले दीवानी का मुकदमा है जाने कितनी तारीखें गई उन्हें तो याद भी नहीं है। कई बार साहब आते नहीं हैं तो कई बार तारीख़ देकर टरका दिया जाता है तो कई बार वकीलों की हड़ताल तो कभी किसी के निधन पर अदालत नहीं लगती। बुज़ुर्ग बहुत मायूसी से बोले अब तो लगता है मेरे मरने के बाद बच्चे ही मुकदमा देखेंगे। एक अन्य बुज़ुर्ग की दास्तान भी धोखे से भरी मिली। बुज़ुर्ग बोले नौकरी के सिलसिले में आधी ज़िंदगी दूसरे शहर में रहा। तनख्वाह मिलती तो बच्चों के लालन- पालन, पढ़ाई-लिखाई पर खर्च करता। 

यही नहीं ज़रुरत पड़ने पर गांव में रह रहे माता-पिता और परिजनों की भी मदद करता रहा। सब कुछ अच्छा चल रहा था, परिवार में शादी जश्न सब मिलकर मनाते थे। खेतीबाड़ी भी ठीक ठाक थी लेकिन वक़्त के साथ बहुत कुछ बदल गया जिस भाई को लक्ष्मण मानता था उसी भाई ने माता-पिता को जाने क्या घुट्टी पिलाई कि वो उसके मोहपाश में उलझ कर संपत्ति के बड़े टुकड़े को ही उसके नाम कर दिया। बुज़ुर्ग ने आगे कहा सोचा था सब मिलकर रहेंगे लेकिन किसी एक के चाहने से थोड़े ही होता है। परिवार के मुखिया की बेरुखी की वजह से परिवार तो टूटा ही ऊपर से मुकदमा अलग हो गया। जो भाई दांत काटी रोटी का रिश्ता रखते थे, एक दूसरे के दर्द का आलिंगन करते थे, अब हालात ये हो गए कि देखकर रास्ता बदल लेते हैं। 

बुज़ुर्ग की बात सुनकर लगा कि क्या ऐसा भी होता है। माता पिता के लिए तो सभी बच्चे बराबर होते हैं तो चूक कहां हो जाती है कि प्रेम किसी एक ही बच्चे पर न्योछावर करने लगते हैं। सोच रहा था कि क्या चूक परदेशी बच्चे से भी हुई थी। क्या वो अपनी ज़िंदगी में इतना मशगूल था कि माता पिता से ही दूर निवास करते हुए उनके दिल से ही दूर हो गया। मेरेे मन में रिश्तों को लेकर उधेड़बीन जारी थी तभी एक ऐसे बुज़ुर्ग दंपति से मुलाकात हुई जो अपने बेटों से ही मुक़दमा लड़ रहे थे। दंपति की फरियाद थी कि वो अपने जिन बेटों को लाड़ प्यार, पालन पोषण में कोई कमी नहीं की उन्हीं बेटों ने सबसे गहरा ज़ख्म दे दिया। 

दंपति ने सोचा कि उनके पास जो भी संपत्ति है क्यों न वो बेटों के नाम कर दें। उस दौरान कुछ नजदीकी रिश्तेदारों ने समझाया भी कि अपने बुढ़ापे का ख्याल रखें अपने लिए भी कुछ रख लें लेकिन दंपति ने बेटों के प्रेमपाश में उलझकर संपत्ति को उन्हें बांट दिया। समय गुज़रा तो बेटों ने रंग दिखाते हुए माता-पिता को ही बेघर कर दिया। आज माता पिता ज़िंदगी की आखिरी मोड़ पर दाने दाने को मोहताज हैं। आप देश के किसी भी कचहरी में एक खोजो तो हज़ार ऐसे बुज़ुर्गों सरीखें किस्से मिल जाएंगे जो इंसानियत पर से भरोसा हटाते हैं। चौथे बुज़ुर्ग ने कहा कई बार कचहरी में तैनात कर्मचारी तो कई बार आपके वकील ही मुकदमा लंबा खींच देते हैं। हुआ यूं कि बुज़ुर्ग के मुकदमे का फ़ैसला बीस साल बाद आने वाला था तभी उनके वकील ने ही गच्चा दे दिया। 

