पैसे की बाहें हज़ार अजी पैसे की
महिमा है अपरम्पार अजी पैसे की
पैसे में सब गुण
पैसा है निर्गुण
उल्लू पर देवी सवार अजी पैसे की
पैसे के पण्डे
पैसे के झण्डे
डण्डे से टिकी सरकार अजी पैसे की
पैसे के गाने
पैसे की ग़ज़लें
सबसे मीठी झनकार अजी पैसे की
पैसे की अम्मा
पैसे के बप्पा
लपटों से बनी ससुराल अजी पैसे की
मेहनत से जिन्सें
जिन्सों के दुखड़े
दुखड़ों से आती बहार अजी पैसे की
सोने के लड्डू
चाँदी की रोटी
बढ़ जाए भूख हर बार अजी पैसे की
पैसे की लूटें
लूटों की फ़ौजें
दुनिया है घायल शिकार अजी पैसे की
पैसे के बूते
इंसाफ़ी जूते
खाए जा पंचों ! मार अजी पैसे की ।
5.4.08
पैसे का गीत / गोरख पाण्डेय
Labels: gorakh pandey ki kvita, shreshth kvi jan, कविताएँ
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