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3.4.08

तुम ऐ सी में बैठ कर रो लेते हो तो क्या जब इनको आग में बैठ कर हँसते देखता हुं तो बड़ा ताज्जुब होता है.

संगीता देवी
संगीता की बेटी पायल और बाबुल
संगीता की कहानी उसी की जुबानी एवं गाली-गलौज के बाद भडास पर पुराने दिनों की यादें ताजा हो गयी। यशवंत दादा के पत्र का शीर्षक ''साथी मनीष राज बेगुसराय वाले.....हम हार कर भी जीतेंगे'' का कंटेंट दिमाग में उथल-पुथल मचाता रहा। आख़िर हम जीतेंगे तो कैसे और कब?लेकिन संगीता के मामले में यह कहते हुए अजीब सा एहसास हो रहा है की हमने ''कैसे'' और ''कब'' का जबाब खोज लिया है। हमे रौशनी मिल गयी है ,हमें इस प्रश्न का उत्तर मिल गया है जिसके लिए सभ्य कहे जाने वाले बंधू-बांधवों ने हमे अब तक गलीच,बेब्कुफ़ और न जाने कितने ऐसे उपाधिओं से नवाजा। हम कैसे भूल जाएं की हमारे सहकर्मी,हमारे परिवार,हमारे अधीनस्थ व अन्य लोग हमे धमकाते रहे,हमे गरियाते रहे,हमे चेताते रहे की साले बहुत गाली बकता है,सच्ची में तू चुतिया टाइप प्राणी है।
जी सही में इन चुतियापा को वर्षों से,शिद्दत से महसूस करता आ रहा हुं,उन दिनों से जब मेरी माँ भी मुझे इन गालिओं से बचने की हिदायत दिया करती थी,इ सब गंदा बात है...तो एक दिन मेरे चाचा जब मैं कोई सात-आठ साल का रहा होगा मुझे अंगूठा दिखा कर बोले ''लौरा'' ...अब यह शब्द मेरे जीवन का प्रथम शब्द...बुझने नही आया की इ शब्द का मतलब का होता है...तो उत्सुकता लिए डाइरेक्ट घुस गया आँगन में जहाँ दादा जी,दादी,पिताजी,माँ सब बैठे थे...तपाक से दो बार जोर-जोर से बोल दिया लौरा...लौरा.....रे बाप...गजब हो गया...जुलुम हो गया ,माँ ने इतना जोर से कान उमेथा की मैं रोने लगा ,सुबुक-सुबुक कर बताया की उ चाचा अंगूठा दिखा कर इ मंतर दिया हमको। उम्र बढ़ती गयी,समाज में,परिवार में,गाँव में,गली में,दूकान पर,बाजार में,घर में,दालान पर,दुआर पर इन शब्दों के विभिन्न भेड़ों से मुखातिब होता चला गया,हँसी के मौके पर''तेरी माँ की हिला दिया तोएं सार'' तो दुसरे मौके पर ''माँ चुद जायेगी तेरी भैन्चोद'' मतलब दिन में भले ही दस गिलास पानी और दो-चार सिलिंडर ऑक्सीजन पी जाते हों लेकिन हमरा कान ऐसे सैन्क्रों शब्दों को सी द्राइभ में एस्तोर कर के रखता था। अब जिन भाई बहिन लोगों को ऐसे शब्दों से पाला नही पडा होगा वो निश्चित तौर पर अपवाद होंगे मगर हमरे राग-राग में,पोर-पोर में,नस-नस में,इस टाइप का अनेक अलंकरण थोक रूप में उपलब्ध है,जिसे मैंने ख़ुद सृजन नही किया है,आपके समाज की सार्वजनिक स्वीकार्यता एवं बेधारक प्रयोग ने ही मुझे विश्व के सबसे बड़े हिन्दी कमुनिटी ब्लॉग ''भडास'' पर गालिआं लिखने की प्रेरणा देता है। हम जैसा जीते हैं,वैसा लिखते हैं,कोई नाटक नही,जो देखा वो लिखा,जो सूना वो लिखा,जो जाना वो लिखा बिल्कुल उसी रूप में जो जैसे दिखती है वैसे