मजिस्ट्रेट महोदय फ़ैसले के लिए वकील साहब से आवश्यक दस्तावेज मांग रहे थे लेकिन वकील साहब इतने धूर्त थे कि पैसों की लालच में महीनों पेपर बनाने में ही लगा दिया। बुज़ुर्ग की मुताबिक फ़ैसला अब ऐसा अटका कि लगता है उनके अंतिम संस्कार के बाद ही सलटेगा। आज रिश्तों में किस तरह खिंचाव आ रहा है उसकी तस्दीक के लिए आखिर में एक और सच्चा किस्सा बताता हूं। घटना करीब दस साल पहले बनारस शहर की है। एक व्यक्ति ने घर में ही फांसी लगाकर जान दे दी थी। वो अपनी पत्नी बच्चों के साथ किराए के घर में किसी तरह गुज़र बसर कर रहा था। 

उसकी मौत के बाद पता चला कि उसके निवास से महज़ एक किलोमीटर दूर उसके माता-पिता का आलीशान घर था। पिता का करोड़ों का कारोबार था लेकिन बाप बेटे में नहीं बनी। बेटा अपने परिवार समेत किराए के घर में रहने को मजबूर था। वो किसी तरह मेहनत मजदूरी कर पति-पत्नी बच्चों को पाल रहा था। बच्चे भी खुद्दार थे किसी तरह मांगी गई पुरानी किताबों से पढ़कर क्लास में अव्वल आते थे। दूर के रिश्तेदार भी तरस खाकर अनाज पानी का इंतजाम कर देते थे । परिवार की ज़िंदगी कट रही थी लेकिन एक दिन परिवार का मुखिया हार गया। पंखे से लटकर अपनी जान दे दी। 

सोचिए पिता के उस करोड़ों की दौलत का क्या काम जो जवान बेटे की जान तक न बचा सके। मेरा ये सब लिखने की पीछे की पीड़ा समझने की कोशिश करें। इंसान नंग धड़ंग, खाली हाथ ही जन्म लेता है और जब धरती से अपनी पारी समाप्त कर निकलता है तब भी उसके साथ कुछ नहीं जाता है। मतलब साफ़ है हर किसी को खाली हाथ ही लौट जाना है फिर ये स्वार्थ का खेल क्यों। जानते सब हैं लेकिन अफ़सोस की बात है चिंतन मनन कम ही लोग करते हैं। 

26.3.24

Moneycontrol continues its winning streak, beats ET comprehensively across metrics

Number one in Unique Visitors, over three times bigger on Time Spent and a similar lead on Page Views

March 26, 2024: Moneycontrol has strengthened its position as India’s premier business news platform, once again beating The Economic Times comprehensively across all digital metrics. According to Comscore data for February 2024 (India ComScore MMX), Moneycontrol has the largest number of Unique Visitors (UVs), 28.46 million, beating ET , which had 27.1 million UVs. Moneycontrol also maintained its massive lead in pages views (512 million) and time spent (667 million minutes).

24.3.24

YouTube पर पहलवान बन चुके श्याम मीरा सिंह को एक आदमी की तलाश है..

यूट्यूब की दुनिया में पत्रकार श्याम मीरा सिंह एक चर्चित नाम बन चुका है. उनके चैनल पर सात लाख से अधिक फॉलोवर्स हो चुके हैं. उम्मीद है जल्द यह आंकड़ा मिलियन छू लेगा. 

फिलहाल श्याम को एक आदमी की तलाश है. उन्होंने लिखा है कि, "History में Master, या UPSC के लिए History ऑप्शनल रहे ऐसे दोस्त की ज़रूरत है जो रिसर्च कर सकें। स्क्रिप्ट लिख सकें। काम Freelance/ Contribution का है। लेकिन हाँ Regular रहेगा। अगर दोनों की फ्रीक्वेंसी मैच करती है।

अपना नाम और काम- Shyammeerasingh@gmail.com पर ईमेल कर दें।"

4.3.24

बाराबंकी-रुस ज्‍वाइंट पार्टी यानी बीजेपी एक बेहद इज्‍जतदार पार्टी है

 

अनिल सिंह- 

राष्‍ट्रवादी कार्यकर्ता ही सुधार सकता है दो देशों का संबंध 

बाराबंकी-रुस ज्‍वाइंट पार्टी यानी बीजेपी एक बेहद इज्‍जतदार पार्टी है. इज्‍जत से बढ़कर इसके लिये कुछ भी नहीं है, अपनी इज्‍जत भी नहीं. इज्‍जत के लिये यह पार्टी अपना सब कुछ दांव पर लगा सकती है. इज्‍जत लेने और इज्‍जत देने वालों की इस पार्टी में बहुत इज्‍जत है. इज्‍जत बचाने के लिये यह पार्टी इज्‍जत भी कुर्बान कर सकती है. इज्‍जत ही इस पार्टी के लिये सब कुछ है. इज्‍जत नहीं तो यह पार्टी नहीं. ऐसी इज्‍जतदार पार्टी का कार्यकर्ता होना अपने आप में बड़ी इज्‍जत है. 

