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2.4.08

जूनियर भाई जरा संभलकर

लेखक ' धर्मेंद्र चौहान
अबरार भाई के कहने पर भड़ास पर डाल रहा हूं उनके ही आईडी से

वैसे तो अख़बार से बहुत प्यार करता हूं। लेकिन यहां की राजनीति देखकर जी भर जाता है। सोचता हूं कि क्यों न अख़बार छोड़ दूं। लेकिन अपने प्यार को जिंदा रखने के लिए इन सब से लड़ना पड़ेगा। वैसे अख़बारियत वो नशा है जो परिवार के नशे यानि प्यार के बाद शुरू होता है। मैं भी अभी 27 का हूं लेकिन 20 साल की उम्र से पत्रकारिता कर रहा हूं। आजकल के नए लड़के.लड़कियों जिनमें मैं भी शामिल हूं अपने सीनियर की इज्जत करना नहीं जानते। उन्हें लगता हैं बस प्रिंट मीडिया में एक दो महीने कट जाएं फिर कोई न कोई न्यूज़ चैनल वाला माइक थमा ही देगा। या फिर कुछ असंतुष्ट सीनियरों के साथ राजनीति कर इसे बाहर करवा दें। मेरी परेशानी ये कि मैंने कभी बासगीरी नहीं दिखाई क्योंकि मेरे जो बास यानि सीनियर हुए वो काफी सभ्य थे। मुझ नए नवेले खिलाडी से उन्हें कभी कोई शिकायत नहीं रही। न ही मैंने उन्हें कभी क्रास किया।लेकिन आजकल तो जूनियरों को लगता है इसे बाहर होने के बाद संपादक उन्हें ही कुर्सी दे देगा। लेकिन उन्हें सच का अंदाजा नहीं होता कि एक अख़बार कैसे तैयार होता है। उन्हें क्या पता स्टोरी आइडिया सोचने और अख़बार के लिए पत्नी को दिए एक घंटे में भी टीवी खोलकर बैठजाते हूं या कोई किताब पढ़ने लगता हूं ताकि नालेज बढ़े खबरों के आइडिया आएं। सात साल में हर दिन 15.15 घंटे काम किया है तब जाकर सीखा है। रीडर को क्या चाहिए। और जूनियर जो कभी मैं भी था इतनी जल्दी आगे नहीं बढ़ जाता। अगर संपादक को तोककर (इंदौरी भाषा है) हिंदी में चापलूसी कर अगर आगे भी बढ़ जाते हो टिके रहने के लिए काम तो आना चाहिए बाद में खुद संपादक हटा देता है। इसलिए सीखों गुरु

6 comments:

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

सही बात है भाई साहब जूनियरों को जरा संभलकर कदम आगे बढ़ना चाहिए। बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि बिन गुरु के ज्ञान मिल ही नहीं सकता। इसलिए जितने भी सीनियर हैं उनका सम्मान करना जूनियरों का फर्ज है। लिखते रहिए।

Anonymous said...

बहुत सही कहा आपने। हम सभी कभी जूनियर थे और जो सम्मान हमने अपने सीनियरों को दिया है वही हम अपेक्षा भी करते हैं। जूनियर साथियों को संभल कर और सम्मान के साथ काम करना चाहिए।

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

बहुत सही कहा आपने। हम सभी कभी जूनियर थे और जो सम्मान हमने अपने सीनियरों को दिया है वही हम अपेक्षा भी करते हैं। जूनियर साथियों को संभल कर और सम्मान के साथ काम करना चाहिए।

Anonymous said...

बिल्कुल सही कर्मक्षेत्र के सीनिअर की इज्जत जरुर करनी चाहिए क्यूंकि कल हम भी किसी के सीनिअर होंगे.

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

सत्य है भाई,लेकिन वरिष्ठ लोगों को भी अपना व्यवहार कनिष्ठों के प्रति पिता-पुत्र या बड़े भाई की तरह रखना होगा,सम्मान को घुड़की देकर तो नहीं मांगा जा सकता यदि हममें योग्यता होगी तो हमारे बच्चे स्वयं ही आदर करते हैं किसी से अपने साथ कैसा व्यवहार करवाना है ये तो स्वयं पर ही निर्भर है।

Ashish Maharishi said...

पत्रकारिता का नशा ही ऐसा है कि जहां एक दो बाईलाइन आई बस अपने आप को संपादक का बाप मान लेने का भ्रम हो जाता है। हमारे एक सहकर्मी ने तो एक बार अपने एक सीनियर को छूरा भोक देने की धमकी तक डाली मुंबई में। लेकिन बड़ती उम्र के साथ वो भी थोड़े ठंडे और बड़ों का सम्‍मान करना सीख जाएंगे