क्या शाहरुख खान बददिमाग हैं?
जयप्रकाश चौकसे
Saturday, March 01, 2008 08:43 [IST]
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क्या शाहरूख बद दिमाग हैं
परदे के पीछे. शाहरुख खान ने बतौर अभिनेता काफी नाम और दाम कमाया है, परंतु इस सबके बावजूद उन्हें किसी को गाली देने का अधिकार नहीं है। बददिमागी का न दिखाई देने वाला कीड़ा जाने कब त्वचा के भीतर प्रवेश कर जाता है। दरअसल घटिया और निहायत ही फूहड़ फिल्म ‘ओम शांति ओम’ की आलोचना से शाहरुख बौखला गए हैं।
फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह में शाहरुख खान और सैफ अली खान ने फिल्म आलोचकों का खूब मजाक उड़ाया। मजाक उड़ाने का सबको अधिकार है परंतु इन दोनों ने आलोचकों को अपरोक्ष रूप से मां-बहन की गालियां भी दीं और तथाकथित तौर पर अभद्रता से बचने के लिए बचकाना कदम उठाया जैसे आलोचकों की मां और बहन बोलने के बाद क्षण भर के लिए रुके और आगे वाले अभद्र शब्द के बदले बोला गया कि मां-बहन लकी हैं। इसी तरह उर्दू के फख्र शब्द को भी अंग्रेजी की एक गाली की तरह उच्चरित किया गया।
उनका यह सोच सही हो सकता है कि अधिकांश आलोचकों को सिनेमा की समझ नहीं है और हिंदुस्तानी व्यावसायिक सिनेमा को यूरोप के मानदंड पर नहीं तौलना चाहिए। शायद यह भी सही है कि अधिकांश आलोचक आलोचना के बहाने स्वयं के ज्ञान का ढोल पीटते हैं, परंतु उन्हें मां-बहन की गालियां, भले ही वह अपरोक्ष ढंग से दी गई हों, देने का हक नहीं है।
इस गाली-गलौज से आलोचकों के अपमान से ज्यादा शाहरुख और सैफ का घटियापन जाहिर हुआ है। शाहरुख की ‘ओम शांति ओम’ सफल फिल्म है, परंतु वह महान कृति नहीं है। सच्चई तो यह है कि बतौर निर्माता शाहरुख ने अभी तक कोई तीर नहीं मारा है। उनकी ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’, ‘अशोका’ और ‘पहेली’ असफल और घटिया फिल्में रही हैं। अजीज मिर्जा की ‘चलते चलते’ अच्छी फिल्म थी।
फरहा खान की ‘मैं हूं न’ और ‘ओम शांति ओम’ महज पैसा कमाने वाली फिल्में थीं। पैसे के मानदंड पर अक्षय कुमार अभिनीत ‘वेलकम’ उनकी ‘शांति’ से ज्यादा सफल है। सैफ अली खान के ताज पर सिर्फ करीना ही हैं और उन्होंने क्या किया है? जिस चमड़ी पर मेहबूबा का नाम गुदवाया है, उसके भीतर चुल्लू भर लहू के अलावा कोई संवेदना नहीं है।
फिल्मफेयर के इसी मंच से पिछले साल शाहरुख ने अमर सिंह के लिए अपशब्द कहे थे, परंतु अमर सिंह का नाम इतना बदनाम है कि किसी ने इस अभद्रता की शिकायत नहीं की। अब इसी मंच से आलोचकों को गालियां दी गई हैं। क्या हम यह समझें कि इस अभद्रता में यह पत्रिका शामिल है? शाहरुख ने विदेशों में इतना नाम कमाया है कि लंदन, बर्लिन और पेरिस में उन्हें भीड़ से बचाने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ता है।
हमें इस शाहरुख पर गर्व है। वह विज्ञापन आदि से सौ करोड़ रुपए प्रतिवर्ष कमाते हैं और एडवांस के तौर पर सत्ताइस करोड़ आयकर देते हैं, हमें इस पर भी गर्व है। परंतु इस सबके बावजूद उन्हें किसी को गाली देने का अधिकार नहीं है। उनमें ऐसी मर्दानगी भी नहीं है कि छाती ठोककर गाली दें। वह गालियों के लिए पतली गलियां चुनते हैं। क्या सफलता शाहरुख के सिर पर सवार है?
उनके दरबारी चमचे फरमाते हैं कि चालीस हजार किताबें भी शाहरुख का बखान नहीं कर सकतीं। यह शाहरुख को क्या हो गया है? उन्होंने अपने इर्द-गिर्द कैसी भीड़ पाली है? विनम्रता जीनियस का ताज होती है। शाहरुख तुमसे पहले और तुम्हारे बाद भी तुमसे बेहतर कहने वाले आए हैं और आएंगे। यह मसरूफ जमाना सबको भुला देता है। अगर किसी के पास विनम्रता नहीं है तो उसकी पूरी परवरिश पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
शाहरुख के पिता तो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और उन्होंने अच्छी परवरिश दी है। शाहरुख ने फिल्मों में बिताए पहले पंद्रह वर्ष में कभी अभद्रता का प्रदर्शन नहीं किया बल्कि वह सितारों के लिए रोल मॉडल रहे हैं। उनके व्यवहार का यह परिवर्तन मौजूदा दौर में ही नजर आ रहा है।
उन्होंने ‘ओम शांति ओम’ में अनेक लोगों का मखौल उड़ाया है। शायद उन्हें यह नहीं मालूम कि वह बददिमाग होते जा रहे हैं। यह बददिमागी का न दिखाई देने वाला कीड़ा जाने कब त्वचा के भीतर प्रवेश कर जाता है। दरअसल घटिया और निहायत ही फूहड़ फिल्म ‘ओम शांति ओम’ की आलोचना से वह बौखला गए हैं।
मियां शाहरुख! बॉक्स ऑफिस के परे भी सिनेमा होता है- बैंक की पास बुक से बेहतर पटकथाएं होती हैं। शाहरुख की ही विचार प्रकिया में कहें तो यह ठीक है कि आलोचकों को सिनेमा की समझ नहीं और शाहरुख को कहां अभिनय आता है। यह सिर्फ जैसे को तैसा की शैली है।
2.3.08
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