खैर, इस पार्टी के लिये इज्‍जत के पहले अगर कुछ है तो वह राष्‍ट्र है. जब भी बात करते हैं बस राष्‍ट्र हित की बात करते हैं. जो हराम का पैसा कमाते हैं, वह भी राष्‍ट्र के‍ लिये ही कमाते हैं. राष्‍ट्र को यह लोग महाराष्‍ट्र से भी बड़ा मानते हैं. यह पार्टी राष्‍ट्र को हमेशा सौराष्‍ट्र से भी ऊपर रखती है. इसका बड़ा से लेकर छोटा सा कार्यकर्ता केवल राष्‍ट्र को मजबूत करने की बात करता है. राष्‍ट्र को मजबूत करने के लिये इस पार्टी के नेता व्‍यक्तिगत तौर पर भी प्रयास करते रहते हैं. 

गौरतलब है कि रुस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत से रुस के संबंध थोड़े टेड़े हो गये थे. रुस का झुकाव चीन की तरफ कुछ ज्‍यादा ही हो गया था. यह देश हित में चिंता की बात थी. यह बात जब भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता रावत जी को पता चली तो उन्‍हें राष्‍ट्र को लेकर बेहद चिंता हुई, क्‍योंकि वो बेहद राष्‍ट्रवादी नेता थे. उन्‍होंने तय किया कि सरकार चाहे जो करे, लेकिन वह अपने व्‍यक्तिगत प्रयासों से बाराबंकी और रुस के संबंध सुधारने की कोशिश करेंगे. 

रावतजी इसी प्रयास में जुट गये. उन्‍होंने बाराबंकी और रुस के संबंध को सुधारने के लिये हर संभव प्रयास करना शुरू कर दिया. इसी क्रम में उन्‍होंने रुस से सबंध सुधारने के लिये होटल की बुकिंग की. मीटिंग के दौरान इन्‍होंने अपना इज्‍जत देकर और रुसी से इज्‍जत लेकर संबंध को मजबूत बनाने का प्रयास किया. अगर आप मीटिंग का मुजाहिरा देखें तो पायेंगे कि बाराबंकी और रुस दोनों शांत, सौहार्दपूर्ण एवं उत्‍तेजित माहौल में संबंध सुधारते देखे जा सकते हैं. 

संबंध सुधार के दौरान कहीं भी ऐसा नहीं लग रहा है कि बाराबंकी या रुस में किसी प्रकार की कोई वैमनस्‍यता है. मैं राष्‍ट्रवादी पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता का तहेदिल से शुक्रगुजार हूं कि उन्‍होंने अपने निजी स्‍वार्थ से आगे निकलकर रुस जैसे बड़े देश से संबंध सुधारने की दिशा में पहल किया है, अन्‍यथा कई तुच्‍छ कार्यकर्ता तो नेपाल और बांग्‍लादेश जैसे छोटे देश से संबंध सुधार लेते हैं. मैं बेहद राष्‍ट्रवादी और इज्‍जतदार पार्टी के इज्‍जतदार कार्यकर्ता रावत साहब को रुस से संबंध सुधारने की बधाई देता हूं. 

उम्‍मीद करता हूं कि राष्‍ट्रवादी पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ताओं के अलावा दूसरी पार्टियों के नेता भी निजी हितों को दरकिनार कर रुस, नेपाल, ब्रिटेन से अपने संबंध सुधारेंगे तथा इसका सबूत जनता में पेश करेंगे. पहले मुझे कांग्रेस के सिंघवी के जज बनाने की प्रक्रिया पसंद थी, लेकिन रावत जी का रुस से संबंध सुधारने की प्रक्रिया प्रेरणादायक लगने लगी है. मुझे पूरी आशंका है कि कुछ नेता दो देश नहीं तो दो राज्‍यों के बी संबंध सुधारते भी नजर आ सकते हैं. यह हमारे राष्‍ट्र के लिये इज्‍जत की बात होगी. 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. 