ही लिखता हुं,हम गाली सुनते हैं,झेलते हैं,देखते हैं तो वेद की रिचाएं कैसे लिखें? जब कोई सम्मान का वास्तविक हकदार होता है,आपके समाज का नाम ऊँचा करता है,छाती चौडा करता है,तो हम सम्मान,उपाधि और बडाई लिखते हैं लेकिन जब उसी समाज का कोई आपके द्वारा निर्मित अवधारणाओं,अनुशासन,नैतिकता,शील और इज्जत,प्रतिष्ठा का गांड मारता है तो आप हमसे यह उम्मीद कैसे करते हैं की उन भोंसरी वालों को पूजनीय बना कर भडास पर परोसें। अब कंटेंट के मामले में फैसला आपको करना है की गाली कितनी जरुरी है विषय को प्रभावोत्पादक एवं आक्रोशित स्वर देने के लिए?
खैर छोरिए इन बातों को क्यूंकि भैया अपुन का यह गाली प्रेम मुंगेर घाट पहुँचने के बाद ही मेरा दामन छोरेगा क्यूंकि न जाने क्यों मेरी निगाहें ऐसे मानुषों को खोज ही लेती है जो वास्तव में गाली खानदान के असली हकदार हैं तो उनको उनका हक़ तो मिलना ही न चाहिए। जैसे प्रेरक कार्य को सम्मान तो पतनोंमुखीकार्य के लिए ''गाली या गोली''। ये सवाल मैं बार-बार पूछ रहा हुं कोई यह कह कर भी इस अध्याय को विराम नही देता है की ''न गाली न गोली.....समाज जैसे चल रहा है चलने दो,ढेर बाबा मत बनो....फालतू बक बक मत करो.....बल्हों मत कुदक...मत फान...भिडू ये इंडिया है यार,हिन्दुस्तान की आत्मा तो कब की मर चुकी है ,संवेदना के जलस्रोत तो कब के सुख चुके हैं,प्रेम से बोलो तो भी कोई प्यार नही देता है,गाली से बोलो तो भी कोई प्यार नही देता है,गोली तो रोज प्यार कर रहा है मतलब जो हो रहा है..होने दो...
तो होने दो न....कोई उपाधि होने दो...कोई गाली होने दो....कोई गोली होए दो....कोई बेरेकर नही....कोनो छौरी के पटिया लो,दो साल मौज कर लो...बच्चा जन्मा के खाड़ कर कर दो....फेर भौजाई पर फान जाओ...मिजाएज तय्यो न बना तो टिशन पर माल खोज लो ......तो संगीता के ऐसे मानसिकता के पति जो सिर्फ़ बच्चा पैदा करना जानता है,पालन,पोषण,जीवन,श्रृंगार,बोध,वात्सल्य से जिस मर्द का कोई लेना देना नही,जो पत्नी को मौज करने की मशीन समझता हो ,तरह-तरह के अत्याचार कऐ तरीके को इजाद कर उसका प्रयोग करता है तो थिक है आप ऐसे प्रभु को उपाधिओं और सम्मान से नवाजिये हम व्भोंसरी के बुरल ही समझो ऐसन सार को खोज-खोज कर गरियाएम्गे....नो बेरेकर....न तेरे लिए...न मेरे लिए.... तुम इंटरनेट पर कंटेंट और व्याकरण तलाशो हम हकीकत की जमीं पर कंटेंट तलाशेंगे,ऐसी अनेक संगीताओं की आवाज बन कर दुनिया को हिन्दुस्तान का कंटेंट दिख्लाएंगे ,उसे सम्मानजनक जिन्दगी वापस लौटाएंगे,उसके अबोध बच्चे को ऐसे पापी बाप के छाया से दूर रख कर आश्रय की ऐसी जमीं देंगे जिसकी बुनियाद पर वे अपने अरमानों की इमारत खडा कर सके।
