कल रात को वरली ऑफिस से वाशी घर को पंहुचा तोबड़ा थका हुआ था। लड़के से कहा खाना लगाओ और मैं कुर्सी पे बैठ गया। बगल में मेरा एक सहकर्मी था, उदास और परेशान और रोनी सी सूरत लिए हुए। पूछा की क्या हुआ दुखी क्योँ है। तो उसी ने बताया की ..........
सर कुछ दिन पहले हम बाहर गए थे कुछ खरीदने, एक कपड़े की दूकान के पास एक लड़का मिल गया जो १२०० रूपये का पैंट ४०० रूपये में लेने को कह रहा था, पैंट अच्छा था सो मैने ले लिया। उस लड़के के साथ दूकानदार भी था जो कह रहा था की डिस्काउंट ऑफर है और कोई दिक्कत हो तो कभी भी आकर बदल लेना। आज मैं दुकान मैं कुछ चेंज करवाने गया तो उस दूकानदार ने रोक लिया की ये पैंट चोरी का है। जब मैने उसे बताया की ये तो तुम्हारे सामने ही मैने लिया था तो उसने कहा की नही ये माल तो तीन दिन ही हुए हैं आए हुए और अभी तक एक पीस भी नही बिका है और चोरी हो गया। सो तुम उसका नाम बताऊ जिस से तुमने लिया था या तुम को अंदर करवा दूंगा ।
इसके साथ ही उस के सारे गुर्गे वहाँ जमा हो गए और मुझे गली देने लगे मेरी पिटाई भी करना चाहते थे। मेरी समझ मैं नही आया की क्या करूं तो मैने कमल सर (मेरा दूसरा सहकर्मी) को बुला लिया । बात बिगरती जा रही थी और वह लोग पूरी बदतमीजी पर उतर आए थे। कह रहे थे की या तो जिस से पैंट लिए उसका नाम बताऊ या फ़िर मेरे १५ हजार के कपड़े चोरी हुए हैं ये भरो नही तो पुलिस मैं दाल दूँगा । अब वहाँ करीब १०० लोग जमा हो चुके थे और साथ मैं पुलिस वाले भी आ गए थे । पुलिस वाले ने भी उन्ही की तरफदारी करते हुए मुझ से पैसे भरने की बात कही हमारी हालत इसी थी की कुछ नही कर सकते थे सो हमने उन्हें पैसे दे दिए। मगर अभी भी डर लग रहा है की आगे पता नही वह क्या गुंडा गर्दी करेंगे।
ये थी उस गरीब की कहानी हालात ये थीहमने उसे वापस दिल्ली भेज दिया। कारन नया लड़का अभी उस बेचारे का भविष्य है कहाँ पुलिस के चक्कर मैं आ गया तो आगे पता नही क्या होगा।
दिलचस्प तथ्य बताता चलूँ की मायानगरी मैं इस तरह के कांड होते ही आरोप बिहारी और भइया जी पे लगा दिया जाता है मगरये दूकानदार तो मराठी था और उसके गुर्गे भी संग ही वह पुलिस वाला तो ठेठ मराठी था। तो क्या मराठा भी आज कल इसी घटना को अंजाम देने लगे हैं या पहले से ही ये ऐसा कर के यहाँ के निरीह उत्तर भारतीयों पर आरोप थोपते आ रहे हैं। उत्तर जो भी हो मगर सोचनीय है क्यूंकि इस घटना ने मुम्बई के प्रति मेरे नजरिये को बदल दिया।
1.4.08
मायानगरी की माया
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4 comments:
अरे रजनीश भाई, क्यों भड़ास का नाम डुबो रहे हो? मैं वाशी से २० मिनट की दूरी पर पनवेल में हूं। मेरा मोबाइल नं.९२२४४९६५५५ है,मुझे भी तो बताओ कि वो कौन सूरमा है जिसमें इतनी ताकत आ गयी कि भड़ासियों को सताने लगा? साला कोई पागल भी मधुमक्खियों के छत्ते में हाथ नहीं डालता,ई ससुरा कौन तुर्रम खान पैदा होई गवा?
रजनीश भैया ,डाक्टर साहब बिल्कुल सही कह रहे हैं...हम लोगों से पंगा लेने वालों को बिच बाजार नंगा कर दो फ़िर देखो हमारा कमाल.
भाई कोई तुर्रम खान नही था और हम तो साले हैं ही भारी के पंगेबाज़ उ का कहते हैं बिहार से हैं ना मगर क्या करें उन बच्चों का जो हैं तो हमरे देश से मगर हो गए इंजिनियर और बेचारे सोचते हैं की शरीफों की तरह चुपचाप निकल जाओ पंगे ना लो, मेरा तो दिल कर रहा था की जा के भारी का पंगा लूँ मगर हमारे हालात ऐसे हैं की पंगे नही ले सकता, वैसी भाई नम्बर के लिए धन्यवाद कभी पकाता हूँ आपको भी ।
और मनीष भाई हम अपने माटी को कभी बदनाम ना होने देंगे और अब तो साला हम पक्के भडासीहो गए हैं, इतने सारे भाई बंधू के नाक का सवाल है सो काट के ही आयेंगे कटनेना देंगे।
जय भडास
जय जय भडास।
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