अंबानी के बेटे की शादी में रिहाना के ठुमके और अमिताभ की फिल्म दीवार का डायलॉग!


मिताभ की दीवार फ़िल्म में एक दृश्य है, जिसमे वो एक बिल्डिंग खरीदता है. खरीदते वक्त वह बिल्कुल भी मोलभाव नहीं करता और बिल्डर जो कीमत मांगता है उसी में खरीद लेता हैं. बिल्डर कहता है आपको सौदा करना नहीं आता. 

यदि आप कुछ मोलभाव करते तो मैं कुछेक लाख कम में भी आपको यह बिल्डिंग बेच देता. तब अमिताभ कहता है कि सौदा करना आपको नहीं आता, इस बिल्डिंग के बनते समय मेरी मां ने ईंटे उठाई थी. यदि तुम कुछेक लाख ज्यादा भी मांगते तो भी मैं आपको देकर यह बिल्डिंग खरीद लेता.....?

कुछ लोग कह रहे है गोबर जैसी शक्ल वाली रिहाना को अपने बेटे के विवाह समारोह में 2-4 ठुमको के लिए मुकेश अंबानी ने  70 करोड़ क्यों दे दिए? इतने पैसे में तो भारत में ही ठुमके लगाने वाली सैकड़ो मिल जाती. 

अंबानी को सौदा करना नहीं आता. उधर अंबानी भाई, अमिताभ की तरह सोच रहे हैं कि इस रिहाना ने ब्लैक स्पेसियो से पैसे लेकर अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब की थी. उसे सबक सिखाने का इससे बेहतर मौका और कहां मिलता? यदि रिहाना 2-5 करोड़ ज्यादा भी मांगती तो भी मैं उसे दे देता! 

25.2.24

Dr. Arvind Panagariya at the ‘Ideas of India’ Summit 3.0: If we take away COVID years, we have grown about 8.8% in real dollars for past 20 years, which we could not imagine in 1980s

“The conditions are perfectly there for India to take the world by storm. India is now the only economy, which is growing strongly.”

 

Mumbai, February 24, 2024: With “The People’s Agenda” at the Ideas of India Summit 3.0, Dr. Arvind Panagariya, Chairperson, 16th Finance Commission, shared his views on "The Economic Whisperer: How to Fuel Growth with Jobs."

 

Speaking about the old India and the new India, Dr. Arvind Panagariya, said, “I used to be very pessimistic about India in 1980s. Things changed in 1991. We have had upside down but the trend has been towards liberalization. If we take away COVID years, we have grown about 8.8% in real dollars for past 20 years, which we could not imagine in 1980s.

 

Offering economic perspectives on fostering growth while addressing unemployment, Dr. Arvind Panagariya, said, “The conditions are perfectly there for India to take the world by storm. India is now the only economy, which is growing strongly. ”

 

“Unemployment is not really a problem for India; underemployment is. The challenge is creating well-paid, high productivity jobs.” Dr. Arvind Panagariya said talking about jobs.

Highlighting the power of India’s population, Dr.  Arvind Panagariya, said,  “The population is large and the population is young. The size of population will help us. We don’t have that kind of dependency ratios as China has.

 

Dr. Panagariya, added, “We are a labour abundant country and a capital scarce country. We have put most of our capital in a few selective, capital-intensive sectors. A lot of workers are working in sectors, like agriculture and MSME, that have very low capital.” 

 

Sharing his view on manufacturing versus services debate, Dr. Arvind Panagariya said, “There’s no escaping manufacturing. There’s no country which has grown on services. Semiconductors manufacturing is important from the perspective of National Security.”

 

“In India, building consensus is a part of the democratic reform process, which makes passing laws a slower process.” Dr. Arvind Panagariya said, and also remarked, “During Vajpayee’s Prime Ministership labour laws were tabled. Subsequently, no government showed the courage. With Modi Government, the laws have been passed. It is now the states that have to write the rules and regulations to implement the laws

 

Talking about reforms, Dr. Panagariya added “Implementation of labour laws, privatization of public sector enterprises and banks are some of the important reforms that need to be brought about.”