तो एक अप्रिल को दिन के करीब ग्यारह बजे संगीता के भाई मुकेश का फोन आया ,बड़ा विह्वल स्वर में बोला की मनीष भैया आज आप किसी भी हालत में मेरे घर पर आइये ,कलकत्ता से टिन चार भाई लोग आए हैं ,इ लीजिये संगीता से बातचीत कीजिए तो संगीता ने भी यही बात दुहराई। मैंने राजीव नयन को फोन लगाया जिसके माध्यम से मैंने संगीता और उसकी व्यथा को जाना था और बोला की चलो तैयार हो जाओ हम अभी संगीता के घर पर चलेंगे। तो निकाला अपना मोटर साइकिल और बेरेक लगा सोझे संगीता के दुआरी पर। सब बाप-पूत पहले से एकदम तैयार था,जग गिलास,पानी चाय-चुक्का,खटिया पर एगो चद्दर बिछाया हुआ,काठ वाला दु गो कुर्सी....करीब चालीस पचास लोगों की भीड़। सब भाई बहिन लोग भक्त स्टाइल में था...संगीता के पिताजी...माता जी,भाई जी,भौजाई जी,पायल,बाबुल समेत सौंसे पंडीजी तोला संगीता पर हो रहे अत्याचारों की दास्ताँ ले कर..मुन्ह्फत हो कर,बेधारक मुझे बता रहे थे की इस महिला को कितना सताया गया है,कितना कष्ट दिया गया है और अभी यह कैसे विक्षिप्त सी जिन्दगी जी रही है। मुझे थोरी झिझक भी हो रही थी कारण की भडास पर संगीता वाली पिछली पोस्ट जिसमें गाली गलौज की गयी थी का प्रिंट आउट निकाल कर मुकेश ले गया था और जिरोक्स करा करा कर समूचे टोले में बाँट दिया था तो छौरा छापारी जो पहले पढ़ चुका था उ हमरा मुंह हिबे,औरत लडकियां मुझे देख कर दबी हँसी निकाल ले ......बाप चाचा टाइप के लोग बड़ी गंभीरता से मुखमंडल पर हँसी ला कर बोले की मनीष राज आप और भडास की परिकल्पना वास्तव में अनोखा है,वाह रे वाह ऐसा सहयोग वास्तव में हम सब लोग आप के आलेख से प्रभावित हैं। तो भाई बहिन लोग इस टाइम न मेरा तो रोआं खडा हो गया ...रे बाप तनी गो सुकून मिला।
तो कुल्ला आचमन के बाद चाय,नाश्ता ,फलना चिलना के बिच मेरी निगाह कलकत्ता वाले बंधू को खोज रही थी । मैंने मुकेश को आवाज लागैतो ऐसे भीड़ भरे माहौल में मुकेश तो मेरे पास आया ही...सारे लोग भी एकदम से सैट कर खडा हो गए,मैं बोले तो विधायक..सांसद माफिक फिल कर रहा था पूछा की भाई उ कलकत्ता वाले भाई लोग किधर हैं? मुकेश शायद पहले भांप लिया या क्या बात था सुर्र से घुस गया घर में और संगीता को मेरे सामने खडा कर बोला की मनीष जी संगीता की हार्दिक इक्षा थी की आप मेरे यहाँ आयें और मेरे परिवार ,मेरे समाज के लोगों से मिलें ,जाने और समझें की मेरे साथ कितना अत्याचार हुआ है तो आज एक अप्रिल है न ...इसलिए आपको कलकत्ता वाला ख़बर दे कर मूर्ख बना दिए।
अब लो दद्दा....इ का होई गवा? मेरा खोपडा स्टैंड बाई मोड़ में चला गया....मेरी तो हँसी छुट गयी...राजीव से भी बर्दाश्त नही हुआ और फ़िर वह पुरी भीड़ हमारे साथ खिलखिला पड़ी। सभी ग़मों को भूल कर दो पल के लिए माहौल उत्सव सा बदल गया। संगीता और उसके बच्चे के चेहरे पर तैर रही हँसी ने मुझे गहरी सुकून दी,.....ग़मों के आग में बैठ कर भी इन माँ बच्चों की हँसी ने मुझे जीवन की सच्ची परिभाषा समझा दी। माहौल फ़िर पूर्ववत होता चला गया,मैं संगीता और उसके बच्चे की तस्वीर लेकर सीधे अपने घर चला आया। और अभी भडास पर यह स्वीकार करते हुए अजीब खुशी हो रही है की अगर भडास को सिरिअसली लिया जाए तो यह वास्तव में ऐसी हजारों संगीता के लिए हमारा सामुहिक प्रयास रौशनी की एक किरण बन सकती है,हँसी का एक उपवन बन सकती है,समाज को एक सार्थक दिशा दे सकती है।
