(बिहार के मुंगेर जिला के जमालपुर में इलाहाबाद बैंक में कार्यरत अशोक आलोक जी सुंदर और ह्रदय स्पर्शी गजल लिखते हैं। ''समय सुरभी अनंत'' में छपी उनकी इस गजल पर गौर फरमाएं)
उदासिओं में छुपा आफताब होता है
जमीं की कोख में जैसे गुलाब होता है
हरेक शख्स का चेहरा किताब होता है
किसी सवाल का बेहतर जबाब होता है
जिगर के दर्द का अपना शबाब होता है
कभी वो कम तो कभी बेहिसाब होता है
मचल रहा है नजर में यकीं का सूरज
बिना यकीं कहाँ इंकलाब होता है
अजीब धुप का साया जमीं पर पसरा
जहाँ बहार का मौसम अजाब होता है
बुनें यूं लाख ख्यालों में रेशमी परदे
लिबास सच का मगर लाजबाब होता है
(सचमुच लिबास सच का बड़ा लाजबाब होता है।)
जय भडास
जय यशवंत
मनीष राज बेगुसराय
3.4.08
लिबास सच का मगर लाजबाब होता है.
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1 comment:
badhiya hai bhayi. aise logo ko khoj khoj kar enki rachnaye sabhi ko padhate rahna chahiye.
yashwant
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