 

Sharing his love for India, Dr. Arvind Panagariya, said “Coming back to India has always been invigorating. I used to keep coming back and cannot stay away from India.

 

A Professor of Economics, Arvind Panagariya has served as the first Vice Chairman of the NITI Aayog, He also served as India’s G20 Sherpa and led the Indian teams that negotiated the G20 Communiqués during presidencies of Turkey (2015), China (2016) and Germany (2017). Professor Panagariya has also been a Chief Economist of the Asian Development Bank.

 

The ABP Network’s ‘Ideas of India’ Summit 3.0 spotlighting the ‘The People’s Agenda’ brought a confluence of ideas and ideators to a common platform celebrating the country’s people and its plurality. The two-day summit hosted policymakers, cultural ambassadors, industry experts, celebrities, business leaders, economists, and leading luminaries to delve into the fundamental ideas of liberty, justice, equality, and diversity that define India, its society, culture, and politics. The meaningful deliberations on diverse topics had the brightest minds across sectors providing insights about the nation's trajectory and its journey to become Viksit Bharat.

“The idea of civic nationalism that India once embodied has shifted towards ethno-religious and linguistic nationalism over the last 10 years”, said Dr. Shashi Tharoor at Ideas of India Summit 3.0


·         “I am a proud Hindu. Growing up as a Hindu, I was passionately taught to accept all different religions. All forms of worship ultimately follow the same path.”

·         I am against weaponisation of Hindu identity for a political purpose.

 

Mumbai, February 24, 2024: Dr. Shashi Tharoor, Member of Parliament, INC - Thiruvananthapuram and Author: Notes from the Field at Ideas of India Summit 3.0, said, “Our form of nationalism is rooted in civic principles, grounded in the constitution. I hold a deep allegiance to this vision of India, the very essence of the nation I grew up in.”

 

Discussing the concept of nationalism, he commented, "Nationalism is an idea born in the 19th century, centred around uniting people with shared traits. Ethnicity, religion, and language were the primary criteria for this grouping. However, India's approach to nationalism evolved as a form of anti-colonial resistance. Our brand of nationalism distinguished itself from others. However, over the last ten years, the idea of civic nationalism that India embodied once changed to Ethno, religious, linguistic nationalism"

 

He continued, "While Pakistan was established on the basis of religion, the logic that led to the country's partition did not resonate with the makers our constitution at that time. Our form of nationalism is civic, anchored in the constitution. I have a profound commitment to this version of India, the one I was raised in.

 

Dr. Shashi Tharoor, further added, I am a proud Hindu. Growing up as a Hindu, I was passionately taught to accept all different religions. All forms of worship ultimately follow the same path. This is reminiscent of Vivekananda's words in Chicago: "I believe in my truth, and you believe in your truth, but you have to accept my truth as well.” Tolerance and acceptance have been the very foundation of the Hindu religion from the start. I am against weaponisation of Hindu identity for a political purpose.”

 

The ABP Network’s ‘Ideas of India’ Summit 3.0 spotlighting the ‘The People’s Agenda’ brought a confluence of ideas and ideators to a common platform celebrating the country’s people and its plurality. The two-day summit hosted policymakers, cultural ambassadors, industry experts, celebrities, business leaders, economists, and leading luminaries to delve into the fundamental ideas of liberty, justice, equality, and diversity that define India, its society, culture, and politics. The meaningful deliberations on diverse topics had the brightest minds across sectors providing insights about the nation's trajectory and its journey to become Viksit Bharat.

Hopeful that SC orders will be followed to hold J&K Assembly elections by September: Omar Abdullah at 'Ideas of India' Summit 3.0


 Mumbai, 24th February 2024: Challenging the claims of the BJP regarding development and peace in Jammu and Kashmir (J&K), JKNC leader and former J&K CM Omar Abdullah said that it was a matter of shame that elections were announced by the Supreme Court of India rather than by the Election Commission. He made these remarks while speaking at the 'Ideas of India' Summit 3.0 in Mumbai. He expressed hope for his party's good performance in the upcoming Lok Sabha elections and expressed optimism that the Supreme Court's orders would be followed for conducting Assembly Elections in J&K by September this year.

 

"It is a matter of shame that elections were announced by the Supreme Court of India and not by the Election Commission," he said during a session on Truth and Reconciliation: Giving Kashmir a Chance.”