अब आइए कार्य की प्रगति के सवाल पर तो दो अप्रिल को बेगुसराय के एस पी अमित लोधा को फोन लगाया ..परनाम पाती...जी सर..यस सर.....के बाद सारांश में संगीता और भडास तथा इ मेल अभियान से अवगत करवाया। मैंने तो यह सोचा था की साहब बड़ा बेक्कल हो कर कहेंगे ''यस अमेजिंग यार......आई गौट मोर देन हंड्रेड मेल्स ओं संगीता एंड हर किड्स''.....मगर उधर से यह आवाज आई की मनीष अभी मैं बुखार में तप रहा हुं,सर्दी जाड बुखार तबाह किए हुए है....तुम ऐसा करो परसों आओ तो मैंने तुरंत बोला की सर जी कम से कम मेल तो चेक कर लो। तो जनाब ने फरमाया एल मेल चेक करने का तेम किधर है...तो भाई बहिन लोग देखो नीतिश के इ गवर्नेंस की घोषणा का पेरेक्तिकल ....महोदय के हाथ में ब्रोड़ बैंड का लेप टॉप है तनी गो बुखार लग गवा तो पाँच दिन से मेल तक चेक नही कर पा रहे हैं।
तो अभी तक की वस्तु इस्थिति से मैंने आप को अवगत करवा दिया है । पंकज पराशर सर ने किरण वेदी और महिला आयोग का उल्लेख किया था लेकिन अभी तक कोई इनिसिएतिभ नही लिया गया है। एस पी साहेब से मिलने के बाद क्या होता है पूरे विस्तार से बताउंगा लेकिन एक करबद्ध प्रार्थना फ़िर से की निम्न लिंक पर एक बार फ़िर सिर्फ़ इतना लिख कर मेल कर दो की ''इस सुहागिन विधवा को मदद की दरकार है एस पी साहब'' क्यूंकि पिछले पोस्ट में मैंने जिस मेल का लिंक दिया था उसका एक लेटर ग़लत टाइप हो गया था तो भडासी भाई बहन लोग संगीता के लिए.उसके बच्चे की लिए और एक न्याय पूर्ण समाज के लिए कृपया एक बार फ़िर अपनी उन्ग्लिओं को की बोर्ड पर थिर्काओ और निम्न लिंक पर पिलिज ओंस मोर.......सिर्फ़ संगीता और उसके बच्चो के लिए। आज न कल तो साहेब मेल चेक करबे करेंगे।
email:-amitlodha7@rediffmail.com
जय भड़ास
जय यशवंत
मनीष राज बेगुसराय

4 comments:

Unknown said...

mahan ho pyare....lge rho....lga doge...

Anonymous said...

bhai aapke sahyog ne inhen jabardast aatm shakti di hai, waah waah, aapko bahoot bahoot badhai.

jindgi ko jeena isi ka naam hai.


ab to kuch na kuch jaroor hoga
akhir aatmvishwaas jo aa gaya hai

यशवंत सिंह yashwant singh said...

ye puny ka kaam hai manish bhayi. aapko eshwar ham sabki umra aur takat de. shandar....
yashwant

KUNDAN KARN said...

संगीता के मामले में भडास की सक्रियता ने इंटरनेट को विरोध का कारगर हथियार बनाया ही है साथ ही साथ संगीता जैसी लाखों उपेक्षितों को रौशनी की एक किरण भी मिली है,भडास की टीम सचमुच बधाई की पात्र है.हम युवाओं ऐसे प्रयास को सलाम करते हैं.