 

"If 5 years after 2019, you can’t hold elections then it is a shame. If you could have elections in 1996, then you should have no excuse in conducting elections in 2024. We will take the fight with BJP. I hope Supreme Court orders will be followed, and we will have elections by September. We will campaign for the rights of the people of J&K, their land, undo the damage of August 2019; we will be talking about acceptance," he asserted.

 

He also launched a scathing attack on the Modi Government, branding it as the most disconnected government with the people on the ground. "The government is not reaching out to the ordinary people. We haven’t had assembly elections since 2014. If everything is so peaceful and people are thrilled with what happened on 5th August 2019, then why are they not having elections?” he said. 

 

When asked about the current situation and issues facing Kashmiri Pandits, Abdullah stressed that while things may appear calm on the surface, militancy, terror attacks, and attacks on minorities have increased.

 

"To believe Article 370 is the root cause of the problems in Jammu and Kashmir is not right. The country was told separatism, terrorism, and lack of development are because of Article 370. But we will be reaching the 5th anniversary of the abrogation of Article 370 this year, and separatists and terror on the ground continue to exist, and attacks on minorities in areas like Rajouri and Poonch are constantly being launched."

 

Speaking about the challenges faced by Kashmiri Pandits, Abdullah emphasized, "The absence of Kashmiri Pandits was an open wound of the last 30 years of trouble. One of the areas of reconciliation is to facilitate their return. They didn’t leave because of Article 370. They left because of a lack of security, and this government has not brought back that sense of security. More Kashmiri Pandits want to leave Kashmir today than five years ago. They are more targeted, and Bollywood keeps churning out propaganda movies. These are inconvenient facts."

 

The ABP Network’s 'Ideas of India' Summit 3.0, spotlighting 'The People’s Agenda,' brought a confluence of ideas and ideators to a common platform, celebrating the country’s people and its plurality. The two-day summit hosted policymakers, cultural ambassadors, industry experts, celebrities, business leaders, economists, and leading luminaries to delve into the fundamental ideas of liberty, justice, equality, and diversity that define India, its society, culture, and politics. The meaningful deliberations on diverse topics had the brightest minds across sectors providing insights about the nation's trajectory and its journey to become Viksit Bharat.

99% Indians don’t believe that the constitution of India constitutes India: Prof. Vinay Sitapati at Ideas of India’ Summit 3.0


 “Modi’s personal popularity is higher than BJP’s; Indira Gandhi made Congress “I”, Modi has not made BJP ‘M’ ”

 

“In my view, Narasimha Rao was the best Prime Minister we had for the sheer scale of the transformation he brought with one-tenth of the power Modi has”

 

Mumbai, February 24, 2024: “India remains a free country. Most parts of India look like a bento box and not a salad bowl. Indian politics will reflect Indian society.” Prof. Vinay Sitapati, Author and Associate Professor, Ashoka University spoke on Understanding Politics Personalities, Ideas, Ideologies at ‘Ideas of India’ Summit 3.0Politicians don’t have a fixed canvas to get votes. The canvas changes all the time.

 

Departing from conventional understanding of right, left, and centre, Prof. Sitapati establishes newer concept of Indian ‘Right and Left’, explaining, “Civilizational and constitutional views of India are different. If your moral compass is broadly the constitution of India, then you are left of centre. If you believe that civilizationally Indian nationalism is thousands of years old, you are right of centre.”

 

He further added, “99% Indians don’t believe that the constitution of India constitutes India. We think that secularism is central to the idea of India. Native Indian language  don’t have a word for secularism, which native language speakers don’t relate to. These ideas from the constitution does not have popular purchase in India. The constitutional view of India as a popular project has failed.”

 

Speaking about the Indian society and its dynamics, Prof. Vinay Sitapati said, “India hasn’t dramatically changed. It is just that the dynamics of the society that a particular politician has been able to leverage has changed.”

 

Comparing Dravidian movement to Hindutva, Prof. Vinay Sitapati, said, “The Dravidian movement lasted in Tamil Nadu from 1960’s onwards. It is not very different from how Hindutva has become so dominant in Gujarat after KHAM alliance and Madhav Singh Solanki.”

 

“For a typical BJP voter, India is rising, and things are getting better. Indians don’t only think in material terms of Roti, Kapda and Makkan. They think in spiritual terms as well. It is the feeling that we have arrived. Boring foreign policies have been used by the Government as a strong message to the common man that Indians can stand-up to the West,” Prof. Vinay Sitapati explains the psyche of BJP voter.  

 

On being asked who has been the best PM of India, Prof. Vinay Sitapati, said, “Narasimha Rao is the best PM India has had. He brought an extraordinary scale of transformation with one-tenth the power Narendra Modi has”

 

The ABP Network’s ‘Ideas of India’ Summit 3.0 spotlighting the ‘The People’s Agenda’ brought a confluence of ideas and ideators to a common platform celebrating the country’s people and its plurality. The two-day summit hosted policymakers, cultural ambassadors, industry experts, celebrities, business leaders, economists, and leading luminaries to delve into the fundamental ideas of liberty, justice, equality, and diversity that define India, its society, culture, and politics. The meaningful deliberations on diverse topics had the brightest minds across sectors providing insights about the nation's trajectory and its journey to become Viksit Bharat.

“West Bengal will be the mother of all battles in election 2024”, said Yashwant Deshmukh, Founder, CVoter Foundation, at the ‘Ideas of India’ Summit 3.0

 

·         “If the 2024 elections centre on issues such as unemployment and poverty, the BJP's chances of re-election appear slim”, said Sanjay Jha, renowned Author and Columnist

 ·         In Southern States, BJP has scope but they have to form an alliance with another party.”, said Pradeep Gupta, Author and Chairman & MD, Axis My India Ltd.

 

·         “NDA will encounter difficulties in seat sharing in Bihar”, said Prof. Sanjay Kumar

 

Mumbai, February 24, 2024: Seasoned pollsters, Sanjay Jha, Yashwant Deshmukh, Prof. Sanjay Kumar, Pradeep Gupta join the ‘Ideas of India’ Summit 3.0 to predict the people’s mandate for 2024. Speaking on the session, The Pollsters' Poll: Can They Get 2024 Right?, Yashwant Deshmukh, Founder, CVoter Foundation, said, “West Bengal will be the mother of all battles in election 2024. The question is, will BJP reach 370+? If we want to understand how to go beyond slogans and look at ground realities, we need to examine what happened in 2004 and what cannot happen in 2024. In 2019, the BJP had 37% of seats, while the Congress had 20%. This change in the baseline is the reason behind BJP’s confidence.”

Sanjay Jha, renowned Author and Columnist, commented,


"We saw what happened during the mayoral elections of Chandigarh. We have also observed the comments made by the Supreme Court regarding electoral bonds. If elections are conducted based on the issues of 2024, this government has no chance of coming back. If Congress has the spirit and confidence, Bihar, West Bengal, Uttar Pradesh, Karnataka, and Maharashtra will play crucial roles in the upcoming elections, and Congress must take the lead and provide leadership for the INDIA alliance.

 

A leading election analyst, Prof. Sanjay Kumar, Co-Director of Lokniti, CSDS, said, “Bihar is an important state for the NDA, with 40 seats, of which the NDA won 39 last time. They need to repeat their performance in Bihar to maintain their edge. The BJP is carefully strategizing for each seat to reach its target of 370+ and 400+ for the NDA. It aims to achieve this ambitious goal. However, NDA will encounter difficulties in seat sharing.”

 

Pradeep Gupta, Author and Chairman & MD, Axis My India Ltd. said, In Southern States, “To emerge victorious, the BJP must form alliances with regional parties in southern states like Tamil Nadu or Andhra Pradesh. The BJP has a scope to reach its target of 370+ and 400+ for NDA. If the AIADMK collaborates with the BJP in Tamil Nadu, it could secure victory for the NDA. In Andhra Pradesh, regional parties hold significant influence. Additionally, it faces the challenge of competing against the ruling Congress in Karnataka.

 

The ABP Network’s ‘Ideas of India’ Summit 3.0 spotlighting the ‘The People’s Agenda’ brought a confluence of ideas and ideators to a common platform celebrating the country’s people and its plurality. The two-day summit hosted policymakers, cultural ambassadors, industry experts, celebrities, business leaders, economists, and leading luminaries to delve into the fundamental ideas of liberty, justice, equality, and diversity that define India, its society, culture, and politics. The meaningful deliberations on diverse topics had the brightest minds across sectors providing insights about the nation's trajectory and its journey to become Viksit